पंजाब में ज़ीरा तहसील, फिरोजपुर के मंसूरवाल गांव और उसके आस-पास के क्षेत्रों के किसान, शराब बनाने वाली एक फैक्ट्री, मालब्रोस इंटरनेशनल लिमिटेड, के ख़िलाफ़ बीते पांच महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वहां के रहने वाले सब लोग, अपने भूजल, मिट्टी और पर्यावरण पर, शराब कारखाने से निकलने वाले गंदे पानी के द्वारा पैदा हुए ख़तरनाक प्रदूषण का विरोध कर रहे हैं। इस प्रदूषण के कारण, पहले ही, कई लोगों की जान जा चुकी है। जबकि एक तरफ, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की सुनवाई जारी है, तो इसके बावजूद पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों पर हमला किया और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। पूरे पंजाब में, लोग सरकार से बहुत नाराज़ हैं और राज्य के विभिन्न हिस्सों से, बड़ी संख्या में लोग इस संघर्ष में शामिल होने के लिए आगे आए हैं।
जानलेवा शराब फैक्ट्री के ख़िलाफ़ पंजाब के लोगों के संघर्ष के समर्थन में, मज़दूर एकता कमेटी ने 7 जनवरी, 2023 को एक बैठक आयोजित की। श्री राजविंदर सिंह बैंस, जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ एडवोकेट हैं और जो उच्च न्यायालय में ज़ीरा के उत्पीड़ित लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्होंने इस बैठक को संबोधित किया। मज़दूर एकता कमेटी के सचिव श्री बिरजू नायक ने भी बैठक को संबोधित किया। पंजाब और देश के कई अन्य हिस्सों से आये हुए लोगों के साथ-साथ, विदेशों से भी कई सहभागियों ने सभा में भाग लिया, अपनी बातें रखीं और संघर्षरत लोगों का समर्थन किया।
बैठक का संचालन मज़दूर एकता कमेटी के संतोष कुमार ने किया। उन्होंने सभी वक्ताओं और सहभागियों के हार्दिक स्वागत के साथ बैठक की शुरुआत की और श्री राजविंदर सिंह बैंस को इस मुद्दे पर बोलने के लिए आमंत्रित किया।
श्री बैंस ने इस हकीक़त पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की, कि उनकी क़ानूनी टीम की जांच से पता चला है कि शराब फैक्ट्री न केवल शराब का उत्पादन कर रही है बल्कि इसके साथ, कुछ ख़तरनाक रसायनों का उत्पादन भी कर रही है और उन्हें विदेशों में निर्यात कर रही है। उनकी टीम ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी इसके बारे में तहक़ीक़ात करने की गुज़ारिश की है, लेकिन अभी तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया या जवाब नहीं मिला है। यह भी गौर करने की बात है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दस्तावेज़ों के अनुसार, यह कंपनी, एक शून्य-डिस्चार्ज (बिना कोई गंदे पानी या किसी प्रकार के डिस्चार्ज) वाली कंपनी के रूप में सूचीबद्ध है!
