नोटबंदी की छठी वर्षगांठ पर :
नोटबंदी का वास्तविक उद्देश्य स्पष्ट हुआ

छः साल पहले, 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल चार घंटे के नोटिस पर, सभी 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी।

In-Billion_Graf_Hindiप्रधानमंत्री ने दावा किया था कि नोटबंदी से काले धन का पता चलेगा, भ्रष्टाचार ख़त्म होगा और आतंकवाद के लिए मिलने वाले धन पर रोक लगेगी। उन्होंने यह भी दावा किया था कि इससे अमीर और ग़रीब के बीच की असमानता कम हो जायेगी। उन्होंने लोगों से “दीर्घकालिक फ़ायदे” के लिए “कुछ थोड़े समय के” दर्द को बर्दाश्त करने के लिए कहा था।

इनमें से हर एक दावा झूठा साबित हुआ है।

नोटबंदी ने लोगों के लिए एक बहुत ही गंभीर व लंबे समय तक के लिये नकदी का संकट पैदा किया था। इस क़दम ने लोगों को अपनी सारी बचत को बैंकों में जमा करने और नकद भुगतान के बजाय डिजिटल भुगतान प्रणाली को अपनाने के लिए मजबूर किया।

पिछले पांच सालों में, बिना नगद के (कैशलेस डिजिटल) लेनदेन करने की संख्या लगभग पांच गुना बढ़ गई है। 2021-22 में डिजिटल लेनदेन करने की संख्या 7,400 करोड़ से अधिक रही, जिनके ज़रिये 1,000 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लेनदेन हुआ है। इसके साथ ही अब हिन्दोस्तान डिजिटल भुगतान में दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है।

बड़े पैमाने पर डिजिटल भुगतान के उपयोग ने वित्तीय-तकनीकी सेवायें प्रदान करने वाली हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों को भारी मुनाफ़ा कमाने का मौका दिया है। इनमें गूगल, पेटीएम, फोनपे, एयरटेल और जिओ के पेमेंट बैंक शामिल हैं।

कामकाजी लोगों पर नोटबंदी का असर बेहद विनाशकारी था। अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र जो बड़े पैमाने पर नगद लेनदेन पर निर्भर हैं, जैसे कि कृषि, थोक और खुदरा व्यापार, निर्माण और पर्यटन, ये सब गंभीर रूप से प्रभावित हुए।

आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं के लिए भुगतान न कर पाने के कारण कई मौतों की ख़बरें भी मिली थीं। उनकी उस पीड़ा को “अस्थायी पीड़ा” कहा गया था।

तीन लाख से अधिक छोटे और मध्यम स्तर के औद्योगिक कारोबारों के बंद होने से, लगभग चार करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए थे। इनमें से कई कारोबार अपना उत्पादन और सेवाएं फिर से शुरू ही नहीं कर पाये। उनका दर्द अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी था।

इससे केवल पूंजीवादी अरबपतियों के लिए ही “दीर्घकालिक लाभ” सुनिश्चित हुआ है। वास्तव में, उनके हित के लिये ही नोटबंदी की गई थी।

स्वयं प्रधानमंत्री ने 27 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के असली उद्देश्य का खुलासा किया था, जब उन्होंने कहा था कि “गैर-नगदी वाला समाज बनाने के सपने को साकार करने के लिये ही देश इस महान कार्य को आज पूरा करना चाहता है।”

नकदी का उपयोग कम करना, भ्रष्टाचार को कम करने के बराबर नहीं है। भ्रष्टाचार कई प्रकार के होते हैं, जिनमें नकदी का इस्तेमाल नहीं होता है। चुनावों के नतीजों को प्रभावित करने के लिए पूंजीवादी कंपनियों द्वारा इलेक्टोरल-बॉन्ड्स का इस्तेमाल ऐसा ही एक उदाहरण है। सरकारी बैंकों के द्वारा पूंजीवादी कंपनियों के न चुकाए गए, भारी कर्ज़ों को माफ़ करवाना, यह सबसे बड़ा भ्रष्टाचार-कांड है, जो हाल के दिनों में हो रहा है। निजीकरण, विनिवेश और मुद्रीकरण के नाम पर, सार्वजनिक संपत्ति को कौड़ियों के दाम पर निजी कंपनियों को बेचना भी भ्रष्टाचार का एक प्रमुख रूप है।

सरकार का एक वादा यह भी था कि इतना काला धन जब्त किया जाएगा कि हर ग़रीब के बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा कराए जाएंगे। स्पष्ट है कि छः साल बाद भी, यह वादा पूरा नहीं किया गया है। विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का दावा भी पूरी तरह झूठा साबित हुआ है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि उसे नोटबंदी से 4-5 लाख करोड़ रुपये के काले धन की वसूली की उम्मीद है। स्पष्ट है कि यह बयान भी झूठा साबित हुआ। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 30 अगस्त, 2017 को जारी की गई वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि उस तारीख़ तक 98.96 प्रतिशत पुराने नोट बैंकों में वापस आ गए थे। केवल 16,000 करोड़ रुपये के नोट ही वापस नहीं आये थे।

प्रधानमंत्री का दावा कि नोटबंदी से जाली नोटों का सफाया हो जाएगा और आतंकवादी गतिविधियों में कमी आएगी, वह भी पूरी तरह से झूठा साबित हुआ है। जो लोग आतंकवाद के लिए धन देते हैं, वे हाल की क्रिप्टो-मुद्रा सहित, वैत्तिक लेनदेन के कई आधुनिक माध्यमों का उपयोग करते हैं; वे केवल नकली नोटों पर निर्भर नहीं हैं।

नोटबंदी लागू होने के छः साल बाद, यह बहुत स्पष्ट है कि इसने अमीर और ग़रीब के बीच की खाई को कम नहीं किया है। हक़ीक़त में यह अंतर और अधिक बढ़ गया है।

हमारे जीवन के अनुभव ने नोटबंदी को सही ठहराने के लिए सरकार द्वारा किए गए सभी झूठे दावों का पर्दाफ़ाश कर दिया है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि नोटबंदी का वास्तविक उद्देश्य था सबसे बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के मुनाफ़ों को बढ़ाने के लिए डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना।

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