इस्राइली राज्य ने इस वर्ष की शुरुआत से ही फिलिस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ अपने अत्याचारों को बहुत तेज़ कर दिया है। एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जब इस्राइली राज्य द्वारा फिलीस्तीनियों के ख़िलाफ़, ख़ासकर, वेस्ट बैंक के इस्राइली क़ब्जे़ वाले क्षेत्रों में और गाजा पट्टी के साथ-साथ, पूर्वी येरुशलम पर छापा मारकर और मिसाइलों के ज़रिये हमले किये जाते हैं। इस्राइल की गोलीबारी में बच्चों सहित, दर्जनों फिलिस्तीनी लोग मारे गये हैं। सैकड़ों घर उजाड़ दिए गए हैं, जिनमें रहने वालों के पास, और कहीं जाने का कोई ठिकाना नहीं है। साथ ही साथ, नेतन्याहू की अगुवाई वाली उग्रराष्ट्रवादी गठबंधन सरकार, जो पिछले साल दिसंबर में सत्ता में आई थी, उसने इस्राइली क़ब्जे़ वाले फिलिस्तीनी इलाकों में यहूदियों की कालोनियां स्थापित करने के अभियान को आक्रमकता से आगे बढ़ाया है। इन इलाकों में रहने वाले फिलीस्तीनी लोगों ने इन सभी हमलों का जबरदस्त विरोध किया है।

दुनियाभर में लोगों ने इस्राइली राज्य के बढ़ते अपराधों के ख़िलाफ़ अपना विरोध प्रकट किया है। इस्राइल में भी दसों-हजार लोगों ने इसके खि़लाफ़ प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और अपना विरोध जताया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने, संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जांच आयोग की सिफ़ारिश को स्वीकार करते हुए दिसंबर 2022 के अंत में एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में इस्राइल द्वारा फिलिस्तीनी ज़मीन पर क़ब्जे़ की अवैधता के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने के लिए कहा गया था। इस्राइली राज्य दुनिया के मंच पर अकेला है, फिर भी वह बड़े घमंड के साथ अपने हमलों को और भी तेज़ी से बढ़ा रहा है, क्योंकि अमरीकी साम्राज्यवाद उसे पूरी तरह से समर्थन देता है। अमरीकी साम्राज्यवाद इस्राइल को लगातार हथियारों से लैस करने में मदद करता रहा है। साथ ही साथ वह अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अन्य देशों द्वारा इस्राइल की कार्रवाइयों की निंदा करने के हर क़दम को रोकने की कोशिश करता है।
सिर्फ़ जनवरी में ही, इस्राइली हमलों और छापेमारी में 8 बच्चों सहित 36 फिलिस्तीन के लोग मारे गए हैं। इस्राइली सेना द्वारा हाल ही में किए गए कुछ नए अपराध हैं :
- 26 जनवरी को जेनिन में शरणार्थी शिविर पर किये गए एक हमले में 9 फिलिस्तीन के लोग मारे गए। उसी दिन, रामल्लाह और पूर्वी येरुशलम में इस्राइली हमलों में 2 अन्य लोग भी मारे गए।
- 5 फरवरी को, अक़ाबत जब्र शरणार्थी शिविर पर एक बड़े हमले में कम से कम 5 फिलिस्तीनी पुरुष मारे गए। इस्राइली अधिकारियों ने इन मृत लोगों के शवों को उनके परिवारों को अभी तक नहीं दिया है।
- 6 फरवरी को नब्लस में छापेमारी के दौरान एक फिलिस्तीनी किशोर के सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
1948 में अपनी स्थापना के बाद से ही इस्राइली राज्य एक आक्रामक और विस्तारवादी राज्य रहा है। इसका जन्म एंग्लो-अमरीकी साम्राज्यवाद की साज़िशों का एक अभिन्न हिस्सा था। इसका गठन एंग्लो-अमरीकी साम्राज्यवाद ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, इस तेल-समृद्ध क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा के लिए किया था। इस्राइल को फिलिस्तीनी लोगों की ज़मीन पर जबरदस्ती क़ब्ज़ा करके स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों में 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा फिलिस्तीनी लोगों का है, जबकि उन्हें इस क्षेत्र की ज़मीन का 30 प्रतिशत से भी कम दिया गया था। परन्तु वह ज़मीन भी उनकी नहीं रही, क्योंकि शुरू से ही नए इस्राइली राज्य की सेना ने उन पर आक्रमण किया और उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाद के दशकों में इस्राइल द्वारा इस क्षेत्र में फिलिस्तीनियों की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करना जारी रखा गया। नतीजतन, इस समय 15 लाख से अधिक फिलिस्तीनी लोग जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, मिस्र, सऊदी अरब सहित इस इलाके के विभिन्न देशों में शरणार्थियों की तरह अपना पूरा जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हैं। जो फिलिस्तीनी लोग इस्राइल के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में रह रहे हैं, उनके घरों के आस-पास स्थापित की गई, सैकड़ों चौकियों पर तैनात इस्राइली सशस्त्र बलों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। फिलिस्तीनी लोगों को सशस्त्र बलों द्वारा उनके घरों में छापेमारी व तोड़़फोड़ तथा अपमानजनक तरीक़ों से की जाने वाली तलाशी के ख़तरे का सामना रोज़-रोज़ करना पड़ता है।
फिलीस्तीनी लोगों के ख़िलाफ़ इस्राइली आक्रमकता के प्रमुख पहलुओं में से एक है कि इस्राइली क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में आवासीय कालोनियां बनाने के लिए यहूदी लोगों को उकसाना। इस्राइल का यह क़दम, चौथे जेनेवा कन्वेंशन के अंतर्राष्ट्रीय असूलों का सीधा उल्लंघन है। यह क़ब्ज़ाकारी ताक़त पर अपनी जनसंख्या को क़ब्ज़े वाले क्षेत्र में बसाने से रोकता है। नेतन्याहू सरकार ने अपने इस अभियान को पूरी ताक़त से आगे बढ़ाने की मंशा जाहिर की है। इस समय इस्राइली क़ब्जे़ वाले वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलम में लगभग 250 ऐसी अवैध आवासीय कॉलोनियां हैं, जिनकी आबादी 6 लाख से भी अधिक है। इन्हें इस्राइली राज्य द्वारा पूर्ण सशस्त्र सुरक्षा प्रदान की जाती है। साथ ही, फिलिस्तीनी लोगों को अपनी ही ज़मीन पर घर बनाने के लिये भी अनुमति लेनी पड़ती है, जो अक्सर नहीं दी जाती है। इन क्षेत्रों में फिलिस्तीनी लोगों के घरों को गिराने के लिए इस्राइली अधिकरी यह बहाना देते हैं कि उनके घर का निर्माण “बिना अनुमति” के किया गया था!
इस बीच, जनवरी में अमरीकी साम्राज्यवाद और इस्राइल ने अभी तक का अपना सबसे बड़ा संयुक्त सैन्य अभ्यास किया। जिसमें हजारों सैनिकों, विमानों, नौसैनिक जहाजों और तोपों को शामिल किया गया। इन सैन्य अभ्यासों का स्पष्ट उद्देश्य, ईरान को धमकाना है, जिसने स्पष्ट रूप से फिलिस्तीनी लोगों के संघर्ष का समर्थन किया है। ईरान इस क्षेत्र में, अमरीकी साम्राज्यवाद के वर्चस्ववादी मंसूबों को हासिल करने में सबसे बड़ी रुकावट है।
इस्राइली राज्य के लगातार बढ़ते बर्बर अत्याचारों के बावजूद, फिलिस्तीनी लोगों ने अपनी मातृभूमि के अधिकार की हिफ़ाज़त के लिए, इस्राइली आक्रमण के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाना जारी रखा है। उन्हें, इस संघर्ष में हिन्दोस्तानी लोगों और दुनियाभर के सभी न्यायप्रिय लोगों का समर्थन प्राप्त है।
फिलिस्तीनी लोगों का संघर्ष अमर रहे!