हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था की स्थिति

महज चार हफ्ते पहले, सितंबर के पहले सप्ताह में सरकार, कॉरपोरेट जगत और मीडिया में इस बात का खास उत्साह था कि हिन्दोस्तान ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस ख़बर ने इस बात पर चर्चा को जन्म दिया कि हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में कैसे बढ़ी है।

निजी पूंजीवादी घरानों के मुनाफ़ों का बढ़ना, अत्याधिक टैक्स की वसूली होना, निर्यातों में बढ़ोतरी तथा कारों, रियल एस्टेट और विदेशों में छुट्टियां मनाने पर अधिक पैसा खर्च किया जाना, इन सबको अर्थव्यवस्था के विकास को मापने का तरीक़ा बताया जा रहा है।

लेकिन अर्थव्यवस्था के तेज़ी से विकास की यह छवि, जो अपने आकार के मामले में दुनिया में पांचवें स्थान पर है। यह करोड़ों हिन्दोस्तानियों की वास्तविकता को नहीं दर्शाती है। अधिकांश लोगों के जीवन के स्तर में लगातार गिरावट हो रही है।

बेरोज़गारी बढ़ रही है, नौकरियों और आजीविका की असुरक्षा बढ़ रही है। कामकाजी लोगों को भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और परिवार के लिए अन्य आवश्यक चीजों में कटौती करने को मजबूर किया जा रहा है। भारी संख्या में लोग, भूख और कुपोषण से जूझ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में किसानों पर बढ़ते क़जेऱ् के कारण, आत्महत्या करने वालें किसानों की संख्या बढ़ रही है। इस देश की विशाल आबादी के बहुसंख्य लोगों की ये पस्थितियां अर्थव्यवस्था के बारे में कही जा रही इस विकास की कहानी के पीछे की कड़वी सच्चाई को उजागर करती हैं।

अर्थव्यवस्था के विकास और देशभर में बहुसंख्य लोगों की परिस्थितियों के बीच कोई संबंध नहीं है। यह कैसे संभव है कि हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, फिर भी मेहनतकश लोगों के एक बड़े वर्ग द्वारा इतने अधिक आर्थिक संकट का अनुभव किया जा रहा है? इसका उत्तर यह है कि अर्थव्यवस्था सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के आकार और मुनाफ़े में तेज़ी से विकास करने में सक्षम बनाने की दिशा में उन्मुख है। अर्थव्यवस्था अधिकांश कामकाजी लोगों की सबसे बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने या उनके जीवन स्तर में सुधार करने की दिशा में उन्मुख नहीं है।

सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों का विस्तार हो रहा है, वे और भी बड़े होते जा रहे हैं, क्योंकि वे अन्य कंपनियों को खरीदते हैं और विदेशों में अपने संचालन का विस्तार करते हैं। हिन्दोस्तान के कई इजारेदार पूंजीवादी घराने आज दुनिया के सबसे अमीरों में गिने जा रहे हैं।

दूसरी ओर, लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं या उन्हें कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। साथ ही साथ मज़दूरों की वेतन बढ़ोतरी में ठहराव आ गया है या वेतन कम हो गया है। खाद्य पदार्थों, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती महंगाई के साथ, अधिकांश कामकाजी लोगों की कुल आमदनी और उनकी क्रय शक्ति तेज़ी से नीचे गिरती जा रही है।

हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था का हालिया अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि जिस भी विकास की बात की जा रही है वह बहुत ही एकतरफा है। चार पहिया वाहनों की बिक्री अधिक है, लेकिन दोपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है, खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति खपत में कमी आई है और बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है।

इस वास्तविकता के बावजूद, सरकार पिछले वर्ष 2021-22 के लिए रिपोर्ट की गई विकास दर के बारे में शेखी बघारती रही है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पिछले वर्ष की तुलना में 2021-22 के दौरान अर्थव्यवस्था में 8.7 प्रतिशत का विस्तार हुआ है। लेकिन हमें यह याद रखने की ज़रूरत है कि पिछले वर्ष कोविड-19 महामारी के कारण यह वृद्धि बहुत कम आधार पर थी। जीडीपी के लिहाज से तीन साल पहले की तुलना में अर्थव्यवस्था महज 3.8 फीसदी ज्यादा है।

सरकार भी चालू वित्त वर्ष के लिए ऊंची विकास दर का अनुमान लगा रही है, लेकिन वर्ष की शुरुआत में बजट के बाद से हर 2-3 महीने में इसे नीचे की ओर संशोधित करना पड़ा है। जून 2022 में सरकार ने जनवरी 2022 की 9 प्रतिशत से अधिक की अतिशयोक्तिपूर्ण ऊंची दर को केवल 7 प्रतिशत से अधिक की दर में कम कर दिया था। नवीनतम अनुमानों ने एक बार फिर से विकास की संभावनाओं को कम कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने विकास के अनुमान को 7.2 प्रतिषत के पहले के अनुमान से घटाकर 7 प्रतिषत कर दिया है, जबकि व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने अनुमान लगाया है कि हिन्दोस्तान की आर्थिक वृद्धि घटकर 5.7 प्रतिषत रह जाएगी।

ठीक एक सप्ताह पहले, 1 अक्तूबर, 2022 को वित्त मंत्री ने दावा किया कि हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था को दुनिया भर में एक “प्यारी जगह” के रूप में देखा जाता है! हिन्दोस्तान की अर्थव्यवस्था के विकास के बारे में प्रचार और सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के लिए हिन्दोस्तानी बाज़ार के विशाल आकार का उपयोग हिन्दोस्तान को दुनिया के पूंजीपतियों के लिए “अच्छे निवेश गंतव्य” के रूप में बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।

विकास के प्रचार के बावजूद सच्चाई यह है कि हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था एक और संकट की ओर बढ़ रही है। उपभोग के लिए वस्तुओं की मांग में बड़े पैमाने पर ठहराव आ गया है क्योंकि बहुसंख्य कामकाजी लोग बहुत अधिक ग़रीब हैं। न तो हिन्दोस्तानी और न ही विदेशी पूंजीपति अपना निवेश बढ़ा रहे हैं। अर्थव्यवस्था को केवल निर्यात पर क़ायम नहीं रखा जा सकता, और तब तो बिल्कुल भी नहीं जब दुनियाभर के कई देशों में मंदी की स्थिति हो।

दुनिया भर में पूंजीवाद गंभीर संकट में है और हिन्दोस्तान भी इससे अछूता नहीं है।

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