27 सितंबर, 2022 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पी.एफ.आई.) और उससे सम्बंधित आठ अन्य संगठनों को यू.ए.पी.ए. के तहत अवैध घोषित कर दिया। इस घोषणा ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीतिक और सामाजिक संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से हिन्दोस्तानी समाज को कोई फायदा हुआ है।
75 साल पहले, हिन्दोस्तान को ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन से स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद, नेहरू सरकार ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई.) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय से, तरह-तरह के औचित्य देते हुए, इस या उस राजनीतिक या सामाजिक संगठन पर प्रतिबंध लगाना सरकारों का नियमित अभ्यास बन गया है। मिसाल के तौर पर, 1975-1977 के राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, कई विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उन संगठनों के हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया था।
पिछले 75 वर्षों के अनुभव से स्पष्ट है कि इस या उस राजनीतिक या सामाजिक संगठन पर प्रतिबंध लगाने से समाज को कोई फायदा नहीं हुआ है। न ही लोगों को उनके राजनीतिक विचारों या कार्यों के लिए जेल में डालने से कोई फायदा हुआ है। लोगों को समाज के बारे में अपना-अपना नज़रिया रखने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। राजनीति में बदले की भावना की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी का मानना है कि राजनीतिक मतभेदों का राजनीतिक समाधान ज़रूरी है। उन्हें पुलिस के बलप्रयोग से निपटाए जाने वाली, कानून और व्यवस्था की समस्याओं के रूप में नहीं उठाया जाना चाहिए।