“कृषि संकट और उसका समाधान” विषय पर आयोजित तीसरी मीटिंग

“भोजन समाज की एक आवश्यक ज़रूरत है, इसलिए जो लोग खाद्य-सामग्री का उत्पादन करते हैं उन्हें समाज में सुरक्षित आजीविका की गारंटी मिलनी चाहिए। लेकिन अगर समाज के एक बड़े हिस्से को ज़िन्दा रहने के लिए ज़रूरी भोजन भी नसीब नहीं होता। जो लोग खाद्य-सामग्री का उत्पादन करते हैं वे सुरक्षित आजीविका न होने के कारण आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते हैं, तो यह समाज के सामने एक गहरे संकट का, एक निश्चित संकेत है।” इन शुरुआती शब्दों के साथ मज़दूर एकता कमेटी के सचिव, बिरजू नायक ने 20 अक्तूबर को मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) द्वारा आयोजित तीसरी मीटिंग को संबोधित किया। इस मीटिंग का विषय था “कृषि का संकट और उसका समाधान”।

इस मीटिंग में आमंत्रित अन्य वक्ता थे – आल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाईज़ के राष्ट्रीय सचिव, कॉमरेड कृष्णा भोयर; ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के डॉ. दिनेश अबरोल; और सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. बी. सेठ।

बिरजू नायक इस मीटिंग के पहले वक्ता थे। उन्होंने हाल ही में प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट का हवाला देते हुए, इस हक़ीक़त को उजागर किया कि हमारे देश में बहुत लोग एक अत्यंत ख़तरनाक स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह वही व्यवस्था है जो खाद्य सामग्रियों के उत्पादकों, यानी किसानों को एक सुनिश्चित आजीविका प्रदान करने में विफल रही है। उन्होंने कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाली ज़रूरी सभी वस्तुओं – यानी बीज, उर्वरक, कीटनाशक, आदि पर बढ़ती इजारेदारी नियंत्रण की ओर इशारा करता है। साथ ही साथ किसानों की उपज की अत्याधिक इजारेदरी ख़रीद की ओर भी। अंत में उन्होंने निष्कर्ष के रूप में इसी हक़ीक़त को पेश किया कि पूंजीवादी व्यवस्था ने न तो आम लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है और न ही किसानों के लिए सुरक्षित आजीविका के साधन सुनिश्चित किये हैं।

संकट के समाधान के रूप में, उन्होंने यह प्रस्ताव पेश किया कि वक्त की मांग है कि कृषि सहित पूरी अर्थव्यवस्था की दिशा को इजारेदार पूंजीपतियों के लिए अधिकतम मुनाफ़े की गारंटी देने के लक्ष्य के बजाय, लोगों के लिए ज़रूरी सुविधाएं प्रदान करने के लक्ष्य की ओर बदल दिया जाना चाहिए। सभी लोगों के लिए सस्ती क़ीमतों पर पर्याप्त और पौष्टिक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करनी चाहिए। एक व्यापक योजना के तहत, कृषि उपज के उत्पादन, भंडारण और वितरण को सामाजिक नियंत्रण में लाया जाना चाहिए। राज्य की जिम्मेदारी है कि वह सभी कृषि उत्पादों की लाभकारी क़ीमतों पर सार्वजनिक ख़रीद की गारंटी दे और एक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के ज़रिये लोगों के सभी तबकों में उसका वितरण सुनिश्चित करे।

कॉमरेड कृष्णा भोयर ने मज़दूर एकता कमेटी को एक ऐसा मंच प्रदान करने के लिए बधाई दी, जहां पर एक क्षेत्र के मज़दूरों को दूसरे क्षेत्र के मज़दूरों की समस्याओं और संघर्षों के बारे में पता चलता है। उन्होंने संकट के एक पहलू पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की। कृषि हमारे देश के युवाओं को एक सुरक्षित आजीविका प्रदान करने में असमर्थ रही है, जिसके परिणामस्वरूप युवा बड़ी संख्या में नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने को मजबूरब हुये हैं। यही कारण है कि शहरों में बेरोज़गारी की समस्या और भी बढ़ रही है।

कॉमरेड भोयर ने बताया कि किसान आंदोलन ने कृषि के पुनरुद्धार के लिए कई प्रस्ताव रखे हैं। स्वामीनाथन आयोग ने भी इस संबंध में कई सिफ़ारिशें की हैं, लेकिन सरकार ने इनमें से किसी पर भी ध्यान देने से इनकार कर दिया है। कॉमरेड भोयर ने बताया कि महाराष्ट्र राज्य, जहां पर वे रहते हैं, तकनीकी रूप से उन्नत राज्य है, लेकिन यह वह राज्य है जहां किसानों की आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। इसका कारण यह है कि किसान को अपनी उपज की इतनी क़ीमत भी नहीं मिल पाती है कि वह खेती में लगाई गई अपनी लागत की भरपाई  कर सके। वह जानलेवा क़र्ज़ में डूबता जाता है। वह नवीनतम कृषि तकनीकों का इस्तेमाल नहीं कर सकता है और वह पुराने श्रम के पुराने हाड़तोड़ तरीक़ों पर ही भरोसा करने के लिए मजबूर है जिसके कारण इतनी मेहनत करने के बावजूद, उसकी उपज भी कम होती है। कॉमरेड भोयर ने बताया कि जहां एक ओर, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का क़र्ज़ा न चुका पाने वाले पूंजीपतियों के करोड़ों रुपये के क़र्ज़ को नियमित रूप से बट्टे खाते में डाला जा रहा है, वहीं छोटे किसानों की क़र्ज़ माफ़ी के लिए सरकार की कोई व्यापक नीति नहीं है।

किसानों को अपनी उपज के विपणन, परिवहन और भंडारण के लिए और लाभकारी क़ीमतों पर सुनिश्चित सार्वजनिक ख़रीद के लिए, राज्य से सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया था, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया गया है। किसान आंदोलन लोगों की एकता और दृढ़ संकल्प का एक स्फूर्तिदायक उदाहरण था, जिसने सरकार को किसान-विरोधी क़ानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया। इसी तरह किसानों के एकजुट संघर्ष ने सरकार को भूमि अधिग्रहण अधिनियम को लागू करने से रोक दिया, जिसका उद्देश्य कृषि भूमि के कॉर्पोरेट-अधिग्रहण को सक्षम बनाना था।

कॉमरेड भोयर ने बिजली संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ बिजली मज़दूरों के संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पूरी तरह से किसानों और उपभोक्ताओं के हितों के ख़िलाफ़ है। सरकार लोगों से झूठ बोल रही है कि इससे उपभोक्ताओं को बेहतर और सस्ती बिजली की आपूर्ति होगी। एक बार इजारेदार पूंजीपतियों का बिजली वितरण पर नियंत्रण हो गया, वे अधिकतम मुनाफ़े हासिल करने के लिए जो भी दर चाहते हैं, वही वसूल करेंगे और उपभोक्ता इस पर कुछ भी कर पाने में असमर्थ होंगे। कई राज्यों में किसान सिंचाई पर निर्भर हैं। कॉमरेड भोयर ने कहा कि बिजली संशोधन विधेयक 2022 किसानों को तबाह कर देगा, क्योंकि पंप सेटों के लिए तय की गई बिजली की दरों की वजह से बिजली अधिकांश किसानों की पहुंच से बाहर हो जाएगी।

उन्होंने बताया कि मज़दूरों को उनके वेतन और अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य और आजीविका की सुरक्षा से वंचित किया जा रहा है। उन्होंने हमारी आजीविका और अधिकारों पर हो रहे चौतरफा हमलों का विरोध करने के लिए मज़दूरों और किसानों के एक शक्तिशाली एकजुट आंदोलन का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमारे सामने केवल यही एक रास्ता है जिससे हम संकट को और भी गहरा होने से रोक सकेंगे और इसके समाधान की दिशा में कुछ कर सकेंगे।

डॉ. दिनेश अबरोल ने एक बहुत ही विस्तृत पावर प्वाइंट प्रस्तुति के माध्यम से कृषि संकट से निपटने में किसान आंदोलन के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश का एजेंडा बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा निर्धारित नहीं किया जाना चाहिए। देश के सभी क्षेत्रों के किसानों से उनके सुझावों को इकट्ठा करने की ज़रूरत है। उन्होंने बताया कि किसानों के सभी हिस्सों – जैसे कि महिलाओं, किरायेदारों, कृषि में लगे ग्रामीण मज़दूरों, पशुपालकों, वनवासियों, मछुआरों के सामने आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जब लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए योजनायें बनाई जाती हैं। बड़े कॉरपोरेट घराने, विभिन्न प्रकार की आधुनिक तकनीकों – सेंसर, ड्रोन, उपग्रह, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, क्लाउड कंप्यूटिंग आदि में निवेश करने में सक्षम हैं – और इस प्रकार वे अपने कृषि उत्पादन को एक व्यक्तिगत किसान के उत्पादन से कहीं अधिक बढ़ा सकते हैं।

वर्तमान व्यवस्था, अधिकांश किसानों को तबाह करके बड़े कॉरपोरेट्स के लिए अधिकतम मुनाफ़े सुनिश्चित करने के लिए बनाई गयी है। बिजली संशोधन विधेयक 2022 की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसानों को सिंचाई के लिए पानी खींचने वाले पंप सेट को संचालित करने वाली ज़रूरी बिजली की क़ीमत के कारण बिजली को उनकी पहुंच के बाहर कर देगा।

इस संकट को हल करने के लिए सब्सिडी की दरों पर उर्वरक और कीटनाशकों जैसी कृषि के लिये आवश्यक वस्तुयें अच्छी गुणवत्ता की सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है। कई क्षेत्रों में सिंचाई महत्वपूर्ण है जो लगभग पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर है। किसानों को अपने उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के लिए उन्नत वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों से अवगत कराने की आवश्यकता है। राज्य को सभी क्षेत्रों में और सभी फ़सलों के लिए इसे सुनिश्चित करना चाहिए। इसे कॉरपोरेट घरानों के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता। किसानों को सार्वजनिक ख़रीद केंद्रों और उनकी क़ीमतों की जानकारी भी होनी चाहिए जिन पर वे अपनी उपज बेच सकते हैं। उन्होंने फ़सल बीमा के महत्व और मनरेगा को मजबूत करने, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण, भूमि उपयोग, मिट्टी तथा जल संरक्षण और कृषि श्रमिक कल्याण में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय स्वशासन की ज़िम्मेदारी की भी बात की।

प्रो. बी. सेठ ने कृषि में संकट के पीछे, कुछ कारणों के बारे में बताया। उन्होंने जिन मुख्य कारणों पर प्रकाश डाला, उनमें से एक है राज्य द्वारा व्यापक योजना का अभाव, कि किस क्षेत्र में कितनी फ़सल उगाई जानी चाहिए, उपज का भंडारण, परिवहन, किसानों से कैसे ख़रीद की जाएगी, इत्यादि। बड़ी पूंजीवादी इजारेदार कंपनियां किसानों से कम दामों पर उपज को ख़रीदती हैं। अपने विशाल भंडारण और परिवहन सुविधाओं का उपयोग करते हुए, वे सट्टेबाजी और वायदा-व्यापार के ज़रिये, विभिन्न उत्पादों की मांग और आपूर्ति में हेराफेरी करते हैं और वे उत्पादों तभी बेचते हैं जब बाज़ार इन उत्पादों की क़ीमतें अधिक होती हैं और इस प्रकार बेशुमार मुनाफ़े बनाते हैं। इससे खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। उन्होंने बताया कि एफ.सी.आई. के गोदामों में खाद्यान्न का बड़ा बफर स्टॉक भी क़ीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने में असफल रहा है। एक तरफ, एफ.सी.आई. के गोदामों में अनाज सड़ता है, जबकि आम लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती – हिन्दोस्तान में करोड़ों लोग भूख और कुपोषण का शिकार हैं।

अधिकांश छोटे और मध्यम किसानों के लिए बाज़ार की क़ीमतों में उतार-चढ़ाव विनाशकारी है। किसानों के पास कोई साधन नहीं है जिसके ज़रिये वे यह तय कर सकें कि उन्हें किस फ़सल की और कितनी पैदावार करनी चाहिए; भंडारण और परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें अपनी उपज को कौड़ियों के दामों पर बेचने या सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर होना पड़ता है। किसान अपने फ़सल को बेचकर, अपने फ़सलों की लागत को वसूल करने में सक्षम नहीं हैं और इसलिए, वे गहरे क़र्ज़ में डूबे हुए हैं।

प्रो बी. सेठ ने बताया कि कृषि के संकट का समाधान देश के सभी हिस्सों को शामिल करते हुए, राज्य द्वारा कृषि के लिए एक व्यापक योजना बनाने में निहित है। राज्य की व्यापक योजना में कृषि के लिये आवश्यक लागत वस्तुएं रियायती दरों पर उपलब्ध हों, लाभकारी क़ीमतों पर सार्वजनिक ख़रीद की गारंटी हो, साथ ही एक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का इंतजाम करना भी शामिल होनी चाहिए जो सभी लोगों के लिए, अच्छी गुणवत्ता, पर्याप्त मात्रा और सस्ती क़ीमत पर खाद्यान्न और उपभोग की सभी आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी। इस योजना में सभी किसानों के लिए सुलभ सार्वजनिक भंडारण और परिवहन सुविधाएं शामिल होनी चाहिए। इसमें फ़सल बीमा और फ़सल को होने वाले नुक़सान से बचाने के लिये सुरक्षा के उपाय शामिल होने चाहिएं।

अंत में प्रोफेसर सेठ ने निष्कर्ष बताते हुये इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी योजना तभी लागू की जा सकती है जब बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के केवल एक छोटे से अल्पसंख्यक के हितों की सेवा करने के बजाय, मज़दूरों और किसानों की विशाल बहुसंख्य आबादी के हित में निर्णय लेने और अर्थव्यवस्था को पुनर्निर्देशित करने का अधिकार हो।

आमंत्रित वक्ताओं के बाद, कई सहभागियों ने अपने विचार रखने के लिए हस्तक्षेप किया। इनमें किसान आंदोलन के कार्यकर्ता, महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिलाएं, निजीकरण का विरोध करने वाले बिजली कर्मचारी और रेलवे कर्मचारी, फीस वृद्धि और शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वाले युवा और छात्र, अपने किसान मूल और गांव में अपने परिवारों की स्थिति के बारे में बात करने वाले मज़दूर भी शामिल थे।

निष्कर्ष में, संतोष कुमार ने ज़ोर देकर कहा कि कृषि में संकट का समाधान एक राज्य की व्यापक योजना में निहित है, जिसमें यह योजना भी शामिल है कि किन क्षेत्रों में और कितनी मात्रा में फ़सल उगाई जानी चाहिए। राज्य को कृषि के सभी आवश्यक लागत वस्तुओं की सस्ती क़ीमतों पर उपलब्धता, उपज के लिए भंडारण और परिवहन सुविधाएं, लाभकारी क़ीमतों पर सार्वजनिक ख़रीद और और फ़सल को होने वाले नुक़सान से बचाने के लिये उपाय सुनिश्चित करने होंगे। इसके साथ एक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की भी ज़रूरत है, जो सभी खाद्य और उपभोग की अन्य आवश्यक वस्तुओं को लोगों के लिए उपलब्ध कराएगी। इसके लिए ज़रूरी है कि इजारेदार पूंजीवादी एजेंडे को ख़त्म करने और राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेने के संघर्ष में मज़दूर और किसान एकजुट हों। तब वे पूरी अर्थव्यवस्था को मुट्ठीभर इजारेदार पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफ़ो को पूरा करने के बजाय, बहुसंख्यक लोगों की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने की ओर उन्मुख कर सकते हैं।

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