8 मार्च, 2023 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस था, इस अवसर को मनाने के लिये देश के विभिन्न शहरों में बैठकों, विरोध-प्रदर्शनों और सामूहिक रैलियों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर, महिला संगठनों और मज़दूर-संगठनों के साथ-साथ मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन भी, इन जुझारू विरोध-प्रदर्शनों में एक साथ आए।
10 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक रैली की गई। महिला दिवस के अवसर पर हर वर्ष भांति पारंपरिक रूप से आयोजित होने वाले जुलूस की अनुमति देने से पुलिस ने इनकार कर दिया। यहां तक कि इस अवसर पर एक सभा का आयोजित करने की अनुमति भी नहीं दी गई। लेकिन कार्यक्रम के आयोजकों ने हार नहीं मानी। वे इस अवसर पर एक सार्वजनिक सभा आयोजित करने की अपनी मांग पर अड़े रहे, अंततः उनके प्रयास सफल हुए। एक जोशीली रैली निकाली गई, जिसमें क़रीब 15 संगठनों के सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
सभा स्थल के मंच पर लगे मुख्य बैनर पर बने हुये बहुत ही स्पष्ट कलाचित्रों के ज़रिये विभिन्न मांगों को उजागर करने वाले नारे सम्मिलित किये गए थे।
सभा स्थल के चारों ओर दीवारों पर विभिन्न संगठनों के बैनर और प्लेकार्ड लगाये गए थे। जिन पर लिखे गये नारे थे – “महिलाओं पर बढ़ते शोषण-दमन का कारण उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण! ”, “महिलाओं की मुक्ति, समाज की मुक्ति की निर्णायक शर्त!”, “शासन सत्ता अपने हाथ, जुल्म अन्याय करें समाप्त!”, “आंगनवाड़ी और आशा कर्मियों को न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करो!”, “सार्वजनिक कारोबारों का निजीकरण बंद करो!”, “बैंक, रेल, बीमा, स्वास्थ्य, शिक्षा को बेचना बंद करो!”, “चार मज़दूर कोड महिलाओं के अधिकारों पर हमला!”, “महिलाओं पर बढ़ती हिंसा का डटकर विरोध करो!”, “महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ संघर्ष तेज़ करो!” तथा कई अन्य नारे।
रैली का आयोजन – नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन (एन.एफ.आई.डब्ल्यू.), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसिएशन (ए.आई.डी.डब्ल्यू.ए.), पुरोगामी महिला संगठन, स्वास्तिक महिला संगठन, ज्वाइंट वुमेंस प्रोग्राम (जे.डब्ल्यू.पी.), सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग वुमन (सी.एस.डब्ल्यू.), प्रगतिशील महिला संगठन, अखिल भारतीय महिला सांस्कृतिक समिति, एक्शन इंडिया, आज़ाद फाउंडेशन, वाई.डब्ल्यू.सी.ए. और जागोरी व कई अन्य संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
रैली की शुरुआत में दुनियाभर की उन सभी बहादुर महिलाओं को श्रद्धांजलि दी गई, जिन्होंने महिलाओं की मुक्ति के लिये और सभी प्रकार के शोषण तथा अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी और अपने जीवन का बलिदान दिया।
नौजवान कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के संघर्षों व बलिदानों तथा अपने संघर्ष को आखि़री जीत तक जारी रखने के उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाने वाले गीत पेश किये। युवतियों ने कई नुक्कड़ नाटक पेश किए, जिनमें उन्होंने हमारे समाज में महिलाओं का दमन करने वाले कई रीति-रिवाजों को उजागर किया और अपने दिलों में इनके विरोध में जुझारू संघर्ष जारी रखने की भावना को प्रकट किया।
रैली में भाग लेने वाले कुछ संगठनों के प्रतिनिधियों ने रैली को संबोधित किया। जिनमें शामिल थे – एन.एफ.आई.डब्ल्यू.ए., ए.आई.डी.डब्ल्यू.ए., पुरोगामी महिला संगठन, स्वास्तिक महिला संगठन, सी.एस.डब्ल्यू., ए.आई.एम.एस.एस. और मज़दूर एकता कमेटी के प्रतिनिधि।
वक्ताओं ने महिलाओं और सभी मेहनतकशों पर शासकों द्वारा लगातार किये जा रहे चौतरफा हमलों पर प्रकाश डाला। खाद्य पदार्थां, रसोई गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती क़ीमतें देश के लोगों के एक बड़े हिस्से की ज़िन्दगी तबाह कर रही है। स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा तथा कई अन्य आवश्यक सेवाओं का निजीकरण, महिलाओं और सभी मेहनतकश लोगों पर एक और बड़ा हमला है। वक्ताओं ने चार श्रम संहिताओं की आलोचना की, जिनका उद्देश्य है पूंजीपतियों के मुनाफ़ां को बढ़ाना तथा मज़दूरों और मेहनतकशों को उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हासिल किये गए अधिकारों से वंचित करना और महिलाओं के शोषण को तेज़ करना है।
वक्ताओं ने बताया कि जिन अधिकारों के लिए महिलाओं ने लंबी लड़ाई लड़ी है तथा जिन्हें क़ानूनी तौर से मान्यता भी प्राप्त है, लेकिन हक़ीक़त में उनका भी खुलेआम उल्लंघन किया जाता है। जिनमें शामिल हैं – समान काम के लिए समान वेतन का अधिकार, मातृत्व अवकाश और शिशु-देखभाल की सुविधाओं का अधिकार, आदि। पूंजीपति महिला मज़दूरों के इन अधिकारों को अतिरिक्त लागत की रूप में देखते हैं जिससे उनके मुनाफ़ों में कमी होती है। इन अधिकारों को लागू करवाने के लिए लोगों के पास न तो कोई तंत्र है और न ही इन अधिकारों का उल्लंघन करने वाले नियोक्ताओं को दी जाने वाली किसी भी सज़ा को सुनिश्चित करने का कोई उपाय है। सभी वक्ताओं ने जातिगत भेदभाव सहित महिलाओं को गुलाम बनाने वाली विभिन्न सामंती और पिछड़ी प्रथाओं की आलोचना की। उन्होंने महिलाओं पर बढ़ती हिंसा की निंदा की। उन्होंने अधिकारियों, पुलिस और आपराधिक राजनीतिक पार्टियों के बीच सांठ-गांठ की भी निंदा की, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे अपराध दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं। वक्ताओं ने राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक की कड़ी आलोचना की, जिसका उद्देश्य है लोगों को आतंकित करके उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करना और संघर्षरत महिलाओं और पुरुषों की एकता को तोड़ना।
कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि हर सरकार, चाहे वह किसी भी राजनीतिक पार्टी की हो, वह बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों के एजेंडे को लागू करने का काम करती है। कार्पारेट घरानों के हितों को पूरा करने के लिए ही क़ानून बनाये जाते हैं और प्रमुख नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं। लोगों के पास, न तो चुने गये प्रतिनिधियों से हिसाब मांगने की ताकत है और न ही उन्हें वापस बुलाने की ही ताकत है। हमारे पास अपने मूलभूत अधिकारों की हिफ़ाज़त के लिए क़ानून और नीतियां बनाने की ताक़त नहीं है। वक्ताओं ने सवाल उठाया कि – क्या सरकार बदलने से, महिलाएं अपनी हालतों में बदलाव की उम्मीद कर सकती हैं? कई लोगों का मत था कि जब तक पूंजीवादी शोषण की यह व्यवस्था क़ायम रहेगी, तब तक महिलाएं अपनी मुक्ति हासिल नहीं कर सकतीं, चाहे पूंजीपति वर्ग की सेवा करने वाली कोई भी राजनीतिक पार्टी सत्ता में आए।
वक्ताओं ने सभी महिलाओं से आह्वान किया कि महिलायें अपने ऊपर होने वाले शोषण और दमन को समाप्त करने के लिए, सभी उत्पीड़ितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करें। रैली में एक सशक्त अपील की गई कि महिलाओं को आगे आकर ऐसे समाज के लिए संघर्ष करना होगा जिसमें लिंग, जाति और वर्ग आदि के आधार पर कोई शोषण, दमन या भेदभाव नहीं होगा। जिसमें राज्य का कर्तव्य और ज़िम्मेदारी होगी एक ऐसी व्यवस्था बनाना जिसमें सभी की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य को बाध्य किया जा सके।