“राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी है!”; “एक पर हमला सब पर हमला!” सभा के मुख्य बैनर पर लिखे गये इन नारों ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 30वीं बरसी पर, 6 दिसंबर, 2022 को संसद के सामने आयोजित एक लड़ाकू विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले लोगों के दृढ संकल्प को प्रकट किया।
प्रदर्शन स्थाल के चारों ओर खड़े किये गये पुलिस के बैरियरों पर लगे बैनरों तथा सभा में शामिल लोगों के हाथों में पकड़े गये बैनरों और तख्तियों पर लिखे नारे थे – “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद”; “लोगों की एकता की रक्षा करें!”; “1984, 1992 और 2002 के गुनहगारों को सज़ा दो।”
विरोध प्रदर्शन का आयोजन संयुक्त रूप से – लोक राज संगठन (एल.आर.एस.), हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी (सी.जी.पी.आई.), सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.), वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (डब्ल्यू.पी.आई.), सी.पी.आई. (एमएल)-न्यू प्रोलतेरियन, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्षन ऑफ सिविल राइट्स (ए.पी.सी.आर.), सिटीज़न फॉर डेमोक्रेसी, हिंद नौजवान एकता सभा, जमात-ए-इस्लामी हिंद, लोक पक्ष, मज़दूर एकता कमेटी, पुरोगामी महिला संगठन, द सिख फोरम, स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, सामाजिक चेतना मंच, इंक़लाबी मज़दूर केंद्र, ए.आई.एफ.टी.यू. (न्यू), और वीमेन इंडिया मूवमेंट द्वारा किया गया।
मुख्य बैनर पर उन राजनीतिक पार्टियों तथा जन संगठनों के नाम लिखे हुये थे, जो पिछले कई वर्षों से इंसाफ के लिए संघर्ष को जारी रखे हुए हैं और बार-बार एक साथ आये हैं तथा इस साल भी साथ आए हैं। ये सभी संगठन राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट संघर्ष करते आ रहे हैं।
लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस. राघवन; डब्ल्यू.पी.आई. के अध्यक्ष डॉ. एस.क्यू.आर. इलियास; सी.जी.पी.आई. के प्रवक्ता बिरजू नायक; जमात-ए-इस्लामी हिंद के इनाम उर रहमान; एस.डी.पी.आई. के मो. शफी; लोक पक्ष से के.के. सिंह; सामाजिक चेतना मंच से डॉ. अनवर इस्लाम, इंक़लाबी मज़दूर केंद्र से मुन्ना प्रसाद और ए.पी.सी.आर. के सैफुल इस्लाम ने सभा को संबोधित किया।
लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस. राघवन ने राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट होकर संघर्ष को तेज़ करने के लिए सभी सहभागी संगठनों के दृढ संकल्प की सराहना की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और भाजपा की अगुवाई वाली उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार, दोनों ही बाबरी मस्जिद के विध्वंस की अनुमति देने के लिए दोषी थीं। विध्वंस के बाद, मुंबई में सांप्रदायिक हत्याओं के आयोजन के लिए कांग्रेस पार्टी, भाजपा और शिवसेना सभी दोषी थे। लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी इनमें से किसी को भी सज़ा नहीं हुई है। हिन्दोस्तानी राज्य के तीनों अंगों – कार्यपालिका, विधानपालिका और न्यायपालिका – ने मिलीभगत से हमारे लोगों के ख़िलाफ़ किए गए बर्बर गुनाह को ढकने और अपराधियों को माफ़ करने के लिए काम किया था। उन्होंने समझाया कि लोगों के ख़िलाफ़ इस तरह के जघन्य अपराध करने के लिए राज्यतंत्र का उपयोग करने वाली गुनहगार और सांप्रदायिक राजनीतिक पार्टियों को रोकने की कोई ताक़त हमारे लोगों के पास नहीं है। उन्होंने लोगों के सशक्तिकरण के लक्ष्य के इर्द-गिर्द लोगों की एक व्यापक एकता बनाने का आह्वान किया। हमें एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता है – जिसमें समाज को प्रभावित करने वाले सभी निर्णयों को लेने और चुने हुए प्रतिनिधियों को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाने की ताक़त लोगों के पास हो। हमें एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है, जिसमें ज़मीर के अधिकार सहित सभी मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए ज़िम्मेदार लोगों को कड़ी सज़ा दी जाएगी।