माली में साम्राज्यवादी दखलंदाज़ी मुर्दाबाद!

जनवरी 2013 के पहले दो हफ्तों में फ्रांसीसी सैन्य विमानों ने माली के शहरों व गांवों पर जमकर बम बरसाये, जिसकी वजह से बहुत लोग मारे गये या घायल हुये। अन्य ताकतों के अलावा, अमरीका और ब्रिटेन ने माली में इस सैनिक दखलंदाज़ी का समर्थन किया था। आतंकवाद और “जिहादियों” के खिलाफ़ जंग के नाम पर, 21वीं सदी में साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा की गई सैनिक दखलंदाज़ी की लंबी सूची में यह सबसे हाल की दखलंदाज़ी की हरक

जनवरी 2013 के पहले दो हफ्तों में फ्रांसीसी सैन्य विमानों ने माली के शहरों व गांवों पर जमकर बम बरसाये, जिसकी वजह से बहुत लोग मारे गये या घायल हुये। अन्य ताकतों के अलावा, अमरीका और ब्रिटेन ने माली में इस सैनिक दखलंदाज़ी का समर्थन किया था। आतंकवाद और “जिहादियों” के खिलाफ़ जंग के नाम पर, 21वीं सदी में साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा की गई सैनिक दखलंदाज़ी की लंबी सूची में यह सबसे हाल की दखलंदाज़ी की हरकत है। इसका असली मकसद है इन साम्राज्यवादी ताकतों के आर्थिक और रणनैतिक हितों की रक्षा करना।

माली एक ऐसा देश है जो पहले तीन जाने-माने पश्चिम अफ्रीका के साम्राज्यों में से एक था। 8वीं सदी से, पूरे सहारा क्षेत्र के व्यापार पर इन साम्राज्यों का नियंत्रण होता था। माली में काफी कुदरती संसाधन हैं। माली अफ्रीका में सोने के उत्पादन में तीसरे नंबर पर है। उसमें यूरेनियम के अनमोल संसाधन हैं, तेल व गैस की संभावित सम्पदायें हैं, तथा फोसफोरस, केयोलिनाइट, नमक और चूने के अनेक संसाधन हैं।

19वीं सदी के आखिरी वर्षों में माली पर प्रत्यक्ष फ्रांसीसी उपनिवेशवादी शासन लागू हुआ। 1960 में माली द्वारा अपनी आज़ादी हासिल करने के बाद भी, माली में फ्रांस की उपस्थिति और प्रभाव काफी ज़ोरदार रहे। बर्तानवी साम्राज्यवादियों की तरह, फ्रांस ने भी अपने भूतपूर्व उपनिवेशों में अपने विशेष अधिकारों वाले स्थान को बनाये रखने की हमेशा कोशिश की है। उसने अपने भूतपूर्व उपनिवेशों की अर्थव्यवस्थाओं को फ्रांस के साथ नज़दीकी से जोड़ रखा है। कई अफ्रीकी देशों में सैनिक दखलंदाज़ी करने का भी फ्रांस का लंबा इतिहास है, जैसे कि आयवरी कोस्ट में  और हाल में लिबिया में, जहां साम्राज्यवादी हमले को फ्रांस ने अगुवाई दी थी।

दूसरी उपनिवेशवादी ताकतों की तरह, फ्रांस ने भी, अपना शासन बरकरार रखने के लिये, उपनिवेशों में ऐतिहासिक भेदभावों को खूब बढ़ावा दिया है। माली के उत्तरी भाग में, जहां तुआरेग और अन्य लोग बसे हुये हैं, वहां बहुत ही कम विकास हुआ है और उस इलाके में लोगों ने कई बार सरकार के खिलाफ़ बग़ावत की है। हाल के दिनों में, उत्तरी इलाके के निवासियों का गुस्सा व असंतोष इतना तेज़ हो गया है कि वहां माली से अलग होने का आन्दोलन शुरू हो गया है। फ्रांसीसी और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों ने बाग़ी संगठन के ‘इस्लामी रूढ़ीवादी’ चरित्र पर रोशनी डालने का खूब प्रयास किया है, ताकि ‘इस्लामी आतंकवाद पर वैश्विक जंग’ की आड़ में, माली में अपने सैनिक हस्तक्षेप को जायज़ ठहरा सकें।

2012 में माली में लंबे अरसे से चल रहे गृह युद्ध के तेज़ हो जाने से, फ्रांसीसी और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों को वहां प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने का मौका मिला। 20 दिसंबर, 2012 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने “माली में अफ्रीका-नीत अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिशन” को लागू करने की स्वीकृति दी, जिसका तथाकथित उद्देश्य है “अधिकारियों को उत्तर में बागि़यों के कब्ज़े के इलाकों को वापस लेने और देश की एकता को पुनःस्थापित करने में मदद देना”। फ्रांसीसी साम्राज्यवादी उस दखलंदाज़ी में अगुवा थे और उन्हें अमरीकी व ब्रिटिश साम्राज्यवादियों का समर्थन प्राप्त था। फ्रांसीसी दखलंदाज़ी को समर्थन देने वाला प्रथम देश ब्रिटेन था, जिसने अपने वायु सैनिक विमानों और हवाई अड्डों की सेवाओं आदि से मिशन को समर्थन दिया। अमरीका ने खुफिया सूचना, विमानों और विमान संबंधी सेवाओं से समर्थन किया। विदेशी फौज़ बड़ी संख्या में माली में घुस गयी और वहां बहुत से लोग मारे गये, घायल हुये और विस्थापित हुये।

दुनिया के लोगों का अनुभव यह दिखाता है कि जब साम्राज्यवादी ताकतें किसी भी बहाने, किसी देश में अपना पैर जमा लेती हैं, तो वे और ज्यादा गहरायी तक घुसने की कोशिश करती हैं। वे एक ऐसी राजनीतिक सत्ता को स्थापित करती हैं जो उनका हुक्म मानेगी और उस देश के संसाधनों को पूरी तरह चूस लेने की कोशिश करती हैं। फ्रांस की अगुवाई में माली में सैनिक दखलंदाज़ी उत्तरी अफ्रीका में तेज़ी से फैलती हुई साम्राज्यवादी दखलंदाज़ी में एक और खतरनाक कदम है। यह एक सवतंत्र देश की संप्रभुता का खुलेआम हनन है। मजदूर एकता लहर माली में सैनिक दखलंदाज़ी की कड़ी निंदा करती है और मजदूर वर्ग तथा सभी आज़ादी पसंद लोगों से आह्वान करती है कि उसका जमकर विरोध किया जाये।

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