सरमायदारी मीडिया हिन्दोस्तानी अरबपतियों की बढ़ती संख्या और उनकी बेतहाशा बढ़ती दौलत को इस तरह पेश करता है जैसे कि यह अपने देश के लोगों के लिए गर्व की बात है। सरमायदारी मीडिया खुद बढ़ते तौर पर कुछेक बड़ी इजारेदार कंपनियों के नियंत्रण में आता जा रहा है। मज़दूरों और किसानों की बढ़ती परेशानी को तेज़ी होने वाले आर्थिक विकास को हासिल करने के लिए एक ”आवश्यक बलिदान“ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि का परिणाम है कि देश के सबसे बड़े इजारेदारों की धन-संपत्ति तेज़ी से बढ़ रही है। जिसे वास्तविक मज़दूरी में गिरावट करके और मज़दूरों, किसानों की आजीविका को और भी अधिक असुरक्षित बना कर हासिल किया गया है। इसे हासिल करने के लिये बड़ी संख्या में छोटे और सूक्ष्म कारोबारों और लाखों स्वनियोजित निर्माताओं व खुदरा विक्रेताओं को नष्ट किया गया है।
आज, हिन्दोस्तान की 20 सबसे बड़ी कंपनियों का देश के पूरे कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफ़े में 75 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि एक दशक पहले यह लगभग 45 प्रतिशत था। यह अनुपात साल दर साल बढ़ता रहता है। आज अधिकांश क्षेत्रों में शीर्ष दो कंपनियों का मुनाफ़ा उनके क्षेत्र की सभी कंपनियों के मुनाफे़ का 85 प्रतिशत है। देश में सकेंद्रण और इजारेदारी की गति तब स्पष्ट हो जाती है जब हम देखते हैं कि 1992-93 में, शीर्ष 20 कंपनियों का हिस्सा कुल मुनाफ़े का केवल 15 प्रतिशत था।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) के पिछले 20 वर्षों के आंकड़े उपरोक्त प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं। 2000-01 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स 30 में शामिल कंपनियों का सभी सूचीबद्ध कंपनियों के कर-पश्चात मुनाफ़े (पी.ए.टी.) का 35 प्रतिशत हिस्सा था। 2019-20 में यह तेज़ी से बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया (ग्राफ 1 में देखें)।
आज, कई प्रमुख क्षेत्रों में मुनाफ़े के हिस्से और पूंजी के संकेंद्रण का बहुत ऊंचा स्तर देखा जाता है। एक या दो कंपनियां प्रत्येक क्षेत्र में उत्पन्न मुनाफ़े का 80 प्रतिशत हिस्सा लेती हैं।
कुछ उद्योगों में इजारेदारियों के मुनाफ़े के हिस्से का संकेंद्रण |
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शिशु के लिये दूध का पाउडर | नेस्ले |
सिगरेट | आई.टी.सी. |
वाटर प्रूफिंग | पिडिलाइट |
केश तेल | मैरिको, बजाज |
पेंट्स | एशियन पेंट्स, बर्जर पेंट्स |
अच्छे दर्जे का खाद्य तेल | मैरिको, अदानी |
बिस्कुट | ब्रिटानिया, पार्ले |
मोबाइल डेटा और टेलीफोन | जियो, एयरटेल |
ट्रक | टाटा मोटर्स, अशोक लेलैंड |
छोटी कारें | मारुति, हुंडई |
पेट्रोकेमिकल्स | रिलायंस |
हवाई अड्डे | अदानी |
सीमेंट | बिड़ला, अदानी |
बिजली क्षेत्र | टाटा, जिंदल, अदानी, टोरेंट |
बेबी फूड मार्केट में अकेली नेस्ले कंपनी के मुनाफ़े की हिस्सेदारी इस क्षेत्र की कंपनियों के कुल मुनाफ़े में 85 प्रतिशत है। इसी तरह सिगरेट में आई.टी.सी. की 77 प्रतिशत, चिपकाने वाले पदार्थों के खंड में पिडिलाइट की 70 प्रतिशत, केश तेल में बजाज की 60 प्रतिशत और पेंट बाज़ार में एशियन पेंट्स की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
मोबाइल डेटा और टेलीफोन में जियो और एयरटेल की इजारेदारी के हानिकारक प्रभावों का अनुभव, देश के लोग पहले से ही कर रहे हैं। इसी तरह की इजारेदारी खुदरा और गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों में उभर रही है।
वाणिज्यिक हवाई यातायात का एक चौथाई, अदानी समूह द्वारा चलाए जा रहे हवाई अड्डों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह समूह देश के कुछ सबसे बड़े समुद्री बंदरगाहों और हवाई अड्डों का मालिक है। देश का लगभग 30 प्रतिशत खाद्यान्न भंडार उसके गोदामों में जमा हैं।
अब इजारेदारी की यह प्रवृत्ति अधिक विखंडित क्षेत्रों में फैल रही है जहां अब तक बाज़ार और मुनाफ़ों का बड़ा हिस्सा छोटी और मध्यम इकाइयों के पास था। 2016 की नोटबंदी और 2017 में जी.एस.टी. की शुरुआत के कारण बड़ी संख्या में छोटी और सूक्ष्म इकाइयां बंद हो गईं, जिससे उपरोक्त इजारेदारी की प्रवृत्ति में तेज़ी आई। इन दोनों क़दमों की वजह से, पूरे देश में वितरण के अपने विशाल नेटवर्क का लाभ उठाकर इजारेदारी कंपनियों ने बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी और मुनाफ़ों में वृद्धि की।
पूंजीवाद के विकास के साथ, वित्तीय क़र्ज़, जिस पर पहले क्षेत्रीय पूंजीपतियों का प्रभुत्व था, अब एच.डी.एफ.सी. और एच.डी.एफ.सी. बैंक जैसी कुछ बड़ी सर्व-हिन्द इजारेदारी कंपनियां मैदान में उतर गयी हैं। इन दोनों क़र्ज़दाताओं ने पिछले 10 वर्षों में शीर्ष 20 मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनियों की सूची में प्रवेश किया है।
इजारेदार कंपनियों को सस्ते में क़र्ज़ मिलने से, प्रतिस्पर्धा को कुचलने और अपने हाथों में और ज्यादा पूंजी केंद्रित करने में मदद मिलती है। इजारेदारी जितनी बड़ी होगी, उसके लिए पूंजी उतनी ही सस्ती होगी। वैश्वीकरण की वजह से क़र्ज़ पर सबसे कम ब्याज दरों लेने वाले देशों से पूंजी प्राप्त करने में वे कंपनियां सक्षम हो गयी हैं। जहां अडानी समूह की बात है, उसने अपने 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कुल क़र्ज़ का लगभग तीन चौथाई हिस्सा विदेशों से लिया हुआ है।
हिन्दोस्तान के शीर्ष 20 मुनाफ़ा (कर पश्चात मुनाफ़ा, पी.ए.टी.) कमाने वाले, दो विस्तृत श्रेणियों में आते हैं। एक है निजी क्षेत्र की इजारेदार कंपनियां, जो दुनियाभर से सबसे सस्ते स्रोतों से पूंजी प्राप्त करने में सक्षम हैं, जैसे कि रिलायंस (मुकेश अंबानी की), टाटा, अदानी, एच.डी.एफ.सी. समूह, आदि और दूसरी हैं बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां (पी.एस.यू.) जिन्हें अप्रत्यक्ष सरकारी संप्रभु गारंटी होने की वजह से कम लागत पर पूंजी प्राप्त होती है।
छोटी कंपनियों की पहुंच पूंजी के इन दोनों स्रोतों तक नहीं है। इसके चलते अब इन छोटी कंपनियों का इजारेदार कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा की संभावना व्यावहारिक रूप में समाप्त हो जाती है जो बहुत से क्षेत्रों पर हावी हो चुकी हैं।
