26 नवंबर, 2022 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की 14वीं बरसी है। भारी हथियारों से लैस दस आतंकवादियों ने लगातार तीन रात और दिन तक शहर में जबरदस्त तबाही मचाई। उनके निशाने पर थे – छत्रपति शिवाजी रेलवे टर्मिनस, ओबेरॉय ट्राइडेंट, ताज होटल, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, नरीमन हाउस और मेट्रो सिनेमा। इस हमले में 25 विदेशियों सहित 168 लोगों की जानें चली गईं।
हिन्दोस्तानी राज्य की आधिकारिक टिप्पणी यह है कि ये हमले लश्कर-ए-तैयबा नाम के एक पाकिस्तानी आतंकवादी गिरोह द्वारा आयोजित किए गए थे। इसे कैसे और किसके द्वारा अंजाम दिया गया, इसकी पूरी कहानी अमरीकी खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी पर आधारित है। अमरीकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट, डेविड हेडली नामक एक व्यक्ति के खुलासे पर आधारित है, जिसे पहले कई बार अमरीकी एजेंसियों द्वारा गिरफ़्तार किया गया था और कथित रूप से जेल से इसलिए रिहा कर दिया गया था, क्योंकि वह एक उपयोगी मुखबिर बनने के लिए राज़ी हो गया था। (देखें बाॅक्स: पृष्ठ 2 पर)
सच तो यह है कि अमरीकी एजेंसियों द्वारा जो कुछ भी बताया गया था, उसे ही हिन्दोस्तानी अधिकारी दोहराते आये हैं, और इसलिए इस आधिकारिक बयान पर कई सवाल उठने लाजमी हैं। जिस राजनीतिक संदर्भ में ये हमले हुए थे, उसके निष्पक्ष विश्लेषण से पता चलता है कि इन हमलों के लिए अभियुक्त के रूप में अमरीकी साम्राज्यवादी स्वयं कटघरे में खड़े दिखाई देते हैं।
राजनीतिक सन्दर्भ
11 सितम्बर, 2001 को हुए आतंकवादी हमलों के बाद, अमरीका द्वारा पूरी दुनिया पर अमरीकी साम्राज्यवाद की दादागिरी स्थापित करने के उद्देश्य से शुरू किए गए, तथाकथित आतंकवाद के खि़लाफ़ युद्ध का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्दाफ़ाश हो रहा था। इराक पर अमरीका द्वारा किये गये आक्रमण के लिए जो दलील पेश की गयी थी कि, सद्दाम हुसैन के शासन के पास सामूहिक विनाश के हथियारों का भंडार है, “जानबूझकर फैलाये गए इस झूठ” का बड़े ही स्पष्ट तरीके से पर्दाफ़ाश भी हो गया था। जर्मनी, फ्रांस, हिन्दोस्तान और पाकिस्तान सहित कई देशों ने इराक के खि़लाफ़ अमरीकी नेतृत्व वाले “इच्छुक गठबंधन” में शामिल होने से इनकार कर दिया था। अफ़गान लोगों पर हमला करने के लिए पाकिस्तान को एक सैन्य संचालन केन्द्र के रूप में इस्तेमाल करने के खि़लाफ़, पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर विरोध बढ़ रहा था। संक्षेप में देखा जाये, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमरीका अपने मक़सद को हासिल करने में अकेला पड़ रहा था।
यह एक ऐसा समय था जब दक्षिण एशिया में, हिन्दोस्तान और पाकिस्तान की सरकारें अपने बीच के मतभेदों को ख़त्म करने और अपने अनसुलझे विवादों को सुलझाने का प्रयास कर रही थीं। लोगों को यह भी याद होगा कि जिस दिन मुंबई में आतंकवादी हमले शुरू हुए थे, उस दिन पाकिस्तान के विदेश मंत्री बातचीत के लिए, नई दिल्ली में ही उपस्थित थे। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दोस्तान और पाकिस्तान ने अपने देशों के बीच चले आ रहे अनसुलझे विवादों को सुलझाने की जब-जब कोशिश की है। तब-तब अमरीका ने गुप्त रूप से किसी न किसी तरह इन प्रयासों को विफल करने का काम किया है और इस प्रकार पूरे दक्षिण एशिया को अपने प्रभुत्व में लाने के उद्देश्य से, दक्षिण एशिया में अपने हस्तक्षेप को बढ़ाने के लिए, अमरीका ने अपने लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया है।
2008 में मुंबई में हुये आतंकवादी हमलों के तुरंत बाद, बराक ओबामा ने, जिन्हें हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव में विजयी घोषित किया गया था, उन्होंने पाकिस्तान के खि़लाफ़ बड़े पैमाने पर एक प्रचार अभियान चलाना शुरू कर दिया था, जिसमें पाकिस्तान को वैश्विक आतंकवाद के स्रोत के रूप में पेश किया गया था। अमरीकी सशस्त्र बलों ने, पाकिस्तान की धरती पर कई ड्रोन हमले भी किए थे जिसमें सैकड़ों निर्दाेष लोग मारे गए थे।
इस हक़ीक़त पर भी गौर करने की ज़रूरत है कि जुलाई 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के खि़लाफ़ एक अविश्वास मत ने, हिन्दोस्तान और अमरीका के परमाणु समझौते पर हिन्दोस्तान की संसद में मौजूद मतभेद को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रकट किया था। मुंबई में हुये आतंकवादी हमले ने संयुक्त राज्य अमरीका और हिन्दोस्तान के बीच एक रणनीतिक सह-सैन्य गठबंधन को मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त किया। तब से अमरीका ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुक़ाबला करने के लिए क्वाड गठबंधन में हिन्दोस्तान को एक महत्वपूर्ण सहभागी के रूप में शामिल किया है।
संक्षेप में, भू-राजनीतिक संदर्भ और जो कुछ भी सबूत उपलब्ध हैं, वे सब इस संभावना की ओर इशारा करते हैं कि 26 नवंबर को मुंबई में हुआ, आतंकी हमला अमरीका की खुफिया एजेंसियों द्वारा अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए झूठे झंडे तले आयोजित किया गया एक ऑपरेशन था।
यदि इस बात को सच भी मान लिया जाये कि मुंबई हमले के आतंकवादी पाकिस्तान से मुंबई आए थे, फिर भी झूठ के झंडे तले किये गये इस ऑपरेशन के लिए ज़िम्मेदार, अमरीका एक प्रमुख संदिग्ध होने के अपराध से मुक्त नहीं हो जाता। यह सर्वविदित है कि संयुक्त राज्य अमरीका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सी.आई.ए.), पाकिस्तान में अधिकांश आतंकवादी गिरोहों की निर्माता और प्रायोजक है। सी.आई.ए. ने अस्सी के दशक में सोवियत सशस्त्र कब्ज़े के खि़लाफ़ अफ़गान लोगों के संघर्ष में घुसपैठ करने के लिए, ऐसे गिरोह बनाए थे। सोवियत संघ के पतन के बाद, अपने मंसूबों को हासिल करने के लिए अमरीका ने दुनिया के विभिन्न देशों और क्षेत्रों में – यूरोप, एशिया और अफ्रीका के कई देशों में तथा स्वयं अमरीका में भी इन गिरोहों का इस्तेमाल किया है।
हिन्दोस्तान में राजकीय आतंकवाद का बढ़ना
हिन्दोस्तानी राज्य ने 26 नवंबर को हुये आतंकवादी हमलों का इस्तेमाल करके अपने दमनकारी राज्य-तंत्र को मजबूत करते हुये, लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला करने वाले कठोर क़ानूनों से खुद को लैस किया है।
26 नवंबर को हुये हमलों के तुरंत बाद, मनमोहन सिंह की यू.पी.ए. सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) की स्थापना की थी। उस सरकार ने गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) में संशोधन पारित किया। इस संशोधन ने यू.ए.पी.ए. क़ानून को टाडा और पोटा से भी ज्यादा कठोर बना दिया।
आतंकवाद को कुचलने के नाम पर पंजाब में टाडा लागू किया गया था। टाडा के खि़लाफ़ लोगों के शक्तिशाली विरोध के चलते टाडा को रद्द करना पड़ा। दिसंबर 2001 में संसद पर हुये आतंकवादी हमले के बाद पोटा को लागू किया गया था। बड़े पैमाने पर हुये विरोध के मद्देनज़र बाद में पोटा क़ानून को भी रद्द करना पड़ा था।
पिछले 14 सालों से राजनीतिक विरोधियों को सज़ा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एन.आई.ए. का इस्तेमाल और भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यू.ए.पी.ए. का इस्तेमाल उन लोगों को आतंकित करने और सज़ा देने के लिए किया जाता है जो राजकीय आतंकवाद का विरोध करते हैं और लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं। यू.ए.पी.ए. क़ानून, सालों तक बिना किसी चार्जशीट के और बिना किसी मुकदमे के, लोगों को जेल में कैद रखने की शक्ति राज्य को प्रदान करता है। जेल में बंद लोगों को रिहा होने के लिए खुद को निर्दाेष साबित करना पड़ता है। इस क़ानून के तहत, लोगों के लिए इंसाफ और अधिकारों के लिए लड़ने वाले हजारों लोग, वर्षों से जेलों में सड़ रहे हैं।
निष्कर्ष
अमरीकी साम्राज्यवाद मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन और दुनिया में आतंकवाद का स्रोत है। हिन्दोस्तान में सभी प्रगतिशील ताक़तों को एकजुट होना चाहिए और हिन्दोस्तान व अमरीका के बीच ख़तरनाक सैन्य सह-रणनीतिक गठबंधन को ख़त्म करने के लिए लड़ना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस क्षेत्र में अमरीकी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप समाप्त हो, इसके लिये पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों के लोगों के साथ मिलकर लड़ना चाहिए।
बाॅक्स: अमरीकी खुफिया एजेंसियों का खुलासा
मुंबई में हुये आतंकवादी हमलों के एक साल बाद, 2009 के अंत में अमरीकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया कि उन्होंने डेविड हेडली नामक एक व्यक्ति को अभी-अभी गिरफ़्तार किया है, जिसने मुंबई आतंकवादी हमलों की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस एजेंट ने खुलासा किया कि आतंकवादी हमले कैसे आयोजित किए गए थे और उसके आयोजक कौन थे।
अमरीका के अनुसार, यह व्यक्ति उनके उन एजेंटों में से एक था जिसे अमरीका ने पाकिस्तान में विभिन्न आतंकवादी गिरोहों के साथ काम करने के लिए तैनात किया गया था। यह एजेंट कथित रूप से अमरीका के खि़लाफ़ हो गया था। अमरीका ने पूछताछ करने के लिए उसे हिन्दोस्तानी खुफिया एजेंसियों को सौंपने से इनकार कर दिया था। इसलिए इस बात ने इस धारणा को भी मजबूत किया कि मुंबई में हुये आतंकवादी हमले के आयोजन में अमरीका अपना हाथ छुपाना चाहता था, इसलिए अमरीका ने उसका दोष पाकिस्तान पर थोप दिया था।