बिजली क्षेत्र के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!
बिजली का निजीकरण समाज के हितों के ख़िलाफ़ है!

मज़दूर एकता कमेटी का बयान, 23 नवम्बर, 2022

बिजली संशोधन विधेयक 2022 के विरोध में बिजली क्षेत्र के मज़दूर बड़ी संख्या में दिल्ली के रामलीला मैदान में आये हैं। अन्य क्षेत्रों के मज़दूर भी आपके समर्थन में यहाँ मौजूद हैं। बिजली क्षेत्र के मज़दूरों का संघर्ष, निजीकरण के खि़लाफ़ देशभर में चल रहे संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

मज़दूर एकता कमेटी बिजली क्षेत्र के मज़दूरों के संघर्ष का पूरा-पूरा समर्थन करती है। आपका एकजुट संघर्ष पूरे समाज के हित में एक महत्वपूर्ण क़दम है। मज़दूर एकता कमेटी आपके इस बहादुर संघर्ष को सलाम करती है।

बिजली मानव जीवन की एक मूलभूत ज़रूरत है। इसलिए राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सभी को उचित दरों पर बिजली की पर्याप्त और विश्वसनीय सप्लाई सुनिश्चित करे। इस मूलभूत आवश्यकता के उत्पादन और वितरण का उददेश्य निजी मुनाफ़ा कमाना नहीं हो सकता। बिजली सप्लाई का निजीकरण, राज्य द्वारा उसके इस कर्तव्य की अवहेलना करने के बराबर है। यह सस्ती दरों पर विश्वसनीय बिजली सप्लाई प्राप्त करने के लोगों के मौलिक अधिकार का हनन है।

बिजली क्षेत्र के मज़दूरों ने बहुत ही बहादुरी से संघर्ष करके, केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों को बिजली वितरण को निजी हाथों में सौंपने की उनकी योजनाओं को रोकने को मजबूर किया है।

जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, पुद्दुचेरी, उत्तर प्रदेश, चंण्डीगढ़ आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां बिजली वितरण के निजीकरण को रोकने में आपने सफलता हासिल की है।

आपके संघर्ष के चलते, केन्द्र सरकार बिजली (संशोधन) विधेयक को कई बार – 2014, 2018, 2020 और 2021 में – पास कराने में असफल रही। इस साल मानसून सत्र में भी उसे संसद में पास नहीं किया जा सका। अब उस विधेयक को विचार-विमर्श के लिये संसदीय कमेटी को भेज दिया गया है।

1990 के दशक में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजीकरण का कार्यक्रम शुरू हुआ। सरकारी अधिकारियों ने विभिन्न हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी कंपनियों के साथ दीर्घकालिक बिजली ख़रीद-समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसकी वजह से, बिजली उत्पादन में निवेश करने वाले इजारेदार पूंजीपतियों ने भारी मुनाफे़ हासिल किये। राज्य बिजली बोर्डों को बिजली ख़रीदने के लिए निजी कंपनियों को बहुत भारी क़ीमतें देनी पड़ीं। इसके साथ-साथ, किसानों और शहरी मज़दूरों के लिए बिजली महंगी होती गयी।

बिजली संशोधन विधेयक 2022 के ज़रिये, जनता के पैसे से बनाया गया विशाल वितरण नेटवर्क, जो इस समय राज्य बिजली बोर्डों के नियंत्रण में है, उसे बड़े पूंजीपतियों को लगभग मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा।

केंद्र सरकार के प्रवक्ता और विभिन्न पूंजीवादी अर्थशास्त्री यह दावा करते हैं कि बिजली वितरण के निजीकरण से ग्राहकों को विभिन्न कंपनियों के बीच चयन करने की आज़ादी मिलेगी। उनका दावा है कि यह क़दम एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लाएगा, जिससे सस्ती दरों पर अधिक कुशल और विश्वसनीय बिजली की सप्लाई होगी।

परन्तु बिजली वितरण के निजीकरण का अब तक का अनुभव इन दावों को पूरी तरह झूठा साबित करता है। उदाहरण के लिए, मुंबई शहर में बिजली की सप्लाई करने वाली दो निजी कंपनियां और एक सार्वजनिक कंपनी है, परन्तु उस शहर में बिजली की दरें देश में सबसे ज्यादा हैं। दिल्ली में अलग-अलग क्षेत्रों में बिजली की सप्लाई टाटा और रिलायंस के इजारेदार पूंजीवादी घरानों की मालिकी वाली दो अलग-अलग कंपनियों के नियंत्रण में है। कोई भी अपनी पसंद की बिजली वितरण कंपनी का चयन नहीं कर सकता। सब इस या उस निजी इजारेदार पूंजीवादी कंपनी पर ही निर्भर हैं।

हमारे देश के इजारेदार पूंजीपति समाज के लिए इस बेहद ज़रूरी संसाधन, बिजली पर अपनी इजारेदारी हासिल करके, बेशुमार मुनाफ़े बनाना चाहते हैं। बिजली संशोधन विधेयक का उद्देश्य, निजी कंपनियों के लिए कम जोखिम के साथ, उच्चतम मुनाफ़े कमाने का अवसर पैदा करना है। यह विधेयक निजी पूंजीवादी कंपनियों को बुनियादी ढांचे में अपना पूंजीनिवेश करने की ज़रूरत के बिना, केवल मुनाफ़े कमाने का मौका प्रदान करता है।

बिजली (संशोधन) विधेयक को रद्द करना देश भर के किसानों की एक प्रमुख मांग रही है। किसानों को यह समझ है कि इस विधेयक के पास होने से, उनके पानी के पंप चलाने के लिए बिजली बहुत महंगी हो जाएगी।

बिजली मज़दूरों ने सभी उपभोक्ताओं को बिजली उत्पादन और वितरण, दोनों के निजीकरण के हानिकारक नतीजों के बारे में शिक्षित करने के लिए, कई जागरुकता अभियान चलाये हैं। आज देश के लाखों-लाखों मज़दूर और किसान आपके संघर्ष के समर्थन में आपके साथ खड़े हैं।

1990 के दशक से, सत्ता में आई सभी सरकारों ने निजीकरण के कार्यक्रम को पुरजोर लागू किया है। निजीकरण को बढ़ावा देने के लिये सरकारों ने अनेक बुनियादी सार्वजनिक संस्थानों और सेवाओं को बड़े सोचे-समझे तरीके़ से कमज़ोर और बीमारू बनाया है, ताकि उनके निजीकरण को न्यायसंगत ठहराया जा सके। रेलवे, बैंक, बीमा, बी.एस.एन.एल. और एम.टी.एन.एल., सड़क व विमान परिवहन, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा, आदि, इन सबके निजीकरण इसी प्रकार से किये जाते रहे हैं। इसी प्रकार केन्द्र सरकारों और राज्य सरकारों ने जानबूझकर राज्यों के बिजली बोर्डों और सरकारी वितरण कंपनियों को आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया है ताकि इन कंपनियों को बेहद कम क़ीमत पर इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपा जा सके।

निजीकरण के खि़लाफ़ संघर्ष, इजारेदार पूंजीवादी घरानों के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग के खि़लाफ़ मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों का संघर्ष है। अधिकतम मुनाफ़े के भूखे, इजारेदार पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने की अर्थव्यवस्था की वर्तमान दिशा को बदलना होगा। अर्थव्यवस्था को सभी मेहनतकशों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में संचालित करना होगा। इस नज़रिए के साथ, मजदूरों और किसानों को इस संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए मज़दूर वर्ग को राजनीतिक सत्ता को अपने हाथों में लेने और सभी मुख्य उत्पादन के साधनों को समाज की मालिकी में लाने की आवश्यकता है। ऐसा करके ही अर्थव्यवस्था को नयी दिशा, समाज के सभी सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा, दिलाई जा सकेगी।

मज़दूर एकता कमेटी बिजली संशोधन विधेयक 2022 को रद्द करने, बिजली क्षेत्र में निजीकरण की सभी प्रक्रियाओं को रद्द करने, संविदा बिजली कर्मियों को नियमित करने, पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने, आदि सहित बिजली मज़दूरों की सभी मांगों का समर्थन करती है। हम आपके इस सफलतापूर्वक विरोध प्रदर्शन को बधाई देते हैं।

बिजली संशोधन विधेयक 2022 को रद्द करो!

बिजली क्षेत्र के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!

मज़दूरों, किसानों और सभी मेहनतकशों की एकता ज़िंदाबाद!

इंक़लाब ज़िन्दाबाद!

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