सस्ती पूंजी उपलब्ध होने के कारण बड़ी इजारेदार कंपनियों को, अन्य बड़े और मध्यम आकार के पूंजीपतियों की तुलना में बहुत अधिक दर से संवर्धन करना संभव होता है। ये निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्रों में विकास के अधिकांश अवसरों को छीन लेते हैं। अर्थव्यवस्था पर उनका दबदबा और बढ़ जाता है।
हाल ही में, टाटा समूह ने अगले पांच वर्षों के लिए कुल मिलाकर 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक की निवेश योजनाओं की घोषणा की है।
मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह की कुल मिलाकर निवेश योजना 10 लाख करोड़ रुपये की है। यह समूह देश की कुल अक्षय ऊर्जा का पांचवां हिस्सा पैदा करने की योजना बना रहा है और इसके लिए उसने गुजरात राज्य सरकार से 45,000 एकड़ ज़मीन मांगी है।
अडानी समूह द्वारा सबसे महत्वाकांक्षी विकास योजनाओं की घोषणा की गई है, जो कि अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में पहले से ही हासिल किए गए प्रभुत्व के आधार पर है। अपनी हाल की वित्तीय समस्याओं से पहले, समूह ने निकट भविष्य में 9.5-11 लाख करोड़ रुपये की निवेश योजनाओं की घोषणा की थी, जिस के कारण ताप बिजली उत्पादन, अक्षय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन ऊर्जा, महामार्ग, तांबा, कोयला खदान, डेटा सेंटर, क्लाउड सेवाएं आदि के क्षेत्रों में इसका हावी होना संभव होता।
उपरोक्त तीन इजारेदार समूहों द्वारा कुल 30 लाख करोड़ रुपये का निवेश देश की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के दसवें हिस्से के बराबर है। यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में सबसे बड़े इजारेदार, निवेश के माध्यम से अपनी इजारेदारी और दबदबे को अधिक मजबूत करने की तैयारी कर रहे हैं।
निजीकरण कार्यक्रम से भी पूंजी के सकेंद्रण और बाज़ारों में इजारेदारों को मदद मिली है। 2001-02 में जब हिंदुस्तान जिंक का निजीकरण किया गया तो अनिल अग्रवाल का वेदांता ग्रुप जस्ते (जिंक) का इजारेदार उत्पादक बन गया। उस समूह ने एल्युमीनियम उत्पादन में भी एक प्रमुख स्थान हासिल किया जब सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के भारत एल्युमीनियम कंपनी (बाल्को) को उसे बेच दिया था। इंडियन पेट्रोकेमिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की बिक्री से रिलायंस ने पेट्रोकेमिकल्स में अपनी इजारेदारी को और मजबूत किया। निजीकरण के ज़रिये इजारेदारी को स्थापित करने का सबसे ताजा उदाहरण टाटा समूह को एयर इंडिया की बिक्री है।
बिजली क्षेत्र में अडानी, टाटा, जिंदल और टोरेंट का और दूरसंचार क्षेत्र में अंबानी, भारती मित्तल और बिड़ला की इजारेदारी इन क्षेत्रों को निजी कंपनियों के लिए खोलने का परिणाम है। हवाई अड्डों के क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिये खोलने से अडानी समूह की उस पर इजारेदारी स्थापित हो गयी है।
