सरकार ने राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एन.एम.पी.) के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्रमों की संपत्तियों को इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपने कर, वर्ष 2022-2023 में 1,62,000 करोड़ रुपये अर्जित करने का लक्ष्य रखा था। अब, यह बताया गया है कि सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने से, 50,000 करोड़ रुपये से अधिक रकम से पीछे है।
2021-2022 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा एन.एम.पी. की घोषणा की गई थी। इस योजना के तहत, सरकार ने घोषणा की कि वह 2021 से 2025 तक की चार साल की अवधि में बुनियादी ढांचागत संपत्तियों को इजारेदार पूंजीपतियों को हस्तांतरित करके 6 लाख करोड़ रुपये एकत्र करेगी।
इस धन में से 1 लाख 52 हजार करोड़ रुपये से अधिक रेलवे से प्राप्त होने थे। 4 साल की अवधि दौरान, 400 रेलवे स्टेशनों, कोंकण रेलवे, पहाड़ी इलाकों में चलने वाली रेलगाड़ियों, 90 दूसरी रेलगाड़ियों और रेलवे के 15 स्टेडियमों के निजीकरण, आदि के मुद्रीकरण के माध्यम से अर्जित किया जाना था।
साल 2021-22 के दौरान रेलवे, एक रेलवे स्टेशन और रेलवे की कुछ कॉलोनियों को पूंजीपतियों को सौंपकर 800 करोड़ रुपए ही जुटा पाया। चालू वर्ष 2022-23 में 120 स्टेशनों, 30 रेलगाड़ियों और 1,400 किलोमीटर पटरियों के मुद्रीकरण का लक्ष्य रखा गया है। रेलवे द्वारा इस लक्ष्य को पूरा करने की संभावना नहीं दिख रही है।
दूरसंचार विभाग 20,180 करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुक़ाबले अब तक किसी भी दूरसंचार संपत्ति का मुद्रीकरण नहीं कर पाया है। भारतनेट इन्फ्रा और बी.एस.एन.एल. व एम.टी.एन.एल. के टावरों के 3 लाख किलोमीटर से भी अधिक के ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपकर, इस लक्ष्य को हासिल किया जाना था।
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम पाइपलाइनों को पेट्रोलियम मंत्रालय इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपने में अब तक कोई सफलता हासिल नहीं पाया है। बिजली मंत्रालय भी बिजली के बुनियादी ढांचे के मुद्रीकरण के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है।
एक मुख्य क्षेत्र जहां राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के लक्ष्यों को पूरा किया गया है, वह कोयला खनन का क्षेत्र है। वर्ष 2021-22 में और चालू वित्त वर्ष, दोनों में ही यही स्थिति रही है। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के अनुसार, चार वर्षों 2021-22 से 2025-26 के दौरान मुद्रीकरण के लिए कोयला खनन की 160 संपत्तियों की पहचान की गई थी। इनमें माइन (खदान) डेवलपर एंड ऑपरेटर (एम.डी.ओ.) मॉडल के तहत, खदानों और परियोजनाओं की नीलामी शामिल है। एम.डी.ओ. मॉडल के तहत, एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोयले की खदान की मालिक बनी रहती है, लेकिन खदान का विकास और संचालन एक निजी पूंजीपति द्वारा किया जाता है।
2021-22 में, इन दो वर्षों के दौरान, कोयले के मुद्रीकरण से 9,000 करोड़ रुपये से अधिक अर्जित करने का लक्ष्य था। सरकार को 2021-22 में 40,000 करोड़ रुपये से अधिक मिले और कोयला खनन संपत्तियों की बिक्री के माध्यम से चालू वर्ष में 75,000 करोड़ रुपये प्राप्त करने की योजना है। कोयला मंत्रालय को अनुमान है कि इन दो वर्षों में, इजारेदार पूंजीपतियों को कोयला ब्लॉकों को बेचने से 80,000 करोड़ रुपये मिलेंगे व एम.डी.ओ. मॉडल के ज़रिये 30,000 करोड़ रुपये की कमाई होगी।
समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जो मंत्रालय निजीकरण के लक्ष्यों को पूरा करने में असफल रहे हैं, उन पर सरकार यह दबाव डाल रही है कि वे इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या बेचेंगे, इसकी योजना पेश करें। वित्त मंत्री ने प्रस्ताव रखा है कि ऐसे मंत्रालय जो निजीकरण के लक्ष्य को पूरा करने में असफल रहे हैं, आने वाले बजट में उन सबके फंड में कटौती की जाये। इसका मतलब यह है कि सरकार रेलवे, बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल., पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस कंपनियों, बिजली क्षेत्र की उत्पादन और वितरण कंपनियों आदि को और भी अधिक बर्बाद करने की योजना बना रही है और उन्हें पूंजीपतियों को बेहद सस्ते दामों में सौंपने के हालात तैयार कर रही है।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन, पूंजीपतियों के निजीकरण के कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा है। इसका उद्देश्य है पूरे समाज की खनिज सम्पदा को, भूमि व बुनियादी ढांचे की संपत्ति को, इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपना। इन बुनियादी ढांचे की संपत्तियों का निर्माण, मज़दूरों की अनेक पीढ़ियों के श्रम द्वारा किया गया है।
एन.एम.पी. की घोषणा के बाद से पिछले दो वर्षों के नतीजे यह बताते हैं कि निजीकरण के खि़लाफ़ मज़दूरों और मेहनतकश लोगों के बढ़ते विरोध के कारण, इस योजना को लागू करने में सरकार को मुश्किल हो रही है। विशेष रूप से रेल मज़दूरों, बिजली मज़दूरों, पेट्रोलियम व गैस मज़दूरों तथा दूरसंचार के मज़दूरों के जबरदस्त विरोध ने सरकार की इन योजनाओं पर पानी फेर दिया है।
सभी उद्योगों और क्षेत्रों के मज़दूरों को निजीकरण के खि़लाफ़ अपने संघर्ष को तेज़ करने की सख़्त ज़रूरत है, यह चाहे एन.एम.पी. के नाम से या किसी भी रूप में पेश किया जाए। हमें सभी क्षेत्रों और उद्योगों में अपनी एकता को मजबूत करना चाहिए और कोयला तथा अन्य क्षेत्रों के मज़दूरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए, जो इस समय सरकार के निजीकरण के क्रूर हमले का बहादुरी से सामना कर रहे हैं।