सर्वव्यापी पेंशन के अधिकार की गारंटी होनी चाहिए

राष्ट्रीय पेंशन योजना (एन.पी.एस.), जो सरकारी कर्मचारियों पर जबरदस्ती थोपी गयी थी, सरकारी कर्मचारी देशभर में उसका विरोध कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों ने एन.पी.एस. को ख़त्म करने और पुरानी पेंशन स्कीम (ओ.पी.एस.) को वापस लाने की मांग की है। केंद्र सरकार के कर्मचारियों की यूनियनों की एक फेडरेशन ने ओ.पी.एस. को बहाल करने के लिए कैबिनेट सचिव को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि एन.पी.एस. सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की वृद्धावस्था के लिए एक त्रासदी है।

एन.पी.एस. को केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए 22 दिसंबर, 2003 को अधिसूचित किया गया था और 1 जनवरी, 2004 से सरकारी सेवा में शामिल होने के लिये भर्ती होने वाले नए कर्मचारियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया था। अगले दस वर्षों में, अधिकांश राज्य सरकारों ने एन.पी.एस. को लागू करने की घोषणा की है और उसे अपनाया है। हालांकि, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब की राज्य सरकारों ने अपने राज्य के सरकारी कर्मचारियों की मांगों के चलते पिछले एक साल में ओ.पी.एस. को फिर से लागू कर दिया है।

एन.पी.एस. का विरोध अब बढ़ रहा है क्योंकि हजारों सरकारी कर्मचारी जो 2004 में या उसके तुरंत बाद नौकरी में शामिल हुए थे, अभी सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उन्हें अपनी मासिक पेंशन मिलनी शुरू हो गई है। एन.पी.एस. के तहत मिलने वाली अल्प मासिक पेंशन को लेकर वे काफी नाराज़ हैं।

एन.पी.एस. और ओ.पी.एस. के प्रावधानों की तुलना

प्रावधान एन.पी.एस. ओ.पी.एस.
योजना (स्कीम) पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण द्वारा प्रशासित और विनियमित है। यह सरकारी कर्मचारियों के लिए 2004 में और अन्य के लिए, मई 2009 में शुरू की गयी। केंद्र सरकार के लिए, इस पेंशन योजना का संचालन पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग करता है।
इस योजना को कौन चुन सकता है? 1 जनवरी, 2004 के बाद सेवा में शामिल होने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य है। निजी कंपनियों के पास कर्मचारी भविष्य निधि (ई.पी.एफ.) के स्थान पर एन.पी.एस. देने की पेशकश करने का विकल्प है। कर्मचारी यदि चाहते हैं तो वे ई.पी.एफ. से एन.पी.एस. योजना में बदल सकते हैं। 1 जनवरी, 2004 के बाद अब यह विकल्प उपलब्ध नहीं है।

 

ये किस प्रकार की पेंशन है? योगदान परिभाषित है लेकिन लाभ परिभाषित नहीं। योजना के अनुसार न्यूनतम पेंशन की गारंटी का कोई प्रावधान नहीं है। कर्मचारी योगदान नहीं है; लाभ परिभाषित है-अंतिम अर्जित वेतन का 50 प्रतिशत; न्यूनतम पेंशन 9,000 रुपये प्रति माह की गारंटी है।
योगदान सरकारी कर्मचारी मूल वेतन व डी.ए. के जोड़ का 10 प्रतिशत योगदान देता है और सरकार समान राशि का योगदान करती है। सरकार का योगदान 1 अप्रैल, 2019 से अब 14 प्रतिशत हो गया है। कर्मचारियों से कोई योगदान नहीं
पेंशन निधि एकत्र की गई कुल राशि नामित पेंशन फंड प्रबंधकों को वितरित की जाती है जो इसे इक्विटी, कॉर्पोरेट बॉन्ड और सरकारी सिक्यूरिटीज़ की मिश्रित स्कीम में निवेश करते हैं। निवेश से मिलने वाले लाभ से कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद की आय निर्धारित होगी। निवेश पर लाभ की कोई गारंटी नहीं है। यदि शेयर बाज़ार में कोई संकट आता है तो निवेश की गयी पूरी रकम नष्ट होने की संभावना भी हमेशा रहती है। भारत सरकार की संचित निधि से इसका भुगतान किया जाता है। केंद्र सरकार के कुल 1,03,21,000 करोड़ रुपये (2020-21 बजट अनुमान) के कुल वार्षिक सरकारी संवितरण में से 2,32,000 करोड़ रुपये की पेंशन आती है।

जैसा कि यहां दी गई तालिका से पता चलता है, एन.पी.एस. एक परिभाषित लाभ योजना नहीं है। इसका मतलब है कि कर्मचारी को उसके पिछले वेतन के एक निश्चित अनुपात में पेंशन मिलने की कोई गारंटी नहीं है। एक सेवानिवृत्त कर्मचारी को मिलने वाली मासिक पेंशन सट्टा-बाज़ार की अटकलों पर निर्भर है। ओ.पी.एस. में मुद्रास्फीति से होने वाली मूल्य वृद्धि की भरपाई के लिए महंगाई भत्ते का प्रावधान भी था, परन्तु एन.पी.एस. में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। एन.पी.एस. न्यूनतम मासिक पेंशन की गारंटी भी नहीं देती। इसके विपरीत, ओ.पी.एस. में 9,000 रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन की गारंटी थी।

