सिखों के जनसंहार की 38वीं बरसी पर जनसभा:
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के खि़लाफ़ संघर्ष जारी है!

1 नवंबर, दिल्ली और देश के अन्य भागों में आयोजित सिखों के जनसंहार की 38वीं बरसी का दिन है। उस दिन पर, राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक जनसंहार के खि़लाफ़ संघर्ष करने वाले संगठनों ने कई विरोध प्रदर्शन किये।

1984_1-Nov2022राजधानी नई दिल्ली में, उस दिन जंतर-मंतर पर एक संयुक्त विरोध सभा का आयोजन किया गया। सभा स्थल पर लगे मुख्य बैनर पर इस प्रकार के नारे लिखे थे, “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के खि़लाफ़ संघर्ष जारी है!”, “एक पर हमला सब पर हमला!”

लोक राज संगठन, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, वेलफेयर पार्टी आफ इंडिया, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) न्यू प्रोलतेरियन, लोक पक्ष, द सिख फोरम, जमात-ए-इस्लामी हिंद, सिटिज़न्स फॉर डेमोक्रेसी, पुरोगामी महिला संगठन, जन संघर्ष समन्वय समिति, अखिल भारतीय मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत, हिंद नौजवान एकता सभा और मज़दूर एकता कमेटी द्वारा संयुक्त रूप से इस सभा का आयोजन किया गया था। सभा में राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं, वकीलों, मीडिया कर्मियों, मज़दूरों, युवाओं और महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

“राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!”, “1984 के सिख जनसंहार के आयोजकों को सज़ा दो!”, “1984, 1992, 2002 और अन्य जनसंहार के आयोजकों को सज़ा दो!”, “एक पर हमला सब पर हमला!” – जैसे नारे वाले बैनरों से सभा स्थल को सजाया गया था। सभा में शामिल कई लोगों के हाथों में प्लेकार्ड थे जिन पर भी इसी प्रकार के नारे लिखे थे।

लोक राज संगठन के अध्यक्ष एस. राघवन ने सभा में हिस्सा ले रहे सभी लोगों का स्वागत किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि बैठक में भाग लेने वाले सभी संगठनों ने लगातार एकजुट होकर राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक को खत्म करने और गुनहगारों को सज़ा दिलवाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखा है। उन्होंने कहा कि 1984 में हुये सिखों के जनसंहार को “दंगा” कहना, जो कि आधिकारिक प्रवक्ता अभी भी कहते हैं, यह पूरी तरह से झूठ है। वह राज्य द्वारा आयोजित जनसंहार था।

पिछले 38 वर्षों में हमारे लोगों के खि़लाफ़ बार-बार होने वाली सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद को और तेज़ी से बढ़ाया गया है। जो लोग सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करते हैं और हमारी एकता को तोड़ते हैं उन्हें कभी भी सज़ा नहीं मिलती। भाजपा और कांग्रेस पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय एकता की रक्षा करने की बात करती हैं लेकिन वास्तविकता में लगातार लोगों को बांटने का काम करती हैं। यह सोचना ग़लत है कि सांप्रदायिक हिंसा का स्रोत केवल भाजपा ही है, और इसे सत्ता से हटा देने से समस्या का समाधान हो जाएगा। एस. राघवन ने बताया कि सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के खि़लाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए हमें अपने अधिकारों को हासिल करने के लिये, सभी शोषित और उत्पीड़ित लोगों के बीच एक मजबूत एकता बनानी होगी और उसे लगातार मजबूत करते रहना होगा।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के वक्ता, कॉमरेड बिरजू नायक ने विस्तार से बताया कि नवंबर 1984 में जो हुआ, वह राज्य द्वारा आयोजित एक जनसंहार था। पिछले 38वर्षों में, सत्ता में आने वाली एक के बाद एक, हर पार्टी और गठबंधन के द्वारा सच को छुपाने के लिये किये गये लगातार प्रयासों से यह स्पष्ट होता है कि उस जनसंहार के पीछे शासक वर्ग और उसकी पूरी राज्य मशीनरी का हाथ था। जबकि कांग्रेस पार्टी और उस समय सत्ता के प्रमुख पदों पर बैठे अधिकारी इस जनसंहार को आयोजित करने के लिए ज़िम्मेदार थे, तो वह जनसंहार पूरे शासक वर्ग के पक्ष में किया गया था। शासक वर्ग ने अपने अंतर्विरोधों को हल करने के लिये तथा मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता की एकता को तोड़ने के लिए उस जनसंहार का आयोजन किया था।

जो लोग इस विचार को बढ़ावा देते हैं कि 1984 का जनसंहार एक विचलन था, वे लोगों को भाजपा के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता में, कांग्रेस पार्टी के पीछे खड़े होने का आह्वान करने की लाइन को सही ठहराने के लिए ऐसा कर रहे हैं। वे इस गलत धारणा को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा का स्रोत एक विशेष राजनीतिक पार्टी, भाजपा है, न कि संपूर्ण शासक वर्ग। यह एक ऐसी लाइन है जो सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़ हमारे संघर्ष को गुमराह कर देगी।

सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद का स्रोत इजारेदार घरानों के नेतृत्व वाले पूंजीपति वर्ग के शासन में निहित है। सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद का उद्देश्य हमारे देश के मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता की फौलादी एकता को तोड़ना और अपने अधिकारों के लिए हमारे संघर्ष को कुचलना है। सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंक के खि़लाफ़ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए, सभी शोषित और उत्पीड़ित लोगों की, और सभी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक ताक़तों की, सभी के अधिकारों की सुरक्षा के लिए, एक राजनीतिक एकता को बनाना और मजबूत करना आवश्यक है। हमारे संघर्ष को एक ऐसे नए राज्य की स्थापना के उद्देश्य से आगे ले जाना है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि किसी के साथ उसके विचारों के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा, और जो इस तरह के भेदभाव करता है, उसे तुरंत कड़ी से कड़ी सज़ा मिलेगी, चाहे वह कोई भी हो और किसी भी पद पर हो।

बैठक को संबोधित करने वालों में शामिल थे – जमात-ए-इस्लामी हिंद के इनाम उर रहमान, भाकपा (माले) न्यू प्रोलतेरियन के कामरेड शिवमंगल सिद्धांतकर, सिख फोरम के लल्ली सिंह साहनी, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के मोहम्मद आरिफ, एडवोकेट शाहिद अली, मज़दूर एकता कमेटी के संतोष कुमार और इंकलाबी मजदूर केंद्र के कॉमरेड मुन्ना प्रसाद।

सभी वक्ताओं ने बताया कि पिछले 38 वर्षों से लगातार सरकारें इस झूठ को दोहराती रही हैं कि नवंबर 1984 में जो हुआ वह एक “सिख विरोधी दंगा” था, यानी इंदिरा गांधी की हत्या की “स्वतरूस्फूर्त” प्रतिक्रिया थी। लेकिन हक़ीक़त तो यह है कि हर जगह लोगों ने अपने सिख पड़ोसियों को बचाने की पूरी कोशिश की। उन्होंने कई अनुभवों को बताते हुए दिखाया कि उस जनसंहार की योजना पहले से ही बनाई गई थी और उस समय केंद्र सरकार की प्रभारी पार्टी – कांग्रेस पार्टी ने उसे अंजाम दिया था। उसे लागू करने के लिए पूरे राज्य-तंत्र ने सक्रिय रूप से काम किया था।

पिछले 38 साल से लोग मांग कर रहे हैं कि सरकार 1984 के जनसंहार के पीछे की सच्चाई का खुलासा करे। लोग मांग कर रहे हैं कि उस जनसंहार को आयोजित करने वाले गुनहगारों को तुरंत कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए। हरेक सरकार की प्रतिक्रिया केवल जांच आयोगों का गठन करने तक ही सीमित रही है। और उन सब आयोगों ने जनसंहार को आयोजित करने में, केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय और राज्य के विभिन्न अंगों की भूमिका को छुपाने का काम किया है।

वक्ताओं ने पिछले 38 वर्षों के दौरान राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा की बार-बार होने वाली घटनाओं का ज़िक्र करते हुए, सुनियोजित तरीक़े से राजकीय आतंकवाद की लगातार वृद्धि पर प्रकाश डाला। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सांप्रदायिक आतंक, 2002 में गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार और कई अन्य दिल दहलाने वाले हत्याकांडों को सत्ता में बैठी पार्टियों की पूर्ण भागीदारी और राज्य मशीनरी की सक्रिय तैनाती के साथ, आयोजित किया गया है। जो लोग सांप्रदायिक जनसंहार आयोजित करते हैं और हमारे लोगों की एकता पर हमला करते हैं, उन्हें सज़ा नहीं मिलती है बल्कि वे राज्य में सर्वाेच्च पदों पर पहुँच जाते हैं। दूसरी ओर, अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों को टाडा, पोटा और यू.ए.पी.ए. जैसे फासीवादी क़ानूनों के तहत वर्षों तक कैद में रखा जाता है।

कई वक्ताओं ने भाजपा और कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियों की भूमिका पर अपने विचार व्यक्त किये। ये राजनीतिक पार्टियां हमारे लोगों की एकता को तोड़ने के लिए सुनियोजित तरीके से धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर, लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं। वक्ताओं ने बताया कि केवल सरकार में पार्टी बदलने से सांप्रदायिकता और सांप्रदायिक हिंसा समाप्त नहीं होगी।

सभी के अधिकारों की रक्षा के लिए, सभी शोषित और उत्पीड़ित लोगों की राजनीतिक एकता को बनाने और मजबूत करने की आवश्यकता को एक बार फिर दोहराते हुए, बैठक का समापन किया गया।

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