हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 8 मार्च, 2023
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, 2023 के अवसर पर लाखों-लाखों संघर्षरत महिलाओं को सलाम करती है। हम उन मेहनतकश महिलाओं को सलाम करते हैं जो हमारे देश में निजीकरण और उदारीकरण के ख़िलाफ़ लड़ाई में सबसे आगे हैं। हम उन सभी को सलाम करते हैं जो राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा, राजकीय आतंकवाद और महिलाओं के खि़लाफ़ सभी प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। हम यूरोप की उन महिलाओं को सलाम करते हैं जो साम्राज्यवादी युद्ध भड़काने वाले नाटो के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आई हैं। हम उन सभी देशों की महिलाओं को सलाम करते हैं जो महिला और इंसान बतौर अपने अधिकारों की मांग कर रही हैं।
महिलाओं के इंसान बतौर, और नयी पीढ़ी को जन्म देने में उनकी ख़ास भूमिका के कारण, महिला बतौर अधिकार हैं। लेकिन महिलाएं पूँजीवादी शोषण और एक ऐसी क्रूर सामाजिक व्यवस्था से उत्पीड़ित हैं, जो उन्हें हमेशा निचले दर्जे के इंसानों की हालत में रखती है।
हमारे देश में महिलाएं पूंजीवादी शोषण के साथ-साथ सामंतवाद और जातिवादी व्यवस्था के अवशेषों से भी पीड़ित हैं। वे उस प्रचलित धारणा की शिकार हैं कि एक लड़की परिवार पर बोझ होती है। यह कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों और लड़कों के बीच भेदभाव, बाल विवाह, दहेज और ऐसी कई अन्य जघन्य प्रथाओं में प्रकट होता है। पूंजीवाद ने इन सारी जघन्य प्रथाओं को बरकरार रखा है। इन सामंती प्रथाओं और रीति-रिवाजों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि एक महिला का स्थान घर में है। जब किसी महिला के ऊपर काम की जगह पर, या सड़कों पर, कोई हमला होता है, तो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में राज्य की नाक़ामयाबी पर सवाल नहीं उठाया जाता है; इसके बजाय, यह सवाल उठाया जाता है कि वह अपने घर से बाहर क्यों गयी थी।
हिन्दोस्तान की सरकार यह दावा करती है कि वह महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने के लिए वचनबद्ध है। लेकिन हमारे देश में अधिकांश लड़कियों को स्कूल की शिक्षा पूरी करने में ही कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है – लड़कियों के लिए शौचालयों की कमी, स्कूल तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी और सुनसान रास्तों को पार करना और अन्य ऐसी हालतें जो उनके दैनिक जीवन को असुरक्षित बनाती हैं और उनके लिए यौन उत्पीड़न, बलात्कार, आदि का ख़तरा पैदा करती हैं। कामकाजी महिला बनने के बाद भी उन्हें इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
हमारे देश में अधिकांश गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रसव सुविधाओं की गारंटी नहीं है। एक हालिया अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि पिछले 20 वर्षों में लगभग 13 लाख महिलाओं की बच्चा पैदा करने के दौरान मृत्यु हो गई है।
महिलाओं के कई अधिकारों को क़ानून में मान्यता तो दी गयी है, लेकिन हक़ीक़त में उन्हें लागू नहीं किया जाता है। समान काम के लिए समान वेतन ऐसा ही एक अधिकार है। प्रसूति की छुट्टी और शिशु पालन की सुविधाओं का अधिकार ऐसा ही एक और अधिकार है। पूंजीपति मालिक महिला मज़दूरों के अधिकारों को अतिरिक्त लागत मानते हैं जो उनके मुनाफ़े में कटौती करते हैं। इसलिए पूंजीपति इन अधिकारों में कटौती करना या इन्हें पूरी तरह से हटा देना चाहते हैं। महिला मज़दूरों के अधिकारों का हनन करने वाले पूंजीपतियों को राज्य कोई सज़ा नहीं देता है।
सभी पूंजीवादी देशों में सरमायदार शासक वर्ग समाज में महिलाओं के दमन और निचले दर्जे के स्रोत के बारे में ढेर सारे भ्रम फैलाते हैं। उनका कहना है कि प्राचीन काल से, हर समाज में महिलाओं का हमेशा दमन होता रहा है, और इसलिए ऐसा होता रहेगा, क्योंकि यही कुदरत का नियम है। वे यह धारणा फैलाते हैं कि समस्या का स्रोत पुरुषों में है। वे इसे महिलाओं और पुरुषों के बीच की लड़ाई के रूप में पेश करते हैं। वे इस भ्रम को बढ़ावा देते हैं कि विभिन्न नीतिगत क़दमों और सरकारी कार्यक्रमों के ज़रिये महिलाएं पूंजीवादी व्यवस्था के अन्दर ही, अपनी समस्याओं से मुक्ति हासिल कर सकती हैं।
सच्चाई यह है कि समाज में महिलाओं के निचले दर्जे की शुरुआत तब हुयी जब समाज का वर्गों में बंटवारा हुआ। जब तक मज़दूर समाज में एक शोषित वर्ग बना रहेगा, तब तक महिलाएं उत्पीड़ित रहेंगी। इस बात को 100 से अधिक साल पहले, उत्तरी अमरीका और यूरोप में महिला मज़दूरों के नेताओं ने समझ लिया था। उस समय महिला मज़दूरों के कम्युनिस्ट नेताओं ने घोषणा की थी कि महिलाओं की मुक्ति का रास्ता समाज को पूंजीवाद से समाजवाद में बदलने के संघर्ष में है। कम्युनिस्ट महिलाओं की पहल पर, 1910 में पहली बार, 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय मेहनतकश महिला दिवस के रूप में मनाया गया था।
सोवियत रूस और पूर्वी यूरोप के कई देशों में समाजवाद की स्थापना और प्रगति के चलते, उत्पादन के साधनों को सामाजिक संपत्ति में बदलकर, मानव श्रम के शोषण को ख़त्म करने की हालतें तैयार की गयी थीं। इसकी वजह से, सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी के स्तर में जबरदस्त प्रगति देखने में आई थी। समाजवादी राज्य ने क्रेच, नर्सरी और अन्य सुविधाएं स्थापित करने की ज़िम्मेदारी ली थी, जिनके ज़रिये घरेलू काम के बोझ को कम किया गया था। महिलाओं और बच्चों की विशेष स्वास्थ्य-संबंधी ज़रूरतों की देखभाल के लिए हर इलाके में अस्पताल और चिकित्सा सुविधाएं स्थापित की गयी थीं। समाजवादी देश महिला डॉक्टरों, इंजीनियरों, शिक्षकों, कुशल श्रमिकों और उच्च योग्यता के वैज्ञानिक और तकनीकी कर्मियों की अपनी विशाल ताक़त के लिए मशहूर हुए।
समाजवाद की प्रगति ने दुनिया के सभी देशों पर जबरदस्त असर डाला। उसने सभी सरकारों को, कम से कम बातों में, इस असूल को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि महिलाओं को पुरुषों के समान आर्थिक और राजनीतिक अधिकार मिलने चाहियें, जिनमें चुनने और चुने जाने का अधिकार भी शामिल होना चाहिए। परन्तु मानव श्रम के शोषण के ज़रिये निजी मुनाफे़ को अधिकतम करने का पूंजीपतियों का उद्देश्य ही अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति बनी हुयी है, इसलिए दोनों महिला और पुरुष मज़दूरों के ज्यादातर अधिकार सिर्फ कागज़ों पर ही लिखे हुए रह गए हैं। ज़मीनी तौर पर उनका हनन होता रहता है। इन अधिकारों को लागू करने के लिए वर्तमान व्यवस्था के अन्दर कोई तंत्र नहीं हैं।
