26 फरवरी को रेलमंत्री पवन कुमार बंसल द्वारा पेश किया गया रेल बजट, संप्रग सरकार द्वारा मेहनतकश लोगों की रोजी-रोटी पर हो रहे सबतरफे हमलों को और तेज़ करता है।
लगभग सभी वस्तुओं के मालवाहन की दरें करीब 5.79 प्रतिशत बढ़ा दी गयी हैं। इससे जनता की रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी। विभिन्न अधिशुल्कों के ज़रिये यात्रियों को हाल में बढ़ाये गये दामों से भी अधिक भुगतान करना होगा।
26 फरवरी को रेलमंत्री पवन कुमार बंसल द्वारा पेश किया गया रेल बजट, संप्रग सरकार द्वारा मेहनतकश लोगों की रोजी-रोटी पर हो रहे सबतरफे हमलों को और तेज़ करता है।
लगभग सभी वस्तुओं के मालवाहन की दरें करीब 5.79 प्रतिशत बढ़ा दी गयी हैं। इससे जनता की रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी। विभिन्न अधिशुल्कों के ज़रिये यात्रियों को हाल में बढ़ाये गये दामों से भी अधिक भुगतान करना होगा।
मंत्री ने रेल भाड़ा प्राधिकरण स्थापित करने की घोषणा की है, जो हर 6 महीनों में मालवाहन व यात्री किरायों में डीज़ल की कीमत की वृद्धि के अनुसार संशोधन करेगा।
मंत्री ने अपने कदमों की सफाई डीज़ल की कीमतों के अनियंत्रण और उनके खर्चे में वृद्धि से दी है। इस बीच, पेट्रोलियम कंपनियों ने घोषणा की है कि पेट्रोलियम के मालवाहन में बढ़ी हुयी दरों की वजह से उन्हें पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी! इस विषम चक्र से, बंदर और बिल्लियों की वह कहानी याद आती है, जिसमें बिल्लियां रोटी के बंटवारे में बंदर की मदद लेती हैं। बंदर रोटी के दो टुकड़े करके तराजू में रखता है और जो पलड़ा भारी होता है, उस रोटी के टुकड़े का एक हिस्सा खुद खा जाता है। बार-बार ऐसा करने के बाद, अंत में बिल्लियों के लिये कुछ भी नहीं बचा। इसी तरह केन्द्र सरकार लोगों की रोजी-रोटी और खुशहाली पर हमला कर रही है।
रेलमंत्री ने शताब्दी रेलगाड़ियों के कुछ रेलमार्गों में “अनुभूति” नामक खास वातानुकूलित डिब्बे लगाने की घोषणा की है, जिनका किराया अधिक होगा। यह विभिन्न रेलगाड़ियों के मौजूदा वातानुकूलित डिब्बों के दर्जे को घटाने का तरीका है। जीवन का अनुभव दिखाता है कि जब भी “नयी” , “उच्च श्रेणी” की रेलगाड़ियां या डिब्बे लगाये जाते हैं तो पुरानी रेलगाड़ियों और डिब्बों को जान-बूझकर खराब होने दिया जाता है।
बंसल ने नयी रेलगाड़ियों, बेहतर सुविधाओं व सुरक्षा, विभिन्न इलाकों में नयी परियोजनाओं, नये कारखानों, आदि की घोषणायें कीं। परन्तु मंत्री ने इन सबके लिये पर्याप्त धन का इंतजाम नहीं किया है। हर साल ऐसी घोषणायें की जाती हैं। अधिकांश परियोजनायें सिर्फ कागज़ पर रह जाती हैं, खास तौर पर बेहतर सुविधाओं व सुरक्षा से संबंधित योजनायें। रेलवे को इस्तेमाल करने वाली आम जनता के लिये और रेलवे के कर्मचारियों के लिये परिस्थितियां बद से बदतर हो गयी हैं।
जब भी नये रेलमार्गों की घोषणा होती है, पुराने रेलमार्गों की हमेशा अनदेखी की जाती है। दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। नये कारखाने नहीं बनते हैं। अगर रेल बजटों में की गयी घोषणाओं पर अमल होने की समीक्षा की जाये तो यह देखा जायेगा कि सिर्फ किराया बढ़ाने और कर्मचारियों के शोषण बढ़ाने के कदमों पर ही अमल होता है।
रेलचालकों के बहुत से पद रिक्त हैं। रेलचालकों की काम करने की परिस्थितियां बहुत ही खराब हैं। अधिकतर विभागों में बाहर से ठेके पर काम कराने की रीति जारी है। प्रत्येक बजट में नयी भर्ती के आश्वासन दिये जाते हैं पर उनको पूरा नहीं किया जाता है। अपने बजट भाषण में मंत्री ने घोषणा की कि “कमजोर तबकों और शारीरिक अपंगता ग्रस्त लोगों” के लिये 47,000 रिक्त स्थान जल्दी भरे जायेंगे। मंत्री ने इस बात को छिपा लिया कि रेलवे में लाखों नौकरियों में जानबूझकर कटौती की गई है और कई अलग-अलग विभागों को आउटसोर्स कर दिया गया है, ताकि वेतनों पर खर्चा कम किया जाये और रिक्त स्थानों को न भरना पड़े। बीते अनुभव से यह कहना गलत नहीं होगा कि इस घोषणा का मकसद रेल मज़दूरों को और रेल में नौकरियों की आस लगाए हुये नौजवानों को धोखा देना है।
मंत्री ने 9000 करोड़ रु. के नये निवेश की घोषणा की है। इसका अधिकांश हिस्सा पूंजीपतियों और उनके कारोबार में प्रत्यक्ष रूप से सुविधायें बढ़ाने के लिये जाने वाला है, जैसे कि 3,800 करोड़ रु. बंदरगाहों को एक दूसरे के साथ जोड़ने के लिये और 800 करोड़ रु. खदानों को जोड़ने के लिये खर्च किया जाने वाला है।
रेलमंत्री ने घोषणा की कि रेलवे बहुत “नुकसान” में चल रही है। उन्होंने यह कहकर माल व यात्री किरायों में बढ़ोतरी और घटिया सेवाओं की सफाई देने की कोशिश की। “नुकसान” का बहाना रेलवे के निजीकरण को तथा रेलवे की मुनाफेदार शाखाओं को ठेक पर देने को जायज ठहराने के लिये दिया जा रहा है। जैसा सभी निजीकरण में किया जा रहा है, वही रास्ता रेलवे में भी अपनाया जा रहा है – घाटे में चलने वाली शाखाओं का बोझ लोगों पर लादो, जबकि पूंजीपतियों को अधिकतम मुनाफा बनाने दो।
निजीकरण को आगे बढ़ाने के लिये यह कहा जा रहा है कि रेलवे को अपनी “मुख्य भूमिका”, यानि यातायात पर ध्यान देना चाहिये। दिसंबर 2011 में योजना आयोग द्वारा रेलवे पर गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर, रेलवे में तेज़ गति से आउटसोर्सिंग चल रही है। ट्रेन के डिब्बों की सफाई, कंबल आदि की सप्लाई और खान-पान सेवा की पहले से ही आउटसोर्सिंग हो चुकी है। ट्रेनों और पटरियों की देखरेख का भी आउटसोर्सिंग हो चुकी है। डिब्बों, वैगनों और इंजनों के उत्पादन, मुख्य स्टेशनों के प्रबंधन जैसे कई क्षेत्रों में निगमीकरण और क्रमशः विनिवेश जारी है।
इस बजट में रेल मंत्री ने यह घोषणा की है कि “सार्वजनिक-निजी सांझेदारी” से एक लाख करोड़ रुपये की आमदनी होगी। इससे स्पष्ट होता है कि 7 नई डिब्बा बनाने वाली फैक्टरियों और मरम्मत कार्यशालाओं की जो घोषणा की गई, वह निजी पूंजी को आकर्षित करने के लिये है। इस तरह जनता के टैक्स के पैसे के बल पर इजारेदार कंपनियों के लिये मोटे मुनाफे सुनिश्चित किये जायेंगे।
मज़दूरों द्वारा उठाया गया सबसे अहम मुद्दा यह है कि क्या रेलवे जनसेवा नहीं है, जिसे पूरे समाज की सेवा में चलाना चाहिये? यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह रेलवे में निवेश करे, ताकि रेल यातायात सस्ता, सुरक्षित, अधिक आरामदायक व तीव्रगति हो, और माल देश के एक कोने से दूसरे कोने तक कार्यकुशलता से पहुंचाया जाये। ऐसा करना शहरों व ग्रामीण इलाकों के सभी मेहनतकश लोगों के लिये हितकर होगा। कोशिश की गयी है कि सरकार की इस जिम्मेदारी से लोगों का ध्यान हटाया जाये।
इसके विपरीत, रेलवे का इस्तेमाल इजारेदार पूंजीपतियों और उनके निगमों को तरह-तरह की सस्ती सहूलियतें देकर उनके मुनाफे बढ़ाने के लिये किया जा रहा है। रेलवे के मज़दूर अतिशोषित हैं। जब भी कोई दुर्घटना होती है तो चालक और गार्ड पर दोष दिया जाता है। रेलवे के उच्च
अधिकारी देखेरेख के लिये ठेके आवंटित करके खुद पैसे बनाते हैं और ठेके की इन कंपनियों द्वारा दी गई सेवा अनिवार्यतः ऊंचे दाम पर तथा संदिग्ध गुणवत्ता की होती है।
समाधान न तो यथास्थिति बरकरार रखने में है और न ही निजीकरण व उदारीकरण को बढ़ाने में, जैसा कि बताया जा रहा है। इसका समाधान यह है कि मज़दूर वर्ग को रेलवे जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को अपने नियंत्रण व देखभाल में लाने के लिये संघर्ष करना होगा, ताकि जनता के हित का रक्षण सुनिश्चित किया जाये।