हजारों किसानों और उनके समर्थकों ने 13 मार्च को महाराष्ट्र के नाशिक से 200 किलोमीटर लंबा जुलूस शुरू किया। उन्होंने 20 या 21 मार्च को किसी समय मुंबई में राज्य विधानसभा के सत्र के दौरान मोर्चा लेकर जाने का दृढ़ निश्चय किया है। यह जुलूस 5 साल पहले 2018 में ऐसे ही लंबे जुलूस की यादें ताजा कर रहा है। उस समय भी हजारों पुरुष और महिला किसान, खेतिहर मज़दूर और उनके समर्थकों ने भीषण गर्मी को झेलते हुए मुंबई शहर की ओर जुलूस निकाला था। उस समय की तरह अब भी पैदल जुलूस के रास्ते में शहरों और गांवों के लोगों द्वारा भोजन और पानी देकर, जुलूस में हिस्सा ले रहे किसानों की मदद की जा रही है। नाशिक से शुरू हुए जुलूस में पूरे महाराष्ट्र के हजारों अन्य किसान रास्ते में विभिन्न स्थानों पर शामिल होंगे।
जुलूस का नेतृत्व अखिल भारतीय किसान सभा (ए.आई.के.एस.) कर रही है। उन्होंने 17 सूत्रीय मांग-पत्र पेश किया है। सबसे प्रमुख मांग लाभकारी मूल्यों के लिये है, विशेष रूप से प्याज, कपास, सोयाबीन, अरहर दाल, हरा चना, दूध और हिर्दा (हरण) के लिये। यह देशभर के किसानों के लिए संकट का एक प्रमुख विषय रहा है, जो 500 से अधिक किसान संगठनों द्वारा दिल्ली की सरहदों पर साल भर से अधिक लंबे आंदोलन की मांगों में से यह एक था।
लासलगांव में, जो महाराष्ट्र का प्रमुख प्याज उत्पादक क्षेत्र है, बाज़ार में प्याज की क़ीमतें फरवरी के अंत से तीन सप्ताह के भीतर, 1,151 रुपये प्रति क्विंटल से घट कर 550 रुपये प्रति क्विंटल हो गईं। राज्य के किसानों की भारी परेशानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसान प्याज को सड़कों पर फेंक रहे हैं। उन्हें अपने उत्पाद को मंडी तक ले जाने में कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा है। अतः उनकी एक प्रमुख मांग है कि प्याज का गारंटीकृत दाम 2000 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिये और उन्हें 600 रुपये प्रति क्विंटल की तत्कालिक सब्सिडी मिलनी चाहिये।
अन्य महत्वपूर्ण मांगों में किसानों के लिए पूर्ण क़र्ज़ माफ़ी, पुराने बिजली बिलों को माफ़ करना और बिजली की 12 घंटे की दैनिक आपूर्ति की सुनिश्चिति, बेमौसम बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसानों को हुए नुक़सान के लिए सरकार व बीमा कंपनियों द्वारा मुआवज़ा, पी.एम. आवास योजना की सब्सिडी में 1.40 लाख रुपये से बढ़कार 5 लाख रुपये, इत्यादि शामिल हैं। गौरतलब है कि इनमें से कुछ मांगें हिन्दोस्तान के विभिन्न राज्यों के करोड़ों किसानों द्वारा भी उठाई जा रही हैं और खासकर बिजली की मांग साल भर चलने वाले किसान आंदोलन की प्रमुख मांगों में से एक थी।
2018 में जब महाराष्ट्र के किसानों ने हजारों की संख्या में मुंबई शहर तक जुलूस निकाला था, तो वर्तमान उप मुख्यमंत्री, भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री थे। उस समय उन्होंने वादा किया था कि राज्य सरकार आवश्यक कार्रवाई करेगी और सभी वन भूमि, चरागाह, मंदिर, इनाम, वक्फ और बेनामी भूमियों को भूमि रिकॉर्डों में खेती करने वालों के नाम में शामिल करने के लिये ज़रूरी क़दम लेगी। तब से अब तक इस बारे में महाराष्ट्र सरकार द्वारा कुछ नहीं किया गया है और इसलिए आंदोलनकारी किसानों की यह भी एक प्रमुख मांग है।
लोगों को मूर्ख बनाने के लिए व्यापक रूप से प्रचारित क़र्ज़ माफ़ी योजनाओं के बावजूद, सच्चाई यह है कि दिसंबर 2022 तक 22,000 करोड़ रुपये से अधिक के बकाया क़र्ज़े माफ़ होना बाकी थे!
आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या से महाराष्ट्र के किसानों की गंभीर पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 1 जनवरी से 31 दिसंबर, 2021 के दौरान 2,743 किसानों ने आत्महत्या की थी, जबकि 1 जनवरी से 31 दिसंबर, 2022 के दौरान यह संख्या बढ़कर 2,942 हो गई है! किसानों के अनुसार वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
जब किसानों ने नाशिक से अपना जुलूस शुरू किया, तो महाराष्ट्र के कृषि मंत्री ने बेशर्मी से बयान दिया कि ”किसानों की आत्महत्या महाराष्ट्र के लिए कोई नई बात नहीं है“!
जब वर्तमान उपमुख्यमंत्री पिछली सरकार के दौरान विपक्ष के नेता थे, कथित तौर पर तब उन्होंने मांग की थी कि किसानों को बिजली की सप्लाई कभी भी बंद नहीं की जानी चाहिए, भले ही वे बिजली का बकाया चुकाने में असमर्थ हों। जबकि अब जब वे उपमुख्यमंत्री बन गए हैं, तो रिपोर्टें आ रही हैं कि किसानों को और भी अधिक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, वर्तमान राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों का सक्रिय रूप से पालन कर रही है और बिजली की दरों में भारी वृद्धि की योजना बना रही है। यह सब किसानों के संकट को और भी बढ़ाएगा और इसलिए बिजली आपूर्ति के संबंध में उनकी मांग भी महत्वपूर्ण है।
13 मार्च को राज्य मंत्रीमंडल के एक मंत्री ने जुलूस के नेताओं से मुलाकात की और उनसे वादा किया कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनों 14 मार्च को दोपहर को मुंबई में उनसे मुलाक़ात करेंगे। परन्तु, 14 तारीख की सुबह राज्य सरकार ने घोषणा की कि उस दिन बैठक नहीं होगी! इससे किसान और भी नाराज़ हो गए और उन्होंने नए संकल्प के साथ अपना जुलूस जारी रखने की कसम खाई।
महाराष्ट्र के किसानों की मांगें जायज़ हैं। देश का मज़दूर वर्ग और मेहनतकश लोग उनका समर्थन करते हैं।