कई राजनीतिक पार्टियां व संगठन इस धारणा को बढ़ावा देते हैं कि अगर आधिकारिक पदों पर ज्यादा संख्या में महिलाएं होंगी तो महिलाओं की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। लेकिन जीवन के अनुभव ने दिखाया है कि उच्च पदों पर अधिक महिलाओं के होने से आर्थिक व्यवस्था की पूंजीवादी प्रकृति नहीं बदलती है। इससे महिलाओं और पुरुषों, दोनों का क्रूर शोषण और मज़दूरों के अधिकारों का घोर हनन समाप्त नहीं होता है। यह राज्य के दमनकारी स्वभाव या राजनीतिक प्रक्रिया के जन-विरोधी चरित्र को नहीं बदलता है।
मौजूदा राजनीतिक प्रक्रिया अधिकतम महिलाओं और पुरुषों को अपने जीवन को प्रभावित करने वाले फ़ैसले को लेने से वंचित करती है। समय-समय पर चुनाव करवाकर, इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग की अमीरी बढ़ाने के उसी एजेंडे को लागू करने के लिए, कोई न कोई राजनीतिक पार्टी सत्ता में आती है।
पिछले 30 से अधिक वर्षों से, हुक्मरान वर्ग उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। बार-बार किये गए चुनावों से उसमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है। प्रतिस्पर्धी राजनीतिक पार्टियों ने एक दूसरे की जगह ले ली है और नारे बदल गए हैं; लेकिन एजेंडा वही चलता रहा है। इसका लक्ष्य वही रहा है – बहुसंख्यक मेहनतकश महिलाओं और पुरुषों के तीव्र शोषण और उत्पीड़न के ज़रिये इजारेदार पूंजीपतियों के निजी मुनाफ़े को अधिकतम करना।
आर्थिक हमलों के साथ-साथ राजनीति का अपराधीकरण और साम्प्रदायिकीकरण भी होता जा रहा है। लड़कियों और जवान महिलाओं के ख़िलाफ़ क्रूर अपराध बहुत बढ़ रहे हैं तथा ज्यादा से ज्यादा बर्बर होते जा रहे हैं। जनता का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाली पार्टियां खुद महिलाओं के ख़िलाफ़ बेहद जघन्य अपराधों की दोषी रही हैं।
चंद शोषकों और उनकी अपराधी पार्टियों के हाथों में राजनीतिक सत्ता के एकाधिकार को समाप्त करना ही वह पहला और आवश्यक क़दम है, जिससे गहन क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए रास्ता खुल सकता है। महिलाओं और सभी मेहनतकश लोगों को अपने हाथों में राजनीतिक सत्ता लेने की ज़रूरत है, ताकि वे एजेंडा निर्धारित कर सकें और अपनी हालतों को बदल सकें। उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों की निजी मालिकी को ख़त्म करने और उन्हें सामाजिक संपत्ति में बदलने की ज़रूरत है, ताकि अर्थव्यवस्था को पूंजीपतियों की लालच के बजाय लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में चलायी जा सके।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी महिलाओं का आह्वान करती है कि वे सभी शोषितों और उत्पीड़ितों के साथ एकजुट हों और उदारीकरण व निजीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण के मज़दूर-विरोधी, महिला-विरोधी और समाज-विरोधी कार्यक्रम को ख़त्म करने के लिए संघर्ष करें। आइए, हम सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष तथा अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाएं। आइए, हम एक ऐसे राज्य और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करने के उद्देश्य से लड़ें, जो सभी के लिए सुख और सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। आइए, हम एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण के लक्ष्य के साथ संघर्ष करें, जिसमें लिंग, जाति, वर्ग या किसी अन्य आधार पर कोई शोषण, दमन या भेदभाव न हो।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ज़िंदाबाद!
सभी प्रकार के शोषण, दमन और भेदभाव से मुक्ति के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें!