मजदूरों से साक्षात्कार – 23फरवरी, 2011को संसद पर मजदूरों की रैली में मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने साक्षात्कार किया

श्री सौरीबंधु कर, महासचिव, एटक, भुवनेश्वर, ओडिसा

प्र. – इस रैली में क्यों आए हैं?

उ. – ट्रेड यूनियन के संयुक्त बुलावे पर आये हैं।

प्र. – किस तरह के मजदूर ओडिसा से यहां आये हैं?

उ. – आशा मजदूर, एमडीएम वाचिका, आंगनवाड़ी मजदूर, मिड डे मील वर्कर, बीड़ी बनाने वाले मजदूर इत्यादि।

श्री सौरीबंधु कर, महासचिव, एटक, भुवनेश्वर, ओडिसा

प्र. – इस रैली में क्यों आए हैं?

उ. – ट्रेड यूनियन के संयुक्त बुलावे पर आये हैं।

प्र. – किस तरह के मजदूर ओडिसा से यहां आये हैं?

उ. – आशा मजदूर, एमडीएम वाचिका, आंगनवाड़ी मजदूर, मिड डे मील वर्कर, बीड़ी बनाने वाले मजदूर इत्यादि।

प्र. – आपके इलाके में मजदूरों की हालत कैसी है, वहां क्या-क्या समस्याएं हैं?

उ. – आज मजदूर संकट में हैं। असंगठित क्षेत्र के साथ-साथ संगठित क्षेत्र के मजदूरों की भारी समस्याएं हैं। मजदूरों को छोटी-छोटी मांगों के लिए लड़ना पड़ रहा है, जो उनके अधिकार हैं। मजदूरों की ये समस्याएं पूरे देश में व्याप्त हैं। सभी ट्रेड यूनियनों ने जो मांगें उठाई हैं वे मजदूरों के 20 साल के अनुभव से निकल रहा है। 1991 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण के कार्यक्रम को लागू किया था, जिसका मजदूरों व किसानों की रोजी-रोटी पर व्यापक बुरा असर पड़ा है।

प्र. – हमारा यह मानना है कि वर्तामान पूंजीवादी तंत्र का विकल्प मजदूर-किसान का राज है, इस पर आपके क्या विचार हैं?

उ. – यही हमारी तमन्ना है कि देश में समाजवाद स्थापित हो।

श्री नौरंगी चौरसिया (रेलवे मजदूर) बनारस, उत्तार प्रदेश

प्र. – रैली में भाग लेकर आपको कैसा लगा?

उ. – बहुत अच्छा लगा लाखों मजदूरों को देखकर। मुझे लगता है कि मजदूरों को यहां अपनी ताकत दिखाने के लिए बुलाया गया था। उनके भाषण से ऐसा लगता है कि वे सरकार से मोल-भाव कर रही हैं कि यदि उनकी मानी नहीं गई तो सरकार बदल देंगे। सरकार कई सालों से बदल रही है, लेकिन मजदूरों की परिस्थितियों में तो कोई अंतर नहीं आया है।

प्र. – आपके प्रदेश से कितने मजदूरों ने रैली में भाग लिया?

उ. – मेरे अनुमान में 25,000 के लगभग तो होगा ही।

प्र. – हाल में मिस्र के लोगों ने ज़ालिम शासक को भगाया। हिन्दोस्तान के मजदूर ऐसा क्यों नहीं कर सकते? हमारे सामने क्या रुकावटे हैं?

उ. – आज हम लाखों की संख्या में यहां, संसद के सामने हैं। अगर मिस्र के लोगों की तरह हम यहां बैठ जाते और तब तक हटने से इंकार करते जब तक यह जालिम सत्ता न हटे, बेशक हमें इसके लिए उठाकर जेल में भी बंद कर दिया जाये, तो कोई बात होती न! फिर पूरे देश और दुनिया को यह खबर हो जाती कि यह संप्रग सरकार, जिसने पहले तो 'मानवीय चेहरे' का ढोंग किया था, जिस कारण कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों और उनके ट्रेड यूनियनों ने उसकी सरकार बनाने में मदद की थी, जो दुबारा 'आम आदमी' के नाम पर जीतकर सरकार में आयी है, वह असलियत में कितनी मजदूर परस्त सरकार है। अगर हम मिस्र के लोगों की तरह सत्ता को बदलने की ठानकर अपने संघर्ष में डटे रहते तो शायद हम भी राजनीतिक व्यवस्था में कुछ ठोस परिवर्तन ला सकते और खुद अपना भविष्य तय कर सकते। इसी उम्मीद के साथ शायद बहुत से मजदूर यहां आये हैं परंतु आज के कार्यक्रम से ये उम्मीदें पूरी नहीं होने वाली हैं।

डा. हेमचन्द्र झा (जिला सचिव) सीपीआई, मधुबनी, बिहार

प्र. – आप किस क्षेत्र के मजदूरों को संगठित करते हैं?

उ. – मैं खेतीहर मजदूरों को संगठित कर रहा हूं। हमारी यूनियन इन मजदूरों को शोषण के खिलाफ़ लड़ने और अपने अधिकारों को पाने के लिए काम कर रही है।

प्र. – मधुबनी में खेत मजदूरों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

उ. – उद्योग में यह जिला बहुत पिछड़ा है। ज्यादातर लोग यहां कृषि से जुड़े हैं। पूरा जिला सूखा प्रभावित है। नरेगा में लूट-मार मची है। इसमें रोजगार नहीं है। खेत मजदूरों की हालत बहुत खराब है। खेत मजदूर रोजगार के अभाव के चलते हरियाणा, पंजाब पलायन कर रहे हैं।

प्र. – हाल में मिस्र के लोगों ने ज़ालिम शासक को भगाया, हिन्दोस्तान के मजदूर ऐसा क्यों नहीं कर सकते, हमारे सामने क्या रुकावटे हैं?

उ. – हमें उम्मीद है, जैसा मिस्र में हुआ वह हमारे देश में भी होगा। यहां किसान आत्महत्या कर रहा है। हमें समाजवाद के लिए लड़ना है। यहां आंदोलन ऊपर से लेकर नीचे तक विकसित करना होगा।

प्र. – हमारा यह मानना है कि वर्तामान पूंजीवादी तंत्र का विकल्प मजदूर-किसान का राज है, इस पर आपके क्या विचार हैं?

उ. – इससे हम सहमत हैं।

रमेश गोवलकर (बैंक कर्मचारी) वर्धा, महाराष्ट्र

प्र. – इस रैली को देखकर आपको कैसा लग रहा है?

उ. – रैली में उमड़ते मजदूरों के सैलाब को देखकर, हमें पूरा यकीन है कि देश के मजदूर पूंजीपतियों और उनकी सरकार के हमलों को और बर्दाश्त नहीं करेंगे और जी-जान लगाकर लड़ेंगे। मजदूर इंसाफ और अधिकार की मांग कर रहे हैं।

प्र. – पांच मांगों को लेकर सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघर्ष के लिए एकजुट हुए। इस संदर्भ में आपकी राय क्या है?

उ. – 6 साल पहले संप्रग सरकार 'आम आदमी' के नारे पर बनी थी। इन सालों में यह साफ हो गया है कि उनके 'आम आदमी' में देश के मजदूर व किसान नहीं आते हैं। देश का बच्चा-बच्चा जान गया कि संप्रग सरकार का आम आदमी टाटा, बिरला, अंबानी, मित्ताल जैसे आदमी हैं।

अब किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल है मजदूरों को गुमराह करना कि इस व्यवस्था में अमीर और गरीब, दोनों की भलाई हो सकती है। मजदूर सचेत हो रहे हैं। मजदूर कांग्रेस पार्टी की यूनियन के नेताओं से पूछ रहे हैं कि आप किसके लिए काम करते हैं। वामपंथी यूनियन नेताओं से मजदूर सवाल कर रहे हैं कि आपने कांग्रेस नीत गठबंधन को 4 साल तक समर्थन क्यों दिया। आज की रैली में पार्टी और यूनियन का भेदभाव किये बिना देशभर से लाखों मजदूरों का एकत्रित होना इसी बात को दिखाता है, यह मेरा विचार है।

प्र. – वर्तमान पूंजीवादी तंत्र का क्या विकल्प चाहते हैं?

उ. – इस देश में मजदूरों और किसानों का राज चाहते हैं।

प्र. -यह कैसे संभव होगा?

उ. – आज हम इतने लाखों की तादाद में यहां एकत्रित हुए हैं तो ऐसा लगता है कि हम चाहें तो आसानी से ही सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं। हम मजदूर-मेहनतकशों की संख्या शोषकों से कई गुना ज्यादा है परंतु खेद है कि हमें बांटकर रखा गया है, इसलिए इस या उस वेश में वही मजदूर विरोधी नीतियां चलती रहती हैं। हमारे अंदर यह ख्वाब फैलाया गया है कि इन्हीं पार्टियों में से किसी नये गठबंधन से मजदूर परस्त नीतियां अपनाने की उम्मीद की जा सकती है, जो कि एक झूठा सपना ही है। पर जब तक हम इस सपने से नहीं जागेंगे और पूंजीपतियों की पार्टियों का शासन खत्म करके मजदूर का राज लाने का प्रोग्राम नहीं अपनायेंगे, तब तक हमारे लिए कोई निजात नहीं है।

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