यह आंदोलन जुलाई 2022 में शुरू हुआ, जब उस क्षेत्र के ट्यूबवेल से बहुत गंदा और शराब का बदबूदार पानी आने लगा। पानी का दूषित होना और यहां पर तूफान आने पर हर चीज़ पर मोटी राख की परत का जमना, ये सबको साफ़-साफ़ दिखाई देते हैं – इनके लिए किसी प्रकार की जांच की भी ज़रूरत नहीं है। इतने जानवर मर गए, इतने लोगों की जान जा चुकी है लेकिन सरकार ने इस क्षेत्र के निवासियों की शिकायतों का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है।
इस क्षेत्र के लोग, पिछले 5 महीने से दिन-रात, धरना-स्थल पर डेरा डाले हुए हैं और उनका विरोध प्रदर्शन जारी है। उन्हें पुलिस के लाठी चार्ज और गिरफ़्तारियों का सामना करना पड़ा है। लाठीचार्ज और गिरफ़्तारियों के कारण, इस संघर्ष ने अब एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया है। अब तक यह संघर्ष मुख्य रूप से उस इलाके के निवासियों तक ही सीमित था। लेकिन इसके बाद, पूरे पंजाब से अनेक किसान संगठन बड़ी संख्या में इस संघर्ष में शामिल हुए हैं। लोगों के गुस्से को शांत करने के लिए सरकार को मजबूर होकर, फ़सलों, मवेशियों, पर्यावरण और जनस्वास्थ्य को अभी तक हुए नुक़सान का आकलन करने के लिए, अब चार जांच समितियों का गठन करना पड़ा है।
श्री बैंस ने बताया कि कैसे सरकार और अदालत सहित, राज्य की सभी एजेंसियां पूंजीपतियों की रक्षा के लिए मिलकर काम कर रही हैं। उनकी राय में, पंजाब सरकार, इस कंपनी के पूंजीपति के पक्ष में अदालत से एक आदेश पारित कराने की कोशिश कर रही है, ताकि सरकार खुद लोगों की नज़रों में बेनकाब न हो। जैसे ही विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, वैसे ही इस कंपनी के मालिक दीप मल्होत्रा, जो शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक रह चुके हैं, उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, इस पूर्ण विश्वास के साथ कि न्यायालय उन्हीं के पक्ष में फ़ैसला सुनायेगा। उच्च न्यायालय ने सरकार से कहा कि पूंजीपति को मुआवजे़ के रूप में 20 करोड़ रुपये दिए जाएं, क्योंकि विरोध-प्रदर्शनों के कारण कम्पनी बंद रही है। प्रदर्शनकारियों को कारखाने से 300 मीटर दूर, विरोध प्रदर्शन करने का आदेश दिया गया। जब संघर्ष जारी रहा तो हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि प्रदर्शनकारियों की ज़मीन पर कब्ज़ा किया जाए। सरकार ने अदालत के आदेश को लागू करने के लिए, प्रदर्शनकारियों की ज़मीनों का सारा ब्यौरा, अदालत को सौंप दिया। अदालत ने आदेश दिया कि फैक्ट्री बिना किसी रुकावट के चलती रहनी चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए सेना या सी.आर.पी.एफ. का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन सारी गतिविधियों की वजह से, यह एक सर्व-पंजाब आन्दोलन बन गया।
श्री बैंस ने बताया कि पंजाब में हाल ही में चुनी गई आम आदमी पार्टी की सरकार, आज लोगों की नज़रों में पूरी तरह से बदनाम हो गई है। जनता को समझ में आ रहा है कि यह पार्टी भी, इससे पहले सत्ता में आने वाली और सभी पार्टियों की तरह, पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करती है और जनता के हितों के साथ विश्वासघात करती है। उन्होंने इन्साफ़ के लिए लड़ने वाले युवाओं और लोगों के जुझारूपन और मौत को भी मात देने वाले जज़्बे की सराहना की।
श्री बैंस ने विरोध स्थल पर अपनाए गए अनेक प्रेरणादायक तौर-तरीक़ों और लोगों को लामबंध करने के सफल प्रयासों की तरफ ध्यान आकर्षित किया। दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चलने वाले किसान-आन्दोलन की तरह ही, सभी आस-पास के गांवों के लोग, पिछले 5 महीनों से विरोध स्थल पर डेरा डाले हुए हैं। पंजाब के हर गांव से युवा विरोध करने और लोगों को लामबंध करने के नए तरीक़ों के साथ, आगे आ रहे हैं। सामुदायिक रसोई और लंगर स्थापित किए गए हैं, जिसमें लोग स्वेच्छा से और पूरे दिल से अपना योगदान दे रहे हैं। गांव में रहने वाले लोगों ने, प्रदर्शनकारियों के लिए भोजन, कंबल और अन्य सभी आवश्यकताओं की व्यवस्था की है। हर दिन, प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। राजनीतिक रुझान, धर्म, लिंग आदि के मतभेदों को दरकिनार करते हुए, सभी लोग एकजुट होकर इस संघर्ष में शामिल हो रहे हैं। इस सघर्ष में महिलाएं भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं। श्री बैंस ने अपने वक्तव्य को समाप्त करते हुए बताया कि सभी संघर्षरत लोग, अपने अत्यधिक साहस और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन कर रहे हैं।
श्री बिरजू नायक ने, ज़ीरा के लोगों को, उनके दृढ़ संघर्ष के लिए बधाई दी। उन्होंने इस संघर्ष के लिए, मज़दूर एकता कमेटी की तरफ से उनका तहे दिल से समर्थन किया। उन्होंने ज़ीरा में शराब कारखाने के कारण होने वाले प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी ख़तरों को छुपाने के लिए और प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा हमला करने के लिए पंजाब सरकार के जन-विरोधी रवैये की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि स्वच्छ पानी और पर्यावरण लोगों का मूलभूत अधिकार है और लोगों को अपने इस बुनियादी मानव अधिकार से वंचित करने की इजाज़त किसी को भी नहीं दी जानी चाहिए।
श्री बिरजू नायक ने तमिलनाडु में तुतूकुड़ी में स्टरलाइट संयंत्र के खि़लाफ़ संघर्ष का उदाहरण दिया, यह समझाने के लिए कि कैसे राज्य पूंजीपतियों के अधिक से अधिक मुनाफे़ कमाने के अधिकार की रक्षा करता है और अदालतें इस अधिकार को वैधता देती हैं। उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफे़ की लालच लोगों के स्वास्थ्य और खुशहाली के उद्देश्य के बिलकुल विपरीत है। उन्होंने बताया कि अदालत सहित राज्य के सभी संस्थान पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करते हैं। उन्हें लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के विनाश की कोई चिंता नहीं है। केवल मज़दूर वर्ग ही लोगों की खुशहाली को सुनिश्चित करने में रुचि रखता है और इस मंजिल को हासिल करने के क़ाबिल है। उन्होंने कहा कि अगर भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की रक्षा करनी है तो मज़दूर वर्ग को राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में लेनी होगी।
अनेक सहभागियों ने बैठक में अपने विचार रखे। उन्होंने ज़ीरा के लोगों के संघर्ष के लिए अपना समर्थन व्यक्त किया और पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार और न्यायालयों की निंदा की। सहभागियों ने इस हकीक़त पर भी ज़ोर दिया कि बिजली आपूर्ति, रेल परिवहन, रक्षा, बैंकिंग, बीमा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक उद्योगों और सेवाओं का निजीकरण करने में सरकार सबसे बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों के हितों की सेवा कर रही है। लोगों ने अपने खुद के अनुभवों का उदाहरण देकर यह बताया कि कैसे अदालतें पूंजीपतियों का बचाव करती हैं और जनता की भलाई के लिए लड़ने वालों पर हमला करती हैं। उन्होंने मज़दूर एकता कमेटी को एक ऐसा मंच आयोजित करने के लिए धन्यवाद दिया, जिस मंच पर विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूर, किसान, युवा और महिलाएं अपनी समस्याओं के बारे में चर्चा करने और अपने संघर्षों को उजागर करने के लिए एक साथ आ सकते हैं।
संतोष कुमार ने वक्ताओं और सभी सहभागियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने सभी संघर्षरत लोगों की एकता को मजबूत करने और हमारी रोज़ी-रोटी और अधिकारों पर शासक वर्ग के चौतरफा हमलों के खि़लाफ़ हमारे सांझे संघर्ष को तेज़ करने का आह्वान करते हुए, बैठक का समापन किया।