पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य भागों के किसान अपनी फ़सलों के लिये लाभकारी दामों पर सुनिश्चित सरकारी ख़रीदी के लिए अपने संघर्ष को जारी रखे हुए हैं। सभी फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, सभी कृषि की लागतों के लिए राज्य की सब्सिडी, बेहतर सिंचाई सुविधाओं, किसानों की कर्ज़माफ़ी, आदि के लिए और बिजली संशोधन विधेयक के खि़लाफ़, वे निरंतर संघर्ष में लगे हैं।
इनके साथ ही वे लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्याओं के लिए इंसाफ और आन्दोलनकारी किसानों पर झूठे पुलिस मामलों को वापस लेने की महत्वपूर्ण मांगों के लिए आन्दोलन कर रहे हैं।
किसान यह मांग कर रहे हैं कि सरकार ने दिसम्बर 2021 में किसानों को जो आश्वासन दिए थे, जिसके बाद ही किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर अपना धरना समाप्त किया था, उन आश्वासनों को सरकार पूरा करे।
पंजाब के मुख्यमंत्री का घेराव
9 अक्तूबर, 2022 से भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां) की अगुवाई में सैकड़ों किसानों ने 9 अक्तूबर से, संगरूर जिले में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के निवास स्थान पर अनिश्चिकालीन विरोध आंदोलन छेड़ रखा है। किसान अपनी अनेकों मागें उठा रहे हैं, जैसे की बारिश व टिड्डियों तथा अन्य कीड़ों के कारण उनकी फ़सल को जो नुकसान पंहुचा है उसका उन्हें मुआवज़ा मिले; धान की पराली के इंतजाम के लिये प्रत्येक क्विंटल पर 200 रुपये मिले; किसानों की ज़मीन के अधिग्रहण के लिए जायज़ मुआवज़ा मिले; डेयरी पशु पालक किसानों को लंपी चर्म रोग के कारण पशुओं की मृत्यु का उचित मुआवज़ा मिले तथा मकई (मक्का), मूंग दाल और बासमती चावल जैसी फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थक मूल्य मिले।
आन्दोलनकारी किसानों ने अपने ट्रेक्टरों और ट्रालियों को सड़कों के बीचों-बीच खड़ा करके, तीन किलोमीटर तक का रास्ता जाम कर दिया।
भा.कि.यू. (एकता उगराहां) ने राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर 15 अक्तूबर तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो 20 अक्तूबर से मुख्यमंत्री के निवास स्थान का घेराव किया जाएगा। 20 अक्तूबर को पंजाब के अलग-अलग इलाकों से महिलाओं, नौजवानों समेत हजारों किसान घेराव के स्थान पर इकट्ठे हुए। किसान अपने साथ खाने के सामान, गद्दे, रसोई गैस के सिलेंडर, पंखे तथा अन्य ज़रूरी सामान लेकर आए थे। उन्होंने ये सब मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर लम्बे समय तक के घेराव की तैयारी के लिए लाए थे। उन्होंने वहां अस्थाई शरण स्थल भी बनाएं तथा सड़क पर मंच भी बनाये ताकि किसान नेता आन्दोलनकारी किसानों को संबोधित कर सकें। भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां) के जनरल सेक्रेटरी, सुखदेव सिंह कोकरीकलां ने कहा कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, तब तक यह आन्दोलन जारी रहेगा।
पंजाब में रेल रोको विरोध
किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी पंजाब (के.एम.एस.सी.) ने 3 अक्तूबर को लखीमपुर खीरी में एक साल पहले हुई, पाँच किसानों की हत्या की याद में बहुत ही ज़बरदस्त रेल रोको विरोध आयोजित किया था। पंजाब के हजारों किसानों और खेतीहर मज़दूरों ने दस जिलों में सोलह जगहों पर मुख्य रेल लाइनें बंद कर दीं। मुक्तसर, मानसा, बरनाला, संगरूर, मलेरकोटला, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब और रोपड़, इन आठ जिलों में किसानों ने मुख्यमंत्री के पुतले जलाए और राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार द्वारा किसानों से किए गए वायदों को पूरा न करने पर उनके खि़लाफ़ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किए। विरोध की सभी जगहों पर शहीद किसानों की याद व सम्मान में फूल अर्पित किए गये।
किसान मजदूर संघर्ष कमेटी पंजाब के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू और सेक्रेटरी सरवन सिंह पंधेर ने इस आंदोलन में किसानों की मुख्य मांगों पर रोशनी डाली।
उनकी मांग थी कि लखीमपुर खीरी में हुयी हत्या के दोषी आशीश मिश्रा को तुरंत पकड़ा जाए और उसे जल्द से जल्द सज़ा दी जाए तथा उसके पिता अजय मिश्रा, जो कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय में राज्य गृहमंत्री हैं, को मंत्री पद से तुरंत हटाया जाए। 2022 का बिजली वितरण विधेयक एकदम खारिज़ कर दिया जाए। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार को 23 फ़सलों की ख़रीद की गारंटी का क़ानून बनाना चाहिये। सरकार को किसानों को मुफ्त पराली के इंतजाम के लिये उपयुक्त सामान देने चाहियें या फिर प्रत्येक एकड़ के लिए 7,000 रुपये देने चाहिएं, वरना किसान अपनी पराली को जलाने को मजबूर होंगे। उन्होंने मांग रखी कि बाढ़ के कारण जो फ़सलें बर्बाद हो गई थीं, उनके लिये प्रत्येक एकड़ पर 50,000 रुपये का मुआवज़ा दिया जाए। इसमें पिछले साल की बासमती और कपास की फसलें भी शामिल हैं।
इससे पहले, किसान मजदूर संघर्ष कमेटी ने अपने खेतों के लिए पर्याप्त पानी देने की मांग के साथ, 12 सितम्बर को जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया था।
आन्दोलनकारी किसानों ने बताया कि भूमिगत जल के स्तर के लगातार गिरते जाने की वजह से पंजाब, जिसमें नदियों का बेशुमार पानी होता था, वह अब एक दशक के अंदर, रेगिस्तान बन गया है। इसका कारण है सरकार द्वारा उन फ़सलों को बढ़ावा देना जिनमें पानी बहुत ज्यादा लगता है। इस समस्या से निपटने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने कोई क़दम नहीं उठाये, इसलिए किसानों ने उनको दोषी बताया। हजारों किसानों, खेतीहर मज़दूरों, महिलाओं और नौजवानों ने अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर, होशियारपुर, जलंधर कपूरथवा, मोगा, फिरोज़पुर, फाजिल्का, मुक्तसर, फरीदकोट, मानसा, बरनाला, फतेहगढ़ साहिब, पठानकोट और मलेरकोटला जिलों में इन विरोध धरनों में सरगरमी से भाग लिया।
आज़मगढ़ में भूमि अधिग्रहण के खि़लाफ़ किसानों का आन्दोलन
22 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में एक हवाई अड्ड के निमार्ण के लिए किसानों की भूमि का जबरदस्ती से अधिग्रहण के खि़लाफ़, किसानों ने 11 दिनों का धरना आयोजित किया। इन धरनों के दौरान किसानों ने खीरिया बाग के हरीराम में लोक संसद आयोजित की, जिनमें हज़ार से ज्यादा किसानों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।
इन विरोध धरनों और प्रदर्शनों में भाग लेने वाले संगठनों में संयुक्त किसान मोर्चा, किसान संग्रामी परिषद, किसान संघर्ष समिति, जय किसान आन्दोलन और भूमिया बचाओ शामिल हैं।
किसानों ने कारपोरेट घरानों के हित में काम करने के लिए, सरकार की कड़ी निंदा की। उन्होंने व्यापारिक उद्देश्य के लिए खेतीहर ज़मीन के अधिग्रहण और खेती के सभी पहलुओं में इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों के दबदबे का पुरज़ोर विरोध किया। किसानों ने इस बात की चेतावनी दी कि इस पूंजीवादी दखल व दबदबे से किसान तबाह हो जाएंगे। उन्होंने रेलवे, हवाई अड्डों, फैक्टरियों, अस्पतालों और सभी बड़े उद्योगों और सेवाओं के निजीकरण का घोर विरोध किया, क्योंकि इसमें सरकार लोगों की क़ीमत पर, बड़े कारपोरेट घरानों की सेवा कर रही है।
किसानों ने मज़दूरों की छंटनी, फैक्टरियों में तालाबंदी, बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई के सभी मुद्दों पर मज़दूरों को अपना समर्थन प्रकट किया। उन्होंने लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्याओं की कड़ी निंदा की तथा शपथ ली कि जब तक दोषियों को सज़ा नहीं मिलेगी तब तक वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने सरकार को अपना मांगपत्र दिया, जिसमें उन्होंने “अपनी ज़मीन का एक इंच भी न देने” का निश्चय ज़ाहिर किया है।
किसान आंदोलन की दूसरी वर्षगांठ पर जोरदार विरोध कार्यक्रम आयोजित करने का आह्वान
संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) ने देश के सभी राज्यों के किसानों को आह्वान किया है कि 26 नवम्बर, जो कि अब वापस लिए गए तीन किसान-विरोधी क़ानूनों के खि़लाफ़ किसान आन्दोलन की दूसरी सालगिरह है, के अवसर पर बहुत ही गर्मजोशी के कार्यक्रम करें। एस.के.एम. ने किसानों को अपने-अपने राज्यों में राजभवन तक प्रदर्शन करने का आह्वान दिया।
देशव्यापी प्रदर्शनों और राज्यपालों को मांग पत्र देने के कार्यक्रम का अंतिम रूप एस.के.एम. की नई दिल्ली में 14 नवंबर की मीटिंग में तय किया जाएगा।
एस.के.एम. ने केन्द्र सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम (फोरेस्ट कनज़रवेशन एक्ट) में बदलाव किए जाने की कड़ी निंदा की है। एस.के.एम. ने यह फ़ैसला भी लिया है कि वे 15 नवम्बर को शहीद बिरसा मुंडा की जन्म की वर्षगांठ पर, जो आदिवासी संगठन अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनके साथ अपनी हमदर्दी ज़ाहिर करेंगे।