उत्तराखंड सरकार द्वारा अपने घरों से जबरन बेदख़ल करने की धमकी के खि़लाफ़ लोगों का अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन हल्द्वानी में चल रहा है। 20 दिसंबर, 2022 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि बनभूलपुरा में 78 एकड़ भूमि, जिसके लिये रेलवे द्वारा दावा किया गया था, से हजारों परिवारों को बेदख़ल करने के लिए बल प्रयोग किया जाये। इस आदेश के बाद यह विरोध शुरू हुआ। अदालत ने राज्य से कहा कि वह लोगों को उनके घरों से बेदख़ल करने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात करे। इसके बाद, उत्तराखंड सरकार ने सिर्फ 7 दिनों का समय देते हुए,
1 जनवरी, 2023 को बेदख़ली का एक नोटिस जारी कर दिया, जिसमें लोगों को अपना सामान हटाने और अपने घरों को खाली करके छोड़ देने के लिए कहा गया था।
लोगों ने अपने घरों को छोड़ने से इनकार कर दिया। कड़ाके की ठंड में पचास हजार महिला, पुरुष और बच्चे अपने घरों पर अपना हक़ जताते हुए, अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए। इस संघर्ष के मद्देनज़र सर्वोच्च अदालत ने लोगों को बेदख़ल करने के उच्च अदालत के आदेश पर, 5 जनवरी को रोक लगाने का फै़सला सुनाया।
रेलवे ने दावा किया है कि बनभूलपुरा की यह ज़मीन उसकी है, लेकिन इस ज़मीन पर भारतीय रेल का मालिकाना हक़ है, इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। बेदख़ली के ख़तरे का सामना करने वाले बहुत से लोग इस बस्ती में 5 दशकों से भी अधिक समय से रह रहे हैं। लोगों के पास ऐसे दस्तावेज़ हैं, जो साबित करते हैं कि वे 1947 से इस क्षेत्र में संपत्ति के मालिक हैं। फिर भी हिन्दोस्तानी राज्य और रेलवे, लोगों को अपनी बस्ती से बेदख़ल करने के लिए क्यों ज़ोर दे रहे हैं?
भारतीय रेल का निजीकरण भी हिन्दोस्तानी राज्य के उस अभियान में निहित है, इसका सबसे हाल का उदाहरण है राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन। सरकार ने अन्य चीज़ों के साथ-साथ रेलवे के 200 स्टेशनों का विकास करने और उनके रखरखाव के लिए पूंजीपतियों को सौंपने के अपने फ़ैसले की घोषणा की है। भारतीय रेल ने पूरे देश में अपनी मालिकी वाली प्रमुख भूमि के बारे में फ़ैसले लेने के लिए एक ‘रेल भूमि विकास प्राधिकरण’ की स्थापना की है।
उत्तर पूर्व रेलवे का काठगोदाम स्टेशन, जो कि हल्द्वानी में है, यह उन निर्धारित स्टेशनों में से एक है जिसे विकास और रखरखाव के लिए सरकार ने पूंजीपतियों को सौंपने का फै़सला किया है। यह उत्तराखंड को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने वाले प्रमुख स्टेशनों में से एक है। बनभूलपुरा बस्ती काठगोदाम रेलवे स्टेशन के पास है। इस बात की पूरी संभावना है कि उत्तराखंड सरकार और पूर्वोत्तर रेलवे, इस क्षेत्र में कई दशकों से रह रहे लोगों को इसलिये बेदख़ल कर रहे हैं, क्योंकि इस ज़मीन की मांग उन निजी पूंजीपतियों ने की हो, जिन्हें काठगोदाम रेलवे स्टेशन और उसके आसपास की ज़मीनें सौंपी जा रही हैं।
हिन्दोस्तानी राज्य के क़ानून किसी न किसी बहाने से लोगों की ज़मीन को हड़पने और फिर उस ज़मीन को बड़े पूंजीपतियों को सौंपने में सक्षम हैं। पूरे देश में लोगों का यह अनुभव है कि ज़मीन को हड़पने के उद्देश्य को हासिल करने के लिए राज्य द्वारा पूरी कालोनियों को गिरा दिया जाता है, जिनमें दशकों से लोग रह रहे हैं। पीड़ितों को लोगों का समर्थन न मिले, इसलिये राज्य लगातार यह प्रचार करता है कि जिनके घर गिराए जा रहे हैं वे ”अवैध“ रूप से रह रहे हैं।
अपने घरों से बेदख़ली के खि़लाफ़ हल्द्वानी के लोगों का संघर्ष, देशभर के लाखों मेहनतकशों के उसी संघर्ष का हिस्सा है, जिसने सिर पर विध्वंस की तलवार लटक रही है। विभिन्न शहरों में मेट्रो लाइनों के पास रहने वाले, रेलवे स्टेशनों के पास रहने वाले और रेलवे लाइनों के पास रहने वाले लोगों को विध्वंस का सामना करना पड़ता है। पूंजीपतियों को रेलवे स्टेशनों और अन्य संपत्तियों को बेचने के हिन्दोस्तानी राज्य के अभियान का लोगों को डटकर विरोध करने की ज़रूरत है।