ऐसा बताया गया था कि दिवाला और दिवालियापन कोड (आई.बी.सी.) से बैंकों को बड़े पूंजीपतियों द्वारा न चुकाये गये अपने डूबे हुए क़र्ज़ों की वसूली में मदद मिलेगी। इसके बजाय आई.बी.सी. ने कुछ सबसे बड़ी इजारेदारी कंपनियों के प्रभुत्व को मजबूत करने में मदद की है। आई.बी.सी. के ज़रिये ये कंपनियां औने-पौने दामों पर संपत्ति खरीद सकीं और बैंकों को बड़े ”हेयर कट“ स्वीकार करने के लिए मजबूर कर सकीं। (हेयर कट का मतलब बैंक द्वारा दिये क़र्ज़ की न चुकाई जाने वाली बकाया राशि है।) टाटा समूह ने आई.बी.सी. नीलामी के माध्यम से भूषण स्टील का अधिग्रहण करके इस्पात क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की। दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात इजारेदारी कंपनियों में से एक, आर्सेलर मित्तल कंपनी ने आई.बी.सी. प्रक्रिया के माध्यम से एस्सार स्टील का अधिग्रहण किया।
पूंजी के अधिकाधिक संकेंद्रण से कुछ बहु-अरबपतियों द्वारा उत्पादन और लेन-देन के साधनों पर नियंत्रण बढ़ जाता है। यह देश के बहुसंख्यक मेहनतकश लोगों के तेज़ हो रहे शोषण को और बढ़ाता है, जिनके श्रम से सभी धन-संपत्ति का निर्माण हुआ है। ऐसी रिपोर्ट है कि नीचे की आधी आबादी के पास कुल संपत्ति का अब सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा है। दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में शामिल होने की दौड़ में लगे मुनाफ़े के भूखे थोड़ी संख्या के पूंजीपतियों के द्वारा 135 करोड़ लोगों के भाग्य का फ़ैसला किया जा रहा है।
पूंजी का बढ़ता सकेंद्रण और बाज़ारों तथा कच्चे माल के स्रोतों पर इजारेदारी, पूंजीवाद के स्वाभाविक परिणाम हैं। जैसा कि मार्क्स और लेनिन ने खोजा, पूंजीवाद अनिवार्य रूप से सकेंद्रण और इजारेदारी की ओर ले जाता है। पूंजीवाद अपने शुरुआती प्रतिस्पर्धी चरण से 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही इजारेदार पूंजीवाद के अपने उच्चतम स्तर तक विकसित हो गया था। अब तक सकेंद्रण और इजारेदारी अत्यधिक परजीवी और विनाशकारी स्तर पर पहुंच गई है।
विशाल इजारेदार कंपनियां अब समाज के सभी पहलुओं को नियंत्रित करती हैं। ये राज्य को भी नियंत्रित करती हैं, जो पूरी तरह से उनके हित में काम करता है। पूंजीपति वर्ग का यह झूठा प्रचार है कि ”मुक्त प्रतिस्पर्धा“ को बढ़ावा देने के ज़रिये अर्थव्यवस्था का नियंत्रण किया जा सकता है। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के बिना पूंजीवाद संभव है, यह वादा भी एक झूठ है। इजारेदार पूंजीवाद एक परजीवी पूंजीवाद है और समाज की प्रगति में रोड़ा है। यह सामाज-विरोधी है।
यह दावा झूठा है कि विकास की ऊंची दर से सभी का कल्याण होगा। ऐसा केवल पूंजीवाद के पक्ष में समर्थन हासिल करने के लिये किया जाता है। अर्थव्यवस्था के विकास की दर के बावजूद, पूंजीवादी विकास अनिवार्य रूप से एक ध्रुव पर कुछ लोगों की अमीरी बढ़ाता है और दूसरे ध्रुव पर बहुसंख्य लोगों की गरीबी बढ़ाता है।
केवल पूंजीवाद का खात्मा करने और समाजवाद की ओर बढ़ने से ही बहुसंख्य लोगों के दुखों का अंत होगा। सरकार में किसी भी बदलाव, यानी पूंजीवादी व्यवस्था के प्रबंधन में किसी भी बदलाव से, मेहनतकश जनता की विशाल बहुसंख्या की स्थिति में सुधार नहीं आ सकता, या उनके उत्पीड़न और शोषण को कम नहीं किया जा सकता।
इजारेदार पूंजीपतियों की लालच की पूर्ति के बजाय मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति के लिए, उत्पादन के साधनों की सामाजिक मालिकी के तहत सामाजिक उत्पादन, एक अनिवार्य शर्त है।