हजारों किसान अपनी लंबित मांगों को पूरा नहीं किए जाने को लेकर 16 नवंबर से अनिश्चितकालीन धरने पर हैं। आंदोलनकारी किसानों ने पंजाब के मानसा, बठिंडा, पटियाला, फरीदकोट, मुकेरियां और अमृतसर में राजमार्गों को बंद कर दिया और उन्होंने जिला प्रशासन के कार्यालयों में धरना प्रदर्शन भी किया।
आंदोलनकारी किसानों ने राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार के ख़िलाफ़ अपना गुस्सा व्यक्त किया, जो किसानों से बड़े-बड़े वादे करके सत्ता में आई थी लेकिन किसानों के सभी मामलों में विफल रही। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार केवल बड़े कॉरपोरेट घरानों के हितों की सेवा कर रही है। वे किसान आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों के लिए मुआवजे़ की मांग कर रहे हैं। वे बे-मौसम बारिश से बर्बाद हुई फ़सल और मवेशियों की बीमारी से हुई मौत के मुआवजे की मांग कर रहे हैं। किसान यह भी मांग कर रहे हैं कि उनके भाइयों के ख़िलाफ़ दर्ज मामले को रद्द किया जाना चाहिये और उनके राजस्व रिकॉर्ड में से धान की पराली जलाने के दंडात्मक मामलों को रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को उन्हें पराली प्रबंधन के लिए सहायता प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने किसानों के विरोध की निंदा करने के लिए पंजाब सरकार की निंदा की है।
इन मांगों के समर्थन में भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल ने फरीदकोट के तेहना में आमरण अनशन शुरू किया है। 18 नवंबर को मोहाली में हुई एक बैठक में, बी.के.यू. (लाखोवाल), क्रांतिकारी किसान यूनियन और बी.के.यू. (एकता-उग्राहां) सहित संयुक्त किसान मोर्चा के कई अन्य संगठनों के प्रधानों ने अपनी समान मांगों के समर्थन में चल रहे किसान संघर्ष में शामिल होने का फ़ैसला किया।
इसी दौरान उत्तर प्रदेष के किसान 26 नवंबर को लखनऊ में ‘महापंचायत’ का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने पंजाब के किसानों के संघर्ष का समर्थन किया है।