काम की जगह पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की हालतों पर एक बैठक

फरवरी के महीने में तोड़िलालर ओट्ट्रुमई इयक्कम (मज़दूर एकता आंदोलन) ने “ काम की जगह पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की हालतों पर संहिता (ओ.एस.एच.डब्ल्यू.) – मज़दूरों के अधिकारों पर हमला” विषय पर तमिलनाडु में एक बैठक आयोजित की। बैठक को संबोधित करने वालों में शामिल थे – तोड़िलालर ओट्ट्रुमई इयक्कम के कॉमरेड बास्कर, सोशलिस्ट वर्कर्स ऑर्गेनाइजेशन के संयोजक कॉमरेड कुमानन, 108 एंबुलेंस वर्कर्स यूनियन के स्टेट जनरल सेक्रेटरी कॉमरेड राजेंद्रन, यूनाइट-ट्रेड यूनियन ऑफ आईटी वर्कर्स के जनरल सेक्रेटरी कॉमरेड अलाजघुनाम्बी वेल्किन, महिला कर्मचारी संघ की अध्यक्ष कॉमरेड सुजाता मोदी और तमिलनाडु एम.आर.बी. नर्स वेलफेयर यूनियन के महासचिव कॉमरेड एन. सुबिन।

कॉमरेड बास्कर ने सभी सहभागियों का स्वागत किया। उन्होंने समझाया कि तोड़िलालर ओट्ट्रुमई इयक्कम मज़दूर वर्ग की एकता को बनाने और उसकी वर्ग चेतना को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह संगठन, निजीकरण और मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं के ख़िलाफ़ बैठकों की एक श्रृंखला आयोजित कर रहा है। इसी श्रृंखला में आज एक और बैठक आयोजित की गयी है।

तोड़िलालर ओट्ट्रुमई इयक्कम की ओर से कॉमरेड बास्कर ने ओ.एस.एच.डब्ल्यू. संहिता और मज़दूरों के अधिकारों पर पड़ने इसके भयानक कुप्रभावों पर एक प्रस्तुति पेश की। उन्होंने यूनियन कार्बाइड गैस रिसाव, स्टरलाइट व कई अन्य घटनाओं को याद किया। उन्होंने बताया कि खदानों के धंसने से मज़दूरों का दबकर मर जाना, भट्टियों के फटने से मज़दूरों की मौत आदि आज आम बात है। उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने के लिए, मज़दूरों या उनकी ट्रेड यूनियनों से परामर्श लिए बिना ही इस संहिता को अधिनियमित कर दिया गया था। “श्रम-क़ानूनों को सरल बनाने” से इसका कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि सरकार दावा कर रही है।

कार्यस्थलों पर मौजूद असुरक्षित हालतों के कारण हजारों मज़दूरों की मृत्यु हो जाती है। हर साल लाखों मज़दूर घायल या अपाहिज हो जाते हैं। इन दुर्घटनाओं से प्रभावित मज़दूरों को बिना किसी मुआवजे़ के काम से निकाल दिया जाता है। कई उद्योगों में मज़दूर हमेशा ख़तरनाक परिस्थितियों के संपर्क में रहते हैं जिसका उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव बाद में सामने आता है। ओ.एस.एच.डब्ल्यू. संहिता सभी मज़दूरों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा करने की बजाय, बहुत बड़ी संख्या में मज़दूरों को इस संहिता के दायरे से बाहर कर देता है। वे सब मज़दूर जो छोटे कारखानों में या ठेके पर काम करते हैं, इस संहिता के दायरे में नहीं आते। इसी तरह आईटी कर्मचारी, डिलीवरी वर्कर, टैक्सी ड्राइवर, गिग वर्कर आदि को इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया है।

