महाराष्ट्र राज्य सरकार के मज़दूरों ने 14 मार्च, 2023 से अनिश्चितकालीन हड़ताल करने की घोषणा की है!

केंद्र तथा राज्य सरकारों के कर्मचारियों का पुरानी पेंशन योजना (ओ.पी.एस.) की बहाली के लिए किया जा रहा संघर्ष अधिक एकता और संकल्प के साथ पूरे देश में फैल रहा है। महाराष्ट्र के भी सरकारी, अर्ध-सरकारी, शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने घोषणा की है कि वे 14 मार्च, 2023 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे। उनकी कुछ मुख्य मांगें हैं – ओ.पी.एस. की बहाली, अनुबंध पर नियुक्त सभी मज़दूरों का नियमितिकरण किया जाये और सभी खाली पदों पर तुरंत भरती हो। इस संघर्ष के लिए मज़दूरों को इकट्ठा के लिए, पूरे राज्य में बैठकें आयोजित की जा रही हैं।

20 फरवरी को मुंबई, ठाणे, पुणे, नाशिक सहित महाराष्ट्र के कुछ अन्य स्थानों से 500 से अधिक प्रतिनिधियों ने मुंबई में एक बैठक में भाग लिया। यह बैठक संयुक्त रूप से सेन्ट्रल गवर्नमेंट एम्प्लोईज फेडरेशन, सेन्ट्रल गवर्नमेंट एम्प्लोईज कोऑर्डीनेशन कमेटी, बृहन मुंबई स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लोईज संगठन, गवर्नमेंट-सेमी गवर्नमेंट टेक्निकल एंड नॉन टेक्निकल इंप्लॉईज कोऑर्डीनेशन कमेटी महाराष्ट्र द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई थी। शिक्षक भरती तथा शिक्षकों के संगठनों की समन्वय समिति मुंबई जैसे शिक्षण समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न अन्य संगठनों ने भी अपने प्रतिनिधियों को बैठक में भेजा। महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने अतीत में नगरपालिका के कर्मचारियों को दबाने के लिये बर्बरता से महाराष्ट्र आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (एम.ई.एस.एम.ए.) का उपयोग किया था। परन्तु, महाराष्ट्र के इन मज़दूरों के कई संगठनों ने पुणे में एक साथ मिलकर इस तरह के किसी भी दबाव की रणनीति को ठुकराने का फ़ैसला किया। नतीजतन, विभिन्न नगरपालिका कर्मचारियों के संगठनों के प्रतिनिधि भी बैठक में शामिल हो गए। मीटिंग में भाग लेने वाले सभी संगठनों के वक्ताओं ने सभा को संबोधित किया।

महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान, महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री ने बड़े घमंड के साथ घोषणा की थी कि किसी भी परिस्थिति में राज्य सरकार ओ.पी.एस. को पुनर्जीवित नहीं करेगी, क्योंकि इससे राज्य सरकार के वित्तीय खजाने पर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का “अनुचित बोझ“ पड़ेगा। इसके बाद, विधान परिषद के चुनावों में ओ.पी.एस. एक प्रमुख मुद्दा बन गया। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन ने चुनावों में कुछ सीटें खो दीं। उसके तुरंत बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने बहुत जल्दी से घोषणा की कि उनकी सरकार की ओ.पी.एस. की मांग के प्रति सहानुभूति रखती है। मुख्यमंत्री ने एक बीच का रास्ता निकलाने का वादा किया।

इन घटनाक्रमों का उल्लेख करते हुए, बैठक में कुछ वक्ताओं ने समझाया कि किस तरह से उप-मुख्यमंत्री ने जानबूझकर आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था, और इसका इरादा था ओ.पी.एस. की बहाली की मांग करने वाले राज्य सरकार के कर्मचारियों के खि़लाफ महाराष्ट्र के मेहनतकश लोगों को भड़काना। उन्होंने इस विभाजनकारी रणनीति की निंदा की। कुछ अन्य वक्ताओं ने घोषणा की कि उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा “बीच का रास्ता“ खोजने के बारे में किए गए वादे से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता और ओ.पी.एस. के अलावा हम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे।