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के इनाम उर रहमान ने कहा कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने इस झूठ का भी पर्दाफ़ाश किया कि हिन्दोस्तानी राज्य धर्मनिरपेक्ष है। इसके आयोजन के लिए ज़िम्मेदार लोगों को कभी सज़ा नहीं दी गयी, बल्कि उन्हें सरकार में मंत्री पदों से पुरस्कृत किया गया। उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर लोगों को बांटने और सांप्रदायिक जनसंहार आयोजित करने के लिए हिन्दोस्तानी राज्य की कड़ी निंदा की। उन्होंने वहां उपस्थित लोगों से अपील की कि लोगों के किसी भी तबके के साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के ख़िलाफ़ एक मजबूत आंदोलन में एकजुट हों।
वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. एस.क्यू.आर. इलियास ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए हालात तैयार करने के लिए देशभर में चलाए गए सांप्रदायिक घृणा के अभियान को याद किया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक अवैध कार्य था, फिर भी लोगों को कोई इंसाफ़ नहीं मिला, क्योंकि इस गुनाह के लिए ज़िम्मेदार अपराधियों को सज़ा देने में वह असफल रहा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि हम सबके सांझे दुश्मन के ख़िलाफ़ किये जा रहे संघर्ष में हमारी एकता के लिए राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक सबसे बड़ा ख़तरा है, उन्होंने सभी से इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का आह्वान किया।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के प्रवक्ता बिरजू नायक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक है। यह इस तथ्य से देखा जा सकता है कि शासक वर्ग की दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने विध्वंस की अनुमति दी थी, उस समय केंद्र में कांग्रेस पार्टी और उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में थी। सर्वोच्च अदालत ने उसी स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश दिया है, जिस स्थान पर ध्वस्त मस्जिद थी। यह हिन्दोस्तानी राज्य की “धर्मनिरपेक्षता” का पूरी तरह से पर्दाफ़ाश करता है। देश का संविधान लोगों को “बहुसंख्यक” और “अल्पसंख्यक” समुदायों में विभाजित करता है, जिसके आधार पर राज्य की संस्थाएं लोगों के इस या उस तबके के साथ भेदभाव करती हैं। उन्होंने इस तथ्य पर भी ज़ोर दिया कि केवल किसी एक विशेष राजनीतिक पार्टी को ही, सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के स्रोत के रूप में पहचानना ग़लत है। राज्य और उसके सभी अंग सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के स्रोत हैं। उन्होंने इस बात को फिर से दोहराया कि जो लोग समय-समय पर राज्य के निशाने पर आते हैं, उन्हें राज्य के हमलों के ख़िलाफ़ अपनी सुरक्षा के लिए संगठित होने का पूरा अधिकार है। अंत में, उन्होंने कहा कि हमारे संघर्ष का लक्ष्य – हक़ीक़त में एक ऐसे लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना करनी होगी, जहां सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर फ़ैसले लेने की ताक़त लोगों के पास होगी जो हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और उन सभी गुनहगारों को सज़ा देने की ताक़त होगी जो हमारे जीवन और ज़मीर के अधिकार तथा एक सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन जीने के हमारे अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
