हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केंद्रीय समिति का बयान, 18 जनवरी, 2023
26 जनवरी, 1950 को हिन्दोस्तान को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था। स्वतंत्र हिन्दोस्तान की संविधान सभा द्वारा अपनाया गया संविधान इस देश का मौलिक क़ानून बन गया। यह धारणा फैलाई गई कि हिन्दोस्तान के लोगों ने अपने देश के विकास की दिशा तय करने की शक्ति हासिल कर ली है।
आज, 73 साल बाद, यह स्पष्ट है कि अधिकांश लोगों के पास हिन्दोस्तानी समाज के विकास की दिशा को तय करने की शक्ति नहीं है। क़ानूनों और नीतियों के बारे में फ़ैसले लेने में हमारी कोई भूमिका नहीं है।
केंद्र सरकार उन्हीं नीतियों को अपनाती है जो मुट्ठीभर अति-धनवान पूंजीपतियों की दौलत को बढ़ाती हैं। एक पहले से ही धनवान अल्पसंख्यक तबका और धनवान होता जा रहा है जबकि हमारे मेहनतकश लोग दुनिया के सबसे ग़रीब लोगों में गिने जाते हैं। संसद ऐसे क़ानून बनाती है जो पूरी तरह से मजदूर-विरोधी और किसान-विरोधी हैं। इनके खि़लाफ़ आवाज़ उठाने वालों को यू.ए.पी., आफस्पा या किसी अन्य कठोर क़ानून के तहत अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद रखा जाता है।
इस तथाकथित लोकतांत्रिक गणराज्य में लोगों की शक्तिहीन स्थिति किसी दुर्घटना या ग़लती का परिणाम नहीं है। इस गणराज्य को इसी मक़सद से बनाया गया है। 1950 में अपनाए गए संविधान को इस प्रकार से बनाया गया था ताकि फै़सले लेने की शक्ति थोड़े से धनवान शोषकों और उनके राजनीतिक प्रतिनिधियों के हाथों में ही रहेगी।
1950 के संविधान को अपनाने वाली संविधान सभा के अधिकांश सदस्य उन्हीं पूंजीपतियों और जमींदारों के हितों के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के साथ समझौता किया था और जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत से लाभ प्राप्त हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों द्वारा बनाई गई राजनीतिक व्यवस्था को बरकरार रखना अपने लिए फ़ायदेमंद समझा।
संविधान सभा ने संसदीय लोकतंत्र को अपनाया, जिसकी राजनीतिक प्रक्रिया सरमायदार वर्ग के हाथ में राज्य सत्ता को रखने और मेहनतकश लोगों को पूरी तरह से राज्य सत्ता से बाहर रखने के मक़सद से बनायी गयी है। यह एक ऐसी राजनीतक प्रक्रिया है जिसमें इजारेदार पूंजीपति अपने धन बल और मीडिया पर नियंत्रण का इस्तेमाल करके चुनावों के नतीजे तय करते हैं। वे उस पार्टी की जीत को सुनिश्चित करते हैं जो उस समय पर, उनके हितों को सबसे अच्छी तरह पूरा कर सकती है। जब एक भरोसेमंद पार्टी बदनाम हो जाती है और लोगों को धोखा नहीं दे सकती है, तो वे उसकी जगह पर दूसरी भरोसेमंद पार्टी को ले आते हैं, ताकि यह धारणा बनाते हुए कि कुछ बदल गया है, उसी पहले के एजेंडे को जारी रखा जा सके।
1950 के संविधान के लगभग तीन-चौथाई हिस्से को ब्रिटिश संसद द्वारा लागू किये गए 1935 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट (भारत सरकार अधिनियम) से पूरा-पूरा उठाया गया था। यह संविधान उपनिवेशवादी तरीक़े से, हिन्दोस्तानी संघ को क्षेत्रीय आधार पर परिभाषित करता है तथा हिन्दोस्तान के अन्दर बसे हुए राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के अस्तित्व और अधिकारों को मान्यता नहीं देता है ।
आज यह आम तौर पर माना जाता है कि हिन्दोस्तानी गणराज्य में लोगों के हाथों में कोई शक्ति नहीं है। लेकिन ऐसा क्यों है, इस विषय पर बहुत सारे गलत सोच-विचार फैलाये जाते हैं। सत्ताधारी सरमायदार वर्ग ने लोगों से सच्चाई को छुपाने के लिए एक झूठी धारणा पैदा की है और उसे ज़िंदा रखा है। यह धारणा है कि लोगों की शक्तिहीन स्थिति के लिए संविधान दोषी नहीं है, बल्कि इसके लिए सिर्फ कुछ भ्रष्ट नेता और पार्टियां दोषी हैं।
इस दमनकारी, उपनिवेशवादी शैली में बने हुए हिन्दोस्तानी संघ और उसके संविधान को लोकतांत्रिक और प्रगतिशील रूप में पेश करने में हिन्दोस्तानी सरमायदारों की सफ़लता के लिए ज़िम्मेदार एक मुख्य कारक हिन्दोस्तानी कम्युनिस्ट आंदोलन पर यूरोपीय सोशल डेमोक्रेसी का ज़बरदस्त प्रभाव है।
हालांकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1951 में माना था कि उपनिवेशवादी हुकूमत के ख़त्म होने के बाद बना हुआ हिन्दोस्तानी राज्य मज़दूरों और किसानों पर सरमायदारों के अधिनायकत्व का एक हथकंडा था, लेकिन इसके बाद के वर्षों में कम्युनिस्ट आंदोलन इस समझ पर टिका नहीं रहा। कम्युनिस्ट आन्दोलन इस भ्रम का शिकार हो गया कि संसदीय लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से मज़दूर वर्ग अपने समाजवाद के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकता है। कम्युनिस्ट आंदोलन के अन्दर विभिन्न गुटों ने “मिश्रित अर्थव्यवस्था” और पूंजीवाद व समाजवाद के बीच तथाकथित मध्य मार्ग की अवधारणा का प्रचार करना शुरू कर दिया।
कम्युनिस्ट नेताओं के सोशल डेमोक्रेसी के साथ समझौते की वजह से, सरमायदारों को मौजूदा आर्थिक व्यवस्था और राज्य के वास्तविक चरित्र को छिपाने में मदद मिली है। आज कम्युनिस्ट आन्दोलन में वे लोग बहुत हानिकारक भूमिका निभा रहे हैं, जो साम्प्रदायिक और फासीवादी भाजपा से हिन्दोस्तानी गणराज्य और उसके संविधान की रक्षा की मांग कर रहे हैं।
मौजूदा राज्य और उसके संविधान की रक्षा करके मज़दूरों और किसानों को कोई लाभ नहीं होगा। हमें एक ऐसे राज्य की आवश्यकता है जो हमें अति-अमीर अल्पसंख्यक तबके की अमीरी को बढ़ाने के लिए बनायी गयी व्यवस्था के शिकार होने के बजाय, खुद अपने जीवन पर नियंत्रण करने में सक्षम बनायेगा। हमें एक ऐसे राज्य की आवश्यकता है जो सभी की खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दिलाएगा और रास्ते में रुकावट बनने वाली किसी भी निजी संस्था की संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेगा।
हमें एक ऐसे गणतंत्र की स्थापना करने की आवश्यकता है, जो हमारे समाज को सामंतवाद के सभी अवशेषों, जातिवादी अत्याचार और पूंजीवादी शोषण व साम्राज्यवादी लूट सहित, उपनिवेशवाद की पूरी विरासत से मुक्ति दिलाने का एक साधन होगा।
हमें एक नए संघ की आवश्यकता है जो स्वेच्छा पर आधारित हो, न कि बलपूर्वक थोपा गया और बरकरार रखा गया हो। हमें एक नए संविधान की आवश्यकता है जो प्रत्येक राष्ट्र, राष्ट्रीयता और आदिवासी लोगों को आत्मनिर्धारण के अधिकार की गारंटी देगा। संघ के पास केवल वे शक्तियां होनी चाहिएं जो सभी घटक स्वेच्छा से उसे सौंपते हैं।
संविधान को गारंटी देनी चाहिए कि संप्रभुता – फ़ैसले लेने की शक्ति – लोगों में निहित है। कार्यकारी शक्ति को निर्वाचित विधायी निकाय के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, और विधायी निकाय को लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।
लोगों को क़ानूनों को प्रस्तावित करने और क़ानूनों को ख़ारिज करने का अधिकार होना चाहिए। उन्हें संविधान में संशोधन करने या उसे दोबारा लिखने का अधिकार होना चाहिए। हमें चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने, चुने गए लोगों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें किसी भी समय वापस बुलाने और क़ानून प्रस्तावित करने का अधिकार होना चाहिए। लोगों के नाम पर फै़सले लेने के बजाय, राजनीतिक पार्टियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध होना चाहिए, कि फ़ैसले लेने की शक्ति लोगों के हाथों में रहे।
हिन्दोस्तानी गणतंत्र की 73वीं सालगिरह के अवसर पर, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी मज़दूर वर्ग के सभी संगठनों और नेताओं से आह्वान करती है कि अपने वर्ग के सांझे लक्ष्य के इर्द-गिर्द एकजुट हों। हिन्दोस्तान को एक स्वेच्छा पर आधारित संघ के रूप में पुनर्गठित करने की ज़रूरत है, जो सब को सुख-सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। आइये, मज़दूर वर्ग को देश के लोगों को एकजुट करने वाली और अगुवाई देने वाली शक्ति बतौर तैयार करें ताकि हम इस लक्ष्य को हासिल कर सकें।