कुछ वक्ताओं ने संसद में प्रधानमंत्री के भाषण का उल्लेख किया, जब उन्होंने राज्य सरकारों को सलाह दी कि ओ.पी.एस. की मांग को स्वीकार करने से भविष्य की पीढ़ियों के हित को ख़तरे पड़ जाएगा, इसलिए उन्हें यह “महापाप“ नहीं करना चाहिये। सरकार के नैतिक अधिकार पर उन्होंने सवाल उठाया, क्योंकि वह एक तरफ कर्मचारियों को सलाह देती है कि वे ओ.पी.एस. की मांग करने से बचें, क्योंकि सरकार के पास उनकी मांग को पूरा करने के लिए कोई पैसा नहीं है, जबकि दूसरी ओर वही सरकार पूंजीपतियों को दिए गए 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक का क़र्ज़ माफ़ कर देती है और इसी प्रकार उसने पहले भी उसने कॉर्पोरेट कर को अभूतपूर्व रूप से कम कर दिया है, जिससे डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक का लाभ बड़े कारपोरेटों के लिए सुनिश्चित हुआ है।

वक्ताओं ने कहा कि ओ.पी.एस. के लिए किया जा रहा संघर्ष, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिये वैश्वीकरण की नीतियों के खि़लाफ़ संघर्ष का हिस्सा है। उन्होंने सभी ठेक मज़दूरों के नियमितिकरण और राज्य व केंद्र सरकार के उद्यमों और विभागों में सत्तर लाख से अधिक खाली पदों को भरने के लिए श्रमिक वर्ग की मांग को भी दोहराया।

बैठक में मज़दूरों की एकता को बनाए रखने और उनकी न्यायपूर्ण मांग के लिए लड़ने के उनके संकल्प के नारे लगाये गये।

कास्ट ट्राइब महासंघ, अखिल भारतीय आदिवासी कर्मचारी महासंघ और स्वास्थ्य विभाग कर्मचरी संघटना जैसे कई अन्य संगठनों ने भी संघर्ष में शामिल होने का संकल्प घोषित किया है। कई संगठनों ने घोषणा की कि वे नागपुर से शुरू होकर 14 मार्च को मुंबई के अज़ाद मैदान में समापन होने वाली एक रैली में शामिल होंगे। यह तय है कि ऐसे एकजुट संघर्ष से राज्य सरकार पर जबरदस्त दबाव आएगा।

“एक तरफ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली और सभी मेहनतकश लोगों की सेवा करने वाली अन्य सरकारी योजनाओं में सुधार और दूसरी तरफ मेहनतकश लोगों के 4 प्रतिशत से भी कम सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन के बीच में से चुनें”, ऐसा कहकर केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें, सरकारी कर्मचारियों के खि़लाफ़ अन्य मेहनतकश लोगों को उकसाने की कोशिश कर रही हैं। यह मांग उठाकर कि सरकार को हमारे देश के सभी मेहनतकश लोगों के लिए एक सार्वभौमिक पेंशन योजना सुनिश्चित करनी चाहिए, हमें इस नापाक प्रचार को चुनौती देनी चाहिए। इस देश के हम कामकाजी लोग ही तो हैं, जो समाज के सभी धन का निर्माण करते हैं, और इसलिए शासन करनेवालों की प्रमुख जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हर प्रौढ़ व्यक्ति के अपने कामकाजी जीवन के दौरान लिए रोज़गार तथा पर्याप्त वेतन सुनिश्चित करें और प्रत्येक सेवानिवृत्त मज़दूर को एक परिभाषित और नियमित पेंशन की गारंटी दें।

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