उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, गेहूं के आटे का सर्व हिन्द दैनिक औसत खुदरा मूल्य 36.98 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। पिछले एक साल में आटे के खुदरा मूल्य में 17 प्रतिषत की बढ़ोतरी हुई है। जो लोग पहले से ही एलपीजी, पेट्रोल और डीजल की अब तक की सबसे महंगी दरों का सामना कर रहे हैं, उनपर और बोझ पड़ा है।
सरकार यह दावा करके लोगों को गुमराह कर रही है कि गेहूं के कम उत्पादन के कारण क़ीमत बढ़ गई है। गेहूं का उत्पादन केवल 3 प्रतिषत से भी कम गिरावट के साथ यानि 30 लाख टन घटकर फिलहाल 1060 लाख टन है। जब सरकार के पास नवंबर 2021 में 400 लाख टन से अधिक गेहूं का स्टॉक था तो यह गिरावट कोई मायने नहीं रखती।
अप्रैल-जून 2022 के दौरान गेहूं की सरकारी ख़रीद में की गई बड़ी कटौती ही, गेहूं के खुदरा मूल्य मंे भारी वृद्धि का असली कारण है।
गेहूं की सरकारी ख़रीद केवल 187 लाख टन थी, जबकि पिछले वर्ष 433 लाख टन थी। इस कटौती ने बड़े निजी व्यापारियों और कॉर्पोरेट्स को पहले की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में गेहूं की खरीद करने की अनुमति दी। सरकारी भंडारण में गेहूं का स्टॉक 1 नवंबर, 2022 को घटकर 210 लाख टन रह गया था, जो 1 नवंबर, 2021 को 420 लाख टन था।
इसके अलावा, हाल ही में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने से पहले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में गेहूं की उच्च क़ीमत का भी लाभ बड़े पूंजीवादी निगमों ने उठाया। अप्रैल-सितंबर 2022 के दौरान देश का गेहूं निर्यात पिछले वर्ष की इस समय की तुलना में दोगुने से अधिक हो गया।
ये सभी तथ्य बताते हैं कि तीन कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के फ़ैसले के बावजूद, केंद्र सरकार इजारेदार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है। सार्वजनिक ख़रीद का निर्णय सभी के लिए सस्ती क़ीमतों पर उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता से प्रेरित नहीं है, बल्कि खाद्यान्न की ख़रीद में इजारेदार निजी कंपनियों की भूमिका का विस्तार करने के उद्देश्य से है।