सरकार ने कारखानों के निरीक्षण के लिए कारखाना-निरीक्षकों को भेजना बंद कर दिया है। कारखाने के मालिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं प्रमाणित करें कि वे आवश्यक सुरक्षा नियमों का पालन कर रहे हैं। यदि मज़दूरों को कोई शिकायत है, तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं कारखाने के मालिक से संपर्क करें! ओ.एस.एच.डब्ल्यू. संहिता, कार्यस्थल पर या काम पर आने-जाने में महिला मज़दूरों की सुरक्षा की गारंटी के बिना, उन्हें रात की पाली में काम करने को वैध बनाता है। अधिनियम के तहत कवरेज़ की शर्त के रूप में, एक औद्योगिक प्रतिष्ठान या कार्यस्थल में काम करने वाले मज़दूरों की संख्या पर एक उच्च सीमा निर्धारित की गई है। इसमें बड़ी संख्या में ठेका-मज़दूरों, प्रवासी और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को इस संहिता के दायरे से बाहर रखा गया है। इस अधिनियम ने महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रावधानों को अब हटा दिया है, जिनके लिए निर्माण उद्योग, बंदरगाहों और डॉक्स, समाचार पत्र उद्योग, खदानों आदि के मज़दूरों ने जबरदस्त संघर्ष किया था और उन सभी प्रावधानों को लागू कराने में सफल रहे थे।

हमें स्वस्थ और सुरक्षित काम करने की हालतों को सुनिश्चित करने के लिए अपने संघर्ष को और तेज़ करने की ज़रूरत है। हमें ऐसे क़ानून की मांग करनी चाहिए जो सभी मज़दूरों के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षित और स्वस्थ परिस्थितियों की गारंटी देता हो। हमें इन सब क़ानूनों को लागू करने के लिए एक कारगर तंत्र को स्थापित करने के लिए लड़ना होगा। इन्हीं शब्दों के साथ कॉमरेड बास्कर ने अपनी प्रस्तुति समाप्त की।

कॉमरेड कुमानन ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में मज़दूरों को अपने अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। इस तरह के मज़दूर-विरोधी क़ानून को लाने में न सिर्फ़ भाजपा, बल्कि कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टियों की भूमिका भी है। श्रम के शोषण को तेज़ करने, मौजूदा श्रम क़ानूनों को और कमजोर करने और पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए ही, ये चार श्रम संहिताएं बनाई गई हैं। इस श्रम संहिता ने छोटे कारखानों में काम करने वाले मज़दूरों को जो कि मज़दूर वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा हैं, उनको इसके दायरे से बाहर कर दिया है। इस श्रम संहिता ने मज़दूरों के दैनिक काम के घंटे बढ़ाने के लिए भी हालत तैयार किये हैं। सरकार ने यह भी घोषणा की है कि कारखाने में सुरक्षा मानदंडों की जांच करने के लिये अब वह कारखाना निरीक्षकों को नहीं भेजेगी। उन्होंने बताया कि इस तरह से इन मज़दूर-विरोधी प्रावधानों के ज़रिये अधिनियम ने मज़दूर वर्ग के अधिकारों का क्रूर हमला किया है।

कॉमरेड कुमानन ने अपने वक्तव्य के अंत में यह निष्कर्ष निकाला कि यदि हम मज़दूर राजनीतिक सत्ता को अपने हाथ में ले लें तो पूंजीपतियों के हितों की जगह मज़दूरों के हितों की रक्षा की जा सकती है।

कॉमरेड राजेंद्रन ने एंबुलेंस कर्मियों की स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 108 एंबुलेंस कर्मचारी हर दिन लगातार 12-18 घंटे काम करते हैं। तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में 47,000 से अधिक मेडिकल सपोर्ट स्टाफ की आवश्यकता है। सरकार 36,000 मज़दूरों को नौकरी दिए जाने का दावा करती है, जबकि वास्तव में केवल 27,000 मज़दूर ही काम कर रहे हैं। इनमें कई महिला कर्मचारी हैं, जिनके लिए न तो विश्राम कक्ष उपलब्ध हैं और न ही पीने का पानी। उन्हें अपने काम से साप्ताहिक छुट्टी तक भी नहीं मिलता। नर्सों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाता है, हालांकि लोगों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए उनकी सेवाएं अत्यंत आवश्यक हैं! उन्हें अक्सर बिना आराम किये लगातार 24 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। ओ.एस.एच.डब्ल्यू. संहिता, मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करने की बजाय उनसे और भी अधिक इंकार कर रहा है।

कॉमरेड राजेंद्रन ने शहीद भगत सिंह के बताये हुए रास्ते पर चलने की वकालत की। इस दृष्टिकोण से कि मज़दूर वर्ग को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेनी है, उन्होंने हमारे अपने संघर्षों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

आईटी वर्कर्स यूनियन के जनरल सेक्रेटरी कॉमरेड अलज्घू नंबी वेल्किन ने इस क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों की स्थिति के बारे में बताया। इस क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों का अत्यधिक शोषण करके आईटी कंपनियां भारी मुनाफ़ा कमा रही हैं। आईटी एक ज्ञान आधारित उद्योग है। इसलिए इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर अपने तकनीकी कौशल को लगातार उन्नत करने का जबरदस्त दबाव है। वहीं, इस क्षेत्र की कंपनियां अपने आईटी मज़दूरों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोई ध्यान नहीं देती हैं। वे ज्यादा से ज्यादा समय तक काम करने के लिये मजबूर हैं। आईटी पेशेवरों के काम का आकलन करने के नाम पर समय-समय पर उनके काम की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया जाता है। इन मूल्यांकनों में पारदर्शिता की पूरी तरह से कमी होती है।

मूल्यांकन प्रणाली और उनकी पदोन्नति तय करने में जाति, धर्म और भाषा के आधार पर भेदभाव होता है।

आईटी मज़दूरों की नौकरी की सुरक्षा भी नहीं होती, इसलिये नौकरी से निकाले जाने का डर उन पर हमेशा मंडराता रहता है। कॉमरेड वेल्किन ने बताया कि उनकी यूनियन ने आईटी कंपनियों के प्रबंधन को अनेक सुझाव दिए हैं कि कैसे आईटी मज़दूरों के हितों की रक्षा की जाए, लेकिन प्रबंधन के साथ-साथ नैसकॉम द्वारा भी इनकी अनदेखी की गई है। उनका ध्यान केवल अधिक मुनाफ़ा कमाने पर केंद्रित है और उन्हें मज़दूरों के कल्याण की कोई परवाह नहीं है। अंत में उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला कि ओ.एस.एच.डब्ल्यू. संहिता आईटी मज़दूरों के काम की परिस्थिति को और भी बदतर बना देगा।

महिला कर्मचारी संघ की अध्यक्ष कॉमरेड सुजाता मोदी ने कहा कि सभी क्षेत्रों के मज़दूर और विशेष रूप से महिला मज़दूर वर्तमान व्यवस्था की मार झेल रहे हैं। पूंजीपतियों और ठेकेदारों द्वारा निर्धारित, उत्पादन के बड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए गारमेंट मजदूरों को बिना किसी आराम के कई घंटों तक लगातार काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता है। महिला मज़दूरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता है। काम की जगहों पर हिंसा और आतंक का बोलबाला होता है। मज़दूरों की रक्षा के लिए तैनात किये गये, श्रम विभाग के अधिकारियों की पूंजीपतियों के साथ मिलीभगत होती है और जो मज़दूरों की सुरक्षा की बजाय उन्हें आतंकित करते हैं। श्रम समझौता कमेटियां कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों को नहीं उठाना चाहती हैं। महिला कर्मियों से कहा जाता है कि वे अपनी शिकायतें राज्य महिला आयोग के पास ले जाएं।

जब कार्य स्थल पर दुर्घटनाएं होती हैं, तो दुर्घटना से प्रभावित मज़दूरों को काम से हटा दिया जाता है। हालांकि हिन्दोस्तान में वस्त्र उद्योग पिछले 30 वर्षों से लगातार बढ़ रहा है, सरकार के पास काम के माहौल से उत्पन्न, मज़दूरों की स्वास्थ्य समस्याओं पर कोई विश्लेषण या डेटा तक नहीं है। मज़दूरों के लिए काम की जगह पर सुरक्षा और स्वास्थ्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण चिंता का मुद्दा है। सरकार द्वारा लाया गया नया ओ.एस.एच.डब्ल्यू. कोड पूंजीपतियों के पक्ष में है। इससे मज़दूरों की समस्या का समाधान नहीं होगा। हमें चार श्रम संहिताओं का विरोध करना होगा और यह मांग करनी होगी कि मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा की जाए। कॉमरेड सुजाता ने बैठक में भाग लेने वाले सभी सहभागियों को आश्वासन दिया कि महिला श्रमिक संघ अन्य संगठनों के साथ मिलकर श्रम संहिताओं का विरोध करने और कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जबरदस्त संघर्ष करेगी।

कॉमरेड सुबिन ने तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों की भयानक और शोषणकारी कार्य स्थिति के बारे में बताया। नर्स यूनियन के नेतृत्व में नर्सों के लगातार संघर्षों के कारण उनके वेतन में अब कुछ वृद्धि हुई है। ग्रामिण प्राथमिक अस्पतालों में संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) नर्सों को लगातार 24 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। इन संविदा नर्सों को नौकरियों की असुरक्षा और अधिकारियों द्वारा लगातार उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक, नर्सों के 50 फीसदी से भी कम पद भरे गए हैं। नर्सों की इस जबदस्त कमी के कारण एक नर्स को, दो नर्सों की ड्यूटी निभानी पड़ रही है। सरकार की रिपोर्ट बताती है कि तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग बड़ी संख्या में अनेक परियोजनाओं को लागू कर रहा है, जिसके काम का सारा बोझ मेडिकल स्टाफ, ख़ासकर नर्सों पर आ जाता है। सरकार इस समय संविदा पर कार्यरत सभी नर्सों को नियमित करने की बजाय 11 माह की संविदा की एक नयी योजना लेकर आई है। हालांकि कोर्ट ने समान काम के लिए समान वेतन का आदेश दिया है, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया है। नर्सों का अत्याधिक शोषण जारी है।

कॉमरेड सुबिन ने बताया कि नर्सेज यूनियन नर्सों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने और मज़दूरों की एकता बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।

इन प्रस्तुतियों के बाद, बैठक में शामिल कई सहभागियों ने अपने विचार और चिंताएं व्यक्त कीं। टी.एन. एम.आर.बी. नर्स वेलफेयर यूनियन की एक नर्स और यूनियन कार्यकर्ता कॉमरेड कला मुरुगेसन ने बताया कि यूनियन में सक्रिय रूप से काम करने वालों को प्रशासन द्वारा विभिन्न तरीक़ों से परेशान किया जाता है। उन्होंने अपना दृढ़ विश्वास व्यक्त किया कि एकता के साथ लड़कर ही नर्सें अपने अधिकारों को जीत सकती हैं।

सी.ओ.आई.टी.यू. नर्सेज यूनियन के कॉमरेड सिंधन ने बताया कि किस तरह मज़दूरों को उनके अपने मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ समझौता किए बिना लड़ना ही शोषण को ख़त्म करने का एकमात्र तरीक़ा है। ऑटोमोबाइल उद्योग में काम करने वाले कॉमरेड विनोद ने बताया कि किस तरह पूंजीपति वर्ग मज़दूरों को तरह-तरह से बांट रहा है और हमारी ताक़त को कमजोर कर रहा है। उन्होंने पूंजीपति वर्ग द्वारा पैदा किए जा रहे इन सभी विभाजनों को ख़त्म करने और हमारी अपनी एकता को मजबूत करने के लिए मज़दूर वर्ग के संघर्ष को आगे ले जाने पर ज़ोर दिया।

सभी सहभागियों द्वारा मज़दूरों की एकता को मजबूत करने और मज़दूर-विरोधी क़ानूनों और मज़दूर वर्ग पर अन्य हमलों के ख़िलाफ़ बिना किसी समझौते के संघर्ष करने के संकल्प के साथ बैठक का समापन हुआ।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *