हर साल की तरह, अब भी केंद्रीय बजट की प्रस्तुति के समय हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों की विभिन्न लॉबियां (दबाव गुट) कॉरपोरेट टैक्स में और ज्यादा कटौती तथा सरकार से और ज्यादा रियायतों की मांग उठा रही हैं। इसके लिए वे यह तर्क पेश कर रहे हैं कि जब वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो रही है, तो हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था के तेज़ गति से बढ़ते रहने के लिए पूंजीपतियों को अधिक “प्रोत्साहन“ की आवश्यकता है।
हिन्दोस्तान को ’दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था’ बनाने के नाम पर, साल-दर-साल, केंद्रीय बजट कामकाजी लोगों के जीवन स्तर पर नए-नए हमलों की घोषणा करता है। अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास का यह अर्थ बन गया है कि चंद लोगों की संपत्ति को तेज़ी से बढ़ाने के लिए, मज़दूरों और किसानों का शोषण और तीव्र किया जाये। साल-दर-साल, केंद्रीय बजट प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के ज़रिये पूंजीपतियों की दौलत को बढ़ाने के लिए लोगों को लूटता आ रहा है।
केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान, इजारेदार पूंजीपतियों के निर्देश पर विभिन्न ’कर सुधार’ किए हैं, यह दावा करते हुए कि इनसे क़ीमतें कम हो जायेंगी, अधिक नौकरियां पैदा होंगी और इस तरह लोगों का भला होगा। लेकिन, इनमें से प्रत्येक ’सुधार’ का परिणाम वास्तव में मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकशों को लूटकर, इजारेदार पूंजीपतियों को और मोटा करना ही रहा है।
जुलाई 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को पेश करते समय, उसे सबसे बड़ा ’कर सुधार’ बताया गया था। यह दावा किया गया था कि यह कई करों और उनके व्यापक प्रभाव को समाप्त करके क़ीमतों में कमी लाएगा। परन्तु, जुलाई में जी.एस.टी. के लागू होते ही, अधिकांश सेवाओं की क़ीमतों में तुरंत वृद्धि हो गयी क्योंकि जी.एस.टी. के पहले जो सेवा कर हुआ करता था, उसकी दर 15 प्रतिशत थी, जबकि उसके मुक़ाबले अधिकांश सेवाओं के लिए जी.एस.टी. की दर 18 प्रतिशत तय कर दी गई।
पांच साल बाद, यह स्पष्ट है कि जी.एस.टी. के ज़रिये, क़ीमतों को कम करने और कामकाजी लोगों पर कर का बोझ कम करने के बजाय उनसे और अधिक करों का भुगतान करवाया जा रहा है।
वर्ष | जी.एस.टी. संग्रह (करोड़ रुपये में) |
2018-19 | 11,77,370 |
2019-20 | 12,22,117 |
2020-21 | 11,36,803 |
2021-22 | 14,83,200 |
अप्रैल-नवंबर 2022 में जी.एस.टी. संग्रह, 2021 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 24 प्रतिशत अधिक था। इस आधार पर 2022-23 में जी.एस.टी. संग्रह लगभग 18,00,000 करोड़ रुपये होगा। इस प्रकार, जी.एस.टी. के लागू होने के पांच साल बाद मज़दूर वर्ग और किसानों से जी.एस.टी. के ज़रिए 6 लाख करोड़ रुपये अधिक वसूले जा रहे हैं।
जहां मज़दूर वर्ग और किसानों पर कर का बोझ बढ़ाया जा रहा है, वहीं कॉर्पोरेट घरानों पर कर का बोझ कम किया जा रहा है। 2019 में सरकार ने कॉर्पोरेट कर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने की घोषणा की थी, साथ ही 2020-21 से नए निगमों के लिए कर की दर 15 प्रतिशत और कम कर दी गई थी। कॉर्पोरेट करों को कम करने की घोषणा के समय, यह दावा किया गया था कि यह पूंजीपतियों को अपनी उत्पादक क्षमता को बढ़ाने में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा और इस तरह अधिक रोज़गार पैदा होगा।
सरकारी खर्च और धन उपयोग के अनुमानों पर संसदीय समिति (पार्लियामेंट्री कमिटी ऑन एस्टिमेट्स) के अनुसार, कॉर्पोरेट कर की दर में कमी से पूंजीपतियों को दो सालों, 2019-20 और 2020-21, में 1.84 लाख करोड़ रुपयों का अतिरिक्त मुनाफ़ा हुआ है, अतः सरकार को उतना ही राजस्व का नुक़सान।
कर कटौती के परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट मुनाफ़ा और शेयर बाज़ार में बढ़ोतरी ज़रूर हुई है। पूंजीपतियों ने उत्पादन के नए साधन बनाने में पूंजी निवेश की दर में कोई वृद्धि नहीं की है। बड़े पूंजीपतियों ने अपने अधिक मुनाफ़े का इस्तेमाल दूसरी कंपनियों का अधिग्रहण करने के लिए किया है ताकि इजारेदारी बढ़ायी जा सके। बेरोज़गारी पहले की ही तरह, ऊंचे स्तर पर बनी रही है।
जब सरकार लोगों के लिए किसी चीज़ को सस्ता करने के लिए पैसा खर्च करती है, तो इसे सब्सिडी या ‘रेवड़ी’ कहा जाता है। परन्तु, पूंजीवादी मुनाफ़े को बढ़ावा देने के लिए जो पैसा खर्च किया जाता है, उसे ’प्रोत्साहन’ कहा जाता है। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पी.एल.आई.) योजना 2021-22 में 14 क्षेत्रों के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत इन क्षेत्रों की पूंजीवादी कंपनियों को एक आधार वर्ष से शुरू करके, अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए अतिरिक्त पैसा दिया जाता है। अगले पांच वर्षों में इस तरह के तथाकथित प्रोत्साहनों के माध्यम से पूंजीपतियों को 2 लाख करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव है। सैकड़ों हिन्दोस्तानी और विदेशी कंपनियों ने इस तरह के प्रोत्साहन के लिए आवेदन किया है, जिसमें एप्पल और सैमसंग जैसी दुनिया की कुछ सबसे बड़ी इजारेदार कम्पनियां भी शामिल हैं।
पूंजीपति अब और अधिक वस्तुओं, यहां तक कि खिलौनों और साइकिलों तक के लिए पी.एल.आई. के विस्तार की मांग कर रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि बजट में पी.एल.आई. के लिए प्रावधान काफी हद तक बढ़ाया जाए।
हर पूंजीपति अपने उत्पादन को हमेशा अधिकतम करने की कोशिश करता है, अगर वह अपने उत्पादन को बेचकर मुनाफ़ा कमा सकता है। ऐसा करने के लिए उसे प्रोत्साहन की आवश्यकता क्यों है? इसीलिए पी.एल.आई. और कुछ नहीं है, बल्कि लोगों का पैसा पूंजीपतियों को सौंपने का एक और तरीक़ा है।
उपरोक्त प्रोत्साहनों के अलावा, सरकार ने देश के अन्दर जगह-जगह पर सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए 76,000 करोड़ रुपये की एक और विशेष प्रोत्साहन योजना की घोषणा की है। इस योजना के अंतर्गत, फैक्ट्री की आधी लागत सरकार से मिलेगी।
निजी पूंजीवादी कंपनियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए सार्वजनिक धन को लूटकर उन्हें सौंपने का एक सबसे बड़ा तरीक़ा है सरकारी बैंकों से पूंजीपतियों द्वारा लिए गए और न चुकाए गए कर्ज़ों को माफ़ कर देना। सिर्फ़ पिछले 5 वर्षों में 10.71 लाख करोड़ रुपये के बैंक कर्ज़ों को इस तरह माफ़ किया गया है।
जैसे-जैसे 1 फरवरी नजदीक आयी है, पूंजीपतियों के मीडिया द्वारा बजट को लेकर बहुत उत्साह फैलाया गया है। इस बात पर बहस की जाती है कि बजट किसान समर्थक होगा, मज़दूर समर्थक या पूंजीपति समर्थक होगा। इस तरह की बहसों का उद्देश्य इस सच्चाई को छुपाना है कि बड़े पूंजीपति ही सरकार की नीतियों का एजेंडा तय कर रहे हैं। चाहे भाजपा या कांग्रेस पार्टी या पूंजीपतियों की कोई अन्य पार्टी सरकार में हो, सरकार आवश्यक रूप से इजारेदार घरानों की अगुवाई में पूंजीपतियों के हितों की सेवा करेगी। हमारा ऐतिहासिक अनुभव यही दर्शाता है।
पिछले वर्षों की तरह, 2023-24 का बजट भी अधिकांश मेहनतकश लोगों को लूटकर, सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के अधिक से अधिक मुनाफ़ों की लालच को पूरा करने की दिशा में चलायी जाने वाली अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगा।