लगभग दो साल पहले राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर, बड़े पैमाने पर आयोजित किये गये विरोध प्रदर्शन के लिये पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों के किसान एक साथ आए थे। उनके संघर्ष को बदनाम करने की केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद, अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष करने का हमारे बहादुर किसानों का दृढ़ संकल्प देश और दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा। केंद्र सरकार ने नवंबर 2021 में तीन किसान विरोधी क़ानूनों को वापस ले लिया और किसानों की अन्य मांगों को पूरा करने का उन्हें आश्वासन भी दिया। हालांकि, एक साल बाद भी किसानों को दिए गए अधिकांश आश्वासन पूरे नहीं किये गये हैं। किसानों ने अपनी मांगों को पूरा करवाने का संघर्ष जारी रखा है।
मज़दूर एकता कमेटी ने 17 नवंबर को ‘किसान आंदोलन-चुनौतियां और आगे का रास्ता’ विषय पर एक मीटिंग का आयोजन किया। इसमें आमंत्रित वक्ता थे – अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव कॉमरेड हन्नान मोल्लाह; कामगार एकता कमेटी की संयुक्त सचिव डॉ. संजीवनी; आज़ाद किसान कमेटी, दोआबा (पंजाब) के अध्यक्ष श्री हरपाल सिंह संघा; अखिल भारतीय विद्युत कर्मचारी संघ के राष्ट्रीय सचिव कॉमरेड कृष्णा भोयर; और सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. बी. सेठ। हिन्दोस्तान तथा विदेश के विभिन्न हिस्सों के मज़दूरों, किसानों और महिला कार्यकर्ताओं ने उत्साहपूर्वक इस मीटिंग में भाग लिया और अपने अनुभवों से चर्चा को समृद्ध किया। संतोष कुमार ने इस मीटिंग का संचालन किया।
कॉमरेड हन्नान मोल्लाह ने इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर मीटिंग आयोजित करने के लिए मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) को बधाई दी। उन्होंने हिन्दोस्तान में किसानों के संघर्षों के विभिन्न चरणों का वर्णन पेश किया जैसे कि उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष के समय से लेकर वर्तमान तक। उन्होंने किसानों की भूमिहीनता और जमींदारी व्यवस्था के ख़िलाफ़ हुये किसानों के संघर्षों का वर्णन भी प्रस्तुत किया।
कॉमरेड हन्नान मोल्लाह ने बताया कि 1936 में अखिल भारतीय किसान सभा के गठन के साथ, किसानों के संघर्ष ने भूमि के लिए और सामंती व आर्थिक शोषण के ख़िलाफ़ एक अधिक मजबूत, संगठित और अखिल भारतीय चरित्र हासिल किया। किसानों के ऊपर असहनीय कजेऱ् के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र के वरली में आदिवासी किसानों का संघर्ष, बंगाल और पूर्वी बिहार में तेभागा संघर्ष, तेलंगाना में किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष सहित पंजाब, केरल, असम और कई अन्य क्षेत्रों में हुये किसानों के संघर्षाें जैसे कई और संघर्षाें के उदाहरण उन्होंने दिए।
कॉमरेड हन्नान मोल्लाह ने बताया कि 90 के दशक में, विश्व बैंक द्वारा निर्धारित नीतियों को अपनाने से विश्व बाज़ार के साथ हिन्दोस्तान के कृषि क्षेत्र का एकीकरण बढ़ रहा है और कृषि का संकट बाकायदा और भी अधिक गहरा होता जा रहा है।
किसान आंदोलन के वर्तमान चरण का उल्लेख करते हुए, उन्होंने बताया कि अपनी फ़सल के लिए उचित मूल्य की मांग कर रहे, मध्य प्रदेश में मंदसौर के किसानों पर 2017 में हुई फायरिंग और उनकी हत्या ने संघर्ष को एक नयी शक्ति और प्रेरणा प्रदान की। मोदी सरकार ने तीन किसान विरोधी क़ानूनों को 2020 में ऐसे समय पर संसद में पारित किया, जब कोविड-19 महामारी के कारण सभी लोगों के विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा हुआ था। देशभर के लगभग 500 किसान संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) के बैनर तले अपनी सांझी मांगों को लेकर संघर्ष में एक साथ आए। दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करते हुये, किसानों का बहादुर संघर्ष, जो एक कि वर्ष से भी अधिक समय तक चला, यह दुनिया के इतिहास में एक अभूतपूर्व मिसाल था। इस संघर्ष ने मोदी सरकार को तीन किसान विरोधी क़ानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन विरोध संघर्ष को ख़त्म करने के लिए सरकार ने किसानों से जो वादे किए थे, वे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। इसलिए यह संघर्ष अभी भी जारी है, कॉमरेड हन्नान मोल्लाह ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा।
डॉ. संजीवनी ने किसान आंदोलन से सीखे गए महत्वपूर्ण सबकों की ओर इशारा किया – जैसे कि संघर्ष में लोगों की एकता, दृढ़ संकल्प और संगठन के ज़रिये सुनियोजित तरीक़े से संचालित किया गया विरोध प्रदर्शन पूरी दुनिया के सभी संघर्षरत लोगों के लिए एक मिसाल बन गया। उन्होंने बताया कि कृषि और पूरी अर्थव्यवस्था पर बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों का वर्चस्व है, जो कृषि संकट के साथ-साथ मज़दूरों की रोज़ी-रोटी की असुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं। मज़दूरों और किसानों का दुश्मन एक ही है। वह है हमारे देश के असली शासक टाटा, अंबानी आदि बड़े इजारेदार पूंजीवादी घराने। उन्होंने समझाया कि ये इजारेदार पूंजीवादी घराने शासक बने रहेंगे और पूरे समाज के लिए एजेंडा तय करते रहेंगे, भले ही चुनाव के बाद सरकार में एक राजनीतिक पार्टी के बदले कोई और पार्टी आ जाए।
डॉ. संजीवनी ने बिजली संशोधन विधेयक का उदाहरण पेश किया। जिसके ख़िलाफ़ हो रहे विरोध संघर्षाें में लाखों बिजली मज़दूर शामिल हैं। इस विधेयक को इसलिये लाया गया है कि बड़े कॉरपोरेट घराने राज्य बिजली बोर्डों के ज़रिये स्थापित संसाधनों को कौड़ियों के दाम पर ख़रीद सकें ताकि उनके लिये बेहिसाब मुनाफ़ा हासिल करना सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने बताया कि इतने जबरदस्त विरोध के बावजूद सरकार विधेयक को वापस लेने से इनकार कर रही है, यह बहुत ही स्पष्ट रूप से दिखाता है कि इस विधेयक को लोगों के हित में नहीं, बल्कि बड़े कॉर्पोरेट घरानों के हित में बनाया गया है। उन्होंने आगे के रास्ते का उल्लेख करते हुए कहा कि पूंजीपतियों के एजेंडे के बजाय, जनता के एजेंडे को लागू करने के नज़रिए के साथ, मज़दूरों और किसानों को एकजुट होकर अपनी तात्कालिक मांगों के लिए संघर्ष करना होगा।
श्री हरपाल सिंह संघा ने कहा कि तीनों किसान विरोधी क़ानूनों को वापस लेने के लिए मोदी सरकार को मजबूर करने में किसान आंदोलन सफल रहा। उनके संगठन ने दिल्ली की सीमाओं पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों के लिए किसानों को लामबंध किया और इस बहादुर संघर्ष के साथ अंत तक बने रहे। उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों में किसानों के एकजुट संघर्ष और युवाओं की जुझारू भूमिका के बारे में बताया।
किसान आंदोलन के नेतृत्व को बंटा हुआ होने को लेकर मीडिया में प्रचलित तरह-तरह के ग़लत विचारों का उन्होंने खंडन किया। श्री संघा ने बताया कि हमारी सभी मांगों के लिए, जैसे कि किसानों को एम.एस.पी. की गारंटी हो, लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या के दोषियों को सज़ा दी जाये, आंदोलन के दौरान जिन किसानों की मौत हुई है उनके परिवारों को मुआवज़ा दिया जाये, पराली-प्रबंधन के लिए सरकारी सहायता मिले, फ़सल ख़राब होने पर और पालतू जानवरों की बीमारी के लिए मुआवज़ा मिले, आदि मांगों के लिये हमारा एकजुट संघर्ष अभी भी जारी है।
कॉमरेड कृष्णा भोयर ने कहा कि अपनी मांगों के इर्द-गिर्द सभी किसान संगठनों की बनी दृढ़ एकता ही किसान आन्दोलन की ताक़त थी। उन्होंने इस समय चल रहे उस संघर्ष पर भी प्रकाश डाला, जिसके द्वारा बिजली मज़दूर बिजली संशोधन विधेयक 2022 को रद्द करने के लिए सरकार को मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं। बिजली वितरण के क्षेत्र में निजी कंपनियों के साथ मुंबई के लोगों के अपने नकारात्मक अनुभव की ओर इशारा करते हुए उन्होंने बताया कि बिजली आपूर्ति को मुनाफ़ा बनाने के स्रोत के रूप में नहीं देखा जा सकता है। विधेयक के आने से किसानों और मज़दूरों पर इसके गंभीर परिणाम होंगे। यह विधेयक राज्य बिजली बोर्डों को ख़त्म कर देगा और उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरों को बढ़ा देगा। कॉमरेड भोयर ने मीटिंग में शामिल सभी भागीदारों से आह्वान किया कि सभी लोग 23 नवंबर को नई दिल्ली में होने वाली बिजली मज़दूरों की अखिल भारतीय रैली में शामिल हों और बिजली मज़दूरों के संघर्ष को अपना समर्थन दें।
डॉ. बी. सेठ ने स्पष्ट किया कि किसान आंदोलन ख़त्म नहीं हुआ है। पिछले कुछ महीनों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि कई क्षेत्रों में किसानों द्वारा किये जा रहे संघर्ष इसका प्रमाण है। रेल रोको आंदोलन और पंजाब के मुख्यमंत्री का घेराव तथा आज़मगढ़ में हवाई अड्डे के निर्माण के लिए उनकी भूमि के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ किये गये संघर्ष और अपनी अन्य मांगों को लेकर किसानों द्वारा किये जा रहे संघर्षों के बारे में डॉ. सेठ ने विस्तार में बताया। उन्होंने दोहराया कि दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन वापस लेने के समय सरकार द्वारा किसानों से किए गए वादे पूरे नहीं किए गए हैं। यह कहा जा रहा है कि चुनावों के माध्यम से सत्ता में सरकार बदलने से लोगों की समस्याओं का समाधान हो सकता है। इस दावे का खंडन करते हुए, डॉ. सेठ ने कहा कि बड़े कॉर्पोरेट घराने हमेशा उस राजनीतिक पार्टी की चुनावी जीत सुनिश्चित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करते हैं जो कॉर्पोरेट एजेंडे को आगे बढ़ाने में सबसे अधिक सक्षम है। निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने चुने हुए प्रतिनिधियों पर लोगों के नियंत्रण के सपने को साकार करने के लिए एक नए तंत्र और एक नयी व्यवस्था बनाने की ज़रूरत है, जैसे कि लोगों का अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने और उन्हें वापस बुलाने का अधिकार।
मुख्य वक्ताओं की प्रस्तुतियों के बाद, कई भागीदारों ने उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर अपने विचार रखे।
संतोष कुमार ने चर्चा का समापन करते हुए सभी वक्ताओं और सभी भगीदारों को धन्यवाद दिया। कई वक्ताओं द्वारा उठाई गई इस सच्चाई पर संतोष कुमार ने एक बार फिर से ज़ोर दिया कि मज़दूरों और किसानों का एक सांझा एजेंडा है। उनका सांझा एजेंडा अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा देना है, ताकि अधिक से अधिक निजी मुनाफे़ बनाने की पूंजीपतियों की लालच को पूरा करने के बजाय, लोगों की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। यह एजेंडा है समाज को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने और इसके वास्तविक मालिक बनने के लिए, मज़दूरों और किसानों को सशक्त बनाना।