वर्ष 2022 ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि किसी भी प्रकार का दमन फिलिस्तीनी लोगों की अदम्य भावना और अपनी मातृभूमि के लिए चले आ रहे उनके लंबे समय के संघर्ष को कुचल नहीं सकता।
फिलिस्तीनी लोगों ने पूर्वी येरूशलम और पश्चिमी तट पर इज़राइली सेना द्वारा किये गये कब्जे़ के खि़लाफ़, अपनी मातृभूमि के लिये सड़कों पर संघर्ष छेड़ दिया है। अमरीकी साम्राज्यवाद और अन्य साम्राज्यवादी ताक़तों द्वारा समर्थित, इज़राइली राज्य ने फिलिस्तीनियों को उनके घरों से बाहर निकालने का काम किया है और खाली हुये घरों और भूमि पर यहूदियों की बस्तियां की स्थापित करने की लंबे समय से चली आ रही अपनी योजना को लागू कर रहा है। इस फासीवादी योजना को लागू करने और फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध को कुचलने के लिए इज़राइली राज्य ने अपने सशस्त्र बलों के ज़रिये बर्बर हिंसा की है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वर्ष 2022 में ही, फिलिस्तीनियों के क़ब्जे़ वाले फिलिस्तीन में 30 बच्चों सहित 171 से अधिक लोगों को इज़राइली सशस्त्र बलों द्वारा गोली मार दी गई थी। यह संख्या इज़राइली सेना द्वारा बार-बार किये गये मिसाइली हमलों के दौरान गाज़ा पट्टी में मारे गए लोगों से अलग है।
नए साल में फिलिस्तीनी लोगों पर इज़राइली सेना द्वारा किये जा रहे जानलेवा हमले बढ़ गए हैं, केवल जनवरी के पहले दो हफ्तों में ही 15 फिलिस्तीनियों के मारे जाने की सूचना है। इज़राइल में सत्ता में आई नई सरकार, क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में अधिक से अधिक बस्तियां स्थापित करने और क़ब्जे़ वाले सभी क्षेत्रों को इज़राइली राज्य में मिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
75 साल पहले, फिलिस्तीन पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन समाप्त होने के बाद इज़राइल राज्य की स्थापना की गई थी। लाखों फिलिस्तीनी लोगों को उनकी मातृभूमि से बाहर निकाल दिया गया और वे अन्य देशों में शरणार्थी बनने को मजबूर हो गये।
1967 में अरब और इज़राइल के बीच हुये युद्ध के बाद, इज़राइल ने पूर्वी येरूशलम, पश्चिम तट और ग़ाज़ा पट्टी की फिलिस्तीनी भूमि पर क़ब्ज़ा कर लिया। इज़राइली सशस्त्र बलों ने पिछले 55 वर्षों से फिलिस्तीन के इन क्षेत्रों पर अपना क़ब्ज़ा जारी रखा है।
फिलिस्तीन के लोगों ने इज़राइल के क़ब्ज़े वाले इलाकों में तैनात सैनिकों द्वारा अपने राष्ट्रीय अधिकारों के हनन को उजागर करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग किया है।
इस संबंध में पूर्वी येरूशलम सहित क़ब्ज़े वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय जांच आयोग ने 27 अक्तूबर, 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलिस्तीनी क्षेत्र पर इज़राइल द्वारा किया गया क़ब्ज़ा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के तहत गैर क़ानूनी है। इसमें फिलिस्तीन की भूमि पर क़ब्ज़ा करने के लिए इज़राइल द्वारा की गई कार्रवाई की निंदा की है। रिर्पोट ने यह इंगित किया कि इज़राइल फिलिस्तीन के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देने से इनकार कर रहा है। इजराइल का फिलिस्तीन के लोगों के इस अधिकार को नकारने का कानूनी परिणाम क्या है – इस पर रिर्पोट ने संयुक्त राष्ट्र महासभा से सिफ़रिश की कि वह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आई.सी.जे.) की सलाहकार राय प्राप्त करे। आई.सी.जे. संयुक्त राष्ट्र संघ का एक निकाय है। यह एक अंतरराष्ट्रीय अदालत है जो देशों के बीच विवादों से निपटती है। आई.सी.जे. के पास अपने फ़ैसलों को लागू करने की कोई शक्ति नहीं है।
31 दिसंबर, 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में आई.सी.जे. से इस मुद्दे पर क़ानूनी राय मांगने वाले एक प्रस्ताव पर मतदान किया गया। 87 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इज़राइल और अमरीका सहित 26 देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया। 53 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरीका के अधिकांश देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें हिन्दोस्तान के पड़ोसी देश – पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और चीन शामिल थे – हिन्दोस्तान की सरकार ने मतदान में भाग नहीं लिया।
हिन्दोस्तान के लोगों ने हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों के उनके संघर्ष का समर्थन किया है। इस तरह मतदान से दूर रहना, हिन्दोस्तान की सरकार द्वारा लिया गया रुख़ दर्शाता है कि उनका दृष्टिकोण, फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार के हक़ के मामले में पूरी तरह से सिद्धांतहीन है।
अपने राष्ट्रीय अधिकारों और अपनी मातृभूमि की बहाली के लिए फिलिस्तीन के लोगों का द्वारा किया जा रहा संघर्ष, एक न्यायपूर्ण संघर्ष है। इस संघर्ष में अन्य देशों के लोगों के साथ-साथ हिन्दोस्तान के लोग भी फिलीस्तीन के लोगों के साथ हैं।