एस.डी.पी.आई. के मो. शफी ने बताया कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस सिर्फ मुसलमानों के ख़िलाफ़ ही नहीं बल्कि हमारे देश के सभी लोगों पर और हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर एक ख़तरनाक हमला था। हमारे शासक देश के बहुसंख्यक लोगों के लिए भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोज़ी-रोटी आदि सुनिश्चित नहीं कर सकते, इसलिए वे लोगों के बीच फूट डालने के लिए सांप्रदायिक ज़हर फैलाते हैं।
लोक पक्ष से के.के. सिंह ने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के ख़िलाफ़ संघर्ष, देश के बड़े इजारेदार घरानों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग के क्रूर शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष है। सांप्रदायिक हिंसा का निशाना पूरा मज़दूर वर्ग और आम लोग हैं। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक हिंसा तभी समाप्त होगी जब मज़दूरों के हाथ में सत्ता आयेगी।
इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के कॉमरेड मुन्ना प्रसाद ने कहा कि हमारा संघर्ष हिन्दोस्तानी राज्य के ख़िलाफ़ होना चाहिए जो राज्य बड़े इजारेदार कॉरपोरेट घरानों के हितों की रक्षा करता है और हमारे मज़दूरों-किसानों और मेहनतकश लोगों के सबसे बुनियादी अधिकारों का बेरहमी से उल्लंघन करता है। मज़दूरों और किसानों का राज ही लोगों पर हो रहे सांप्रदायिक हमलों को रोक सकता है।
इस विरोध प्रदर्शन का आयोजन अत्यंत कठिन परिस्थितियों में किया गया था। क्योंकि दिल्ली पुलिस ने इस कार्यक्रम को अयोजित करने की अनुमति एकदम अंतिम समय तक नहीं दी थी। जबकि इस कार्यक्रम की आधिकारिक सूचना उन्हें हफ्तों पहले ही दे दी गई थी। रैली को रोकने के लिए, लाठीचार्ज करने वाली पुलिस को सैकड़ों की संख्या में तैनात किया गया था। जब सहभागी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन को आयोजित करने के अपने फ़ैसले पर लड़ाकू तरीके़ से ज़ोर डाला, तब जाकर पुलिस ने घोषणा की कि आयोजकों को स्टेज बनाने की अनुमति नहीं है वे लाउडस्पीकर का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते। यहां तक कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के ख़िलाफ़ इस विरोध प्रदर्शन को असफ़ल करने के लिए हर संभव प्रयास किया गया था, जबकि कई अन्य रैलियों और प्रदर्शनों को इन्हीं अधिकारियों द्वारा उसी स्थान पर आयोजित करने की पूर्ण अनुमति दी गई थी। यह स्पष्ट था कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस की बरसी पर लोगों को विरोध प्रदर्शन करने से रोकने के आदेश केंद्रीय गृह मंत्रालय के सर्वोच्च अधिकारियों की तरफ़ से आए थे। इस विरोध प्रदर्शन को रद्द करने के जबरदस्त दबाव के बावजूद, सहभागी संगठनों ने बड़ी बहादुरी से आगे बढ़कर एक सफल विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 30वीं बरसी पर विरोध प्रदर्शन को रोकने की अधिकारियों की कोशिश एक बार फिर इस हक़ीक़त को स्पष्ट करती है कि हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक हिंसा का आयोजक है। अपने जन-विरोधी और समाज-विरोधी एजेंडे के ख़िलाफ़ एकजुट विरोध को कुचलने के लिए लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करना और सांप्रदायिक जनसंहार को बढ़ावा देना शासक वर्ग का पसंदीदा तरीक़ा है। हिन्दोस्तानी राज्य यह सुनिश्चित करने के लिये बेताब है कि राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के ख़िलाफ़ लोगों की आवाज़ को किसी तरह से दबा दिया जाये।
इस विरोध प्रदर्शन के सफल आयोजन ने लोक राज संगठन और सभी सहभागी संगठनों के दृढ़ विश्वास को एक बार फिर स्पष्ट रूप से प्रकट किया कि लोगों की एकता को तोड़ने की हिन्दोस्तानी राज्य की साजिश का आम लोग हमेशा जबरदस्त विरोध करेंगे। सभी सहभागी संगठनों ने राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राज्य के आतंक को समाप्त करने के लिए संघर्ष जारी रखने के अपने दृढ़ संकल्प को एक बार फिर से दोहराया।