शेयर बाज़ार में निवेश के कारण एन.पी.एस. पर अधिक लाभ मिलने के सभी दावों के बावजूद, लोगों का अनुभव यह रहा है कि सेवानिवृत्त कर्मचारी को इस नयी स्कीम में, ओ.पी.एस. की तुलना में बहुत कम मासिक पेशन प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, एक अधिकारी जो 30,500 रुपए के मूल वेतन पर सेवानिवृत्त हुआ, उसे एन.पी.एस. के तहत मासिक पेंशन के रूप में केवल 2,417 रुपए प्राप्त हुए, जबकि ओ.पी.एस. के तहत उसे 15,250 रुपए की पेंशन मिलती थी। इसी तरह, कई सरकारी कर्मचारी जिन्हें 15 साल की सेवा के बाद ओ.पी.एस. के तहत प्रति माह 20,000 रुपये के करीब मिलते थे, अब प्रति माह सिर्फ 2500 रुपए से कुछ ही अधिक राशि की पेंशन मिल रही है।

आज एन.पी.एस. बनाम ओ.पी.एस. की अच्छाई और बुराइयों पर गहरी बहस चल रही है। यह बहस दो विरोधी दृष्टिकोणों के बीच टकराव को दर्शाती है।

एक दृष्टिकोण पूंजीपति वर्ग का है जो सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को दी जाने वाली पेंशन को सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के रूप में देखता है। यह पेंशनरों को एक परजीवी के रूप में देखता है और इस हक़ीक़त से इनकार करता है कि उन्होंने अपने कामकाजी जीवन के दौरान समाज की संपत्ति बनाने में योगदान दिया है। साथ ही, पूंजीपति यह भी मांग करते हैं कि सरकार सार्वजनिक खजाने से पूंजीपतियों को अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए करों में हर तरह की रियायतें और प्रोत्साहन देती रहे।

दूसरा दृष्टिकोण मज़दूर वर्ग का है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, सरकार का यह फ़र्ज़ है कि वह उन सभी लोगों को पेंशन की एक निश्चित राशि का भुगतान करे, जो दशकों तक काम करने के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं और काम करने की हालत में नहीं रहते हैं। कर्मचारी ओ.पी.एस. की वापसी की मांग, इस आधार पर कर रहे हैं कि प्रत्येक कर्मचारी को एक सुनिश्चित पेंशन पाने का मूलभूत अधिकार है, जिसे उसके सेवानिवृत्त होने के समय के वेतन के एक निश्चित अनुपात (जैसे कि 50 प्रतिशत) के रूप में परिभाषित किया गया है।

इस समय हिन्दोस्तान में, निजी उद्यमों के मज़दूर किसी भी वैधानिक पेंशन योजना के अंतर्गत नहीं आते हैं। केवल सरकारी कर्मचारी वैधानिक पेंशन योजना के अंतर्गत आते हैं। इसका मतलब है कि सभी मज़दूरों में से केवल 4 प्रतिशत हिस्सा ही, वैधानिक रूप से पेंशन पाने का हक़दार है। हमारे देश में मेहनतकश लोगों का बड़ा हिस्सा, जो केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नियोजित नहीं किया गया है, वह सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी पेंशन या सामाजिक सुरक्षा का पात्र नहीं है।

सरकार का दावा है कि एन.पी.एस. के माध्यम से पेंशन को सर्वव्यापी बनाना उसका लक्ष्य है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र के मज़दूर भी एन.पी.एस. का हिस्सा हो सकते हैं। यह प्रचार मज़दूरों को बेवकूफ बनाने के लिए किया जा रहा है। निजी क्षेत्र के मालिकों को मज़दूरों की पेंशन निधि में कुछ भी योगदान नहीं करना होता है। इसमें सरकार का भी कोई योगदान नहीं होता। यह पूरी तरह से एक कर्मचारी के वेतन से लिया जाएगा और वित्तीय सट्टेबाजों के लिए मुनाफ़े सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य रूप से शेयर बाज़ार में निवेश किया जाएगा।

मज़दूर अपने काम के वर्षों के दौरान समाज की प्रगति के लिए अपने श्रम के ज़रिये योगदान करते हैं। इसलिये समाज का यह कर्तव्य है कि उनकी वृद्धा अवस्था में या किसी दुर्घटना के कारण जब उनको चोट लग जाये और वे काम करने में असमर्थ हो जायें, तब उनकी देखभाल सुनिश्चित की जाए। राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूंजीपतियों द्वारा मज़दूरों के श्रम से निकाले गए बेशी मूल्य का एक हिस्सा वापस लिया जाए और मज़दूरों की पेंशन निधि में डाला जाए। यह मज़दूरों के वेतन से काटी जाने वाली राशि (उनके अपने योगदान) के अलावा अलग राशि होनी चाहिए। जिन मज़दूरों के पास निश्चित नियोक्ता नहीं हैं, जैसे कि निर्माण मज़दूर, उनके लिए सेवानिवृत्ति के बाद उनके जीवन के लिए पेंशन फंड बनाने की ज़िम्मेदारी राज्य को लेनी चाहिए। किसी भी हालत में कर्मचारियों के पेंशन फंड को सट्टा-बाज़ारों में निवेश नहीं किया जाना चाहिए।

परिभाषित लाभ की सर्वव्यापी पेंशन योजना के लिए संघर्ष पूरी तरह से जायज़ है। यह एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए संघर्ष का हिस्सा है जो मेहनतकशों की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध होगा, न कि पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने के लिए। ऐसे समाज में, राज्य प्रत्येक वयस्क को आजीविका प्रदान करने, रोज़गार की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उसके जीवन के काम के वर्षां के दौरान सम्मानजनक जीवनयापन के लिए उपयुक्त मज़दूरी सुनिश्चित करने और प्रत्येक सेवानिवृत्त कर्मचारी को एक परिभाषित और नियमित पेंशन की गारंटी देने के लिए प्रतिबद्ध होगा। ऐसे समाज के निर्माण के लिए सभी मज़दूर मेहनतकश लोगों को संगठित होकर संघर्ष करना होगा।

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