क्रांतिकारी किसान यूनियन, पंजाब के डॉ. दर्शन पाल ने कहा कि “हरित क्रांति, जिसके कारण कृषि में पूंजीवाद का प्रसार हुआ, हमारे देश में कृषि के वर्तमान संकट के लिए ज़िम्मेदार है।” वे 30 सितंबर को मज़दूर एकता कमेटी (एम.ई.सी.) द्वारा आयोजित दूसरी मीटिंग को संबोधित कर रहे थे, जिसका विषय था: कृषि का संकट और समाधान।
अन्य आमंत्रित वक्ताओं में शामिल थे – एम.ई.सी. के सचिव श्री बिरजू नायक, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ पाॅवर डिप्लोमा इंजीनियर्स के राष्ट्रीय महासचिव श्री अभिमन्यु धनखड़, पीपल फस्र्ट के संयुक्त संयोजक श्री थॉमस फ्रेंको, सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. बी. सेठ और ऑल इंडिया रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव श्री ए.वी. कांता राजू।
बैठक में भाग लेने वालों में मज़दूर यूनियनों और किसान यूनियनों के कार्यकर्ता तथा महिला और युवा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ ब्रिटेन और कनाडा में हिन्दोस्तानी मज़दूरों के कार्यकर्ता भी शामिल थे।
डॉ. दर्शन पाल ने हरित क्रांति के कारण कृषि में हुई तबाही पर प्रकाश डाला, जो बड़े पैमाने पर पूंजीवादी संबंधों को कृषि में लाई। कृषि के लिये लागत वस्तुओं जैसे कि कीटनाशक दवाइयों और उर्वरकों में पूंजी निवेश बढ़ने से और बढ़ते मशीनीकरण के साथ-साथ व्यापार की शर्तें धीरे-धीरे बड़े कॉरपोरेट्स के पक्ष में होने से किसानों और कृषि में काम करने वाले सभी लोगों के ख़िलाफ़ होती चली गईं। इससे संकट के लक्षण स्पष्ट होने लगे।
कृषि उत्पादन ठप्प हो गया। किसानों का क़र्ज़ बढ़ गया। किसानों ने अपनी ज़मीन को बेचना शुरू कर दिया, क्योंकि कृषि किसानों को आजीविका प्रदान करने में असमर्थ हो गई, और वे शहरों में मज़दूरों की श्रेणी में शामिल होने लगे। इस स्थिति ने न केवल पंजाब में बल्कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और कई अन्य राज्यों में बहुत से किसानों को आत्महत्या करने के लिये मजबूर किया। डॉ. दर्शन पाल ने सहकारी मॉडल को कृषि के लिए समाधान के रूप में बताते हुए कहा कि मौजूदा व्यवस्था से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह किसानों की स्थितियों में कोई गुणात्मक परिवर्तन लायेगी।
उनकी राय थी कि कृषि संकट की समस्या को हल करने के लिए किसानों के साथ-साथ मज़दूरों और समाज के अन्य सभी तबकों को शामिल करते हुये एक राजनीतिक आंदोलन करने की आवश्यकता है। एस.के.एम. के नेतृत्व में पिछले साल के किसान आंदोलन ने कुछ हद तक इस तरह की राजनीतिक मजबूती हासिल की है, और उन्हें विश्वास है कि यह आगे का रास्ता है। उन्होंने बताया कि क़र्ज़ राहत, फ़सल बीमा, एम.एस.पी., लखीमपुर खीरी के पीड़ितों के लिए न्याय और किसानों की अन्य सभी मांगों के महत्वपूर्ण मुद्दों पर आंदोलन जारी है। उन्होंने घोषणा की कि तीन अक्तूबर को किसान अपनी मांगों के समर्थन में लखीमपुरी खीरी में एकत्रित होंगे। 26 नवंबर को पंजाब में किसान अपनी मांगों को लेकर राज्यपाल को ज्ञापन सौंपेंगे। उन्होंने कहा कि हमें केंद्र सरकार और उसकी किसान-विरोधी, मज़दूर-विरोधी और जन-विरोधी नीतियों को चुनौती देनी होगी। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि 2024 में लोकसभा चुनावों तक की अवधि का उपयोग देश की मौजूदा सरकार के विकल्प के लिए सभी राजनीतिक ताक़तों को जुटाने के लिए किया जाना चाहिए।
श्री बिरजू नायक ने अपने संबोधन में बताया कि बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीवादी घरानों द्वारा कॉर्पोरेट लूट और कृषि पर नियंत्रण को एक क़ानूनी ढांचा प्रदान करने के लिए तीन किसान-विरोधी क़ानून लाए गए थे। उन्होंने समझाया कि भले ही क़ानूनों को वापस ले लिया गया हो, लेकिन यह नियंत्रण सभी क्षेत्रों पर कड़ा हो रहा है, जिसमें कृषि, कृषि उत्पादों के भंडारण और परिवहन के साथ-साथ ख़रीद और किसानों को उनकी उपज के लिए मूल्य शामिल हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश के लहसुन उत्पादकों, हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों, हरियाणा के चावल उत्पादकों सहित अन्य क्षेत्रों के किसानों के उदाहरण दिये, जिन्हें बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा बेशर्मी से लूटा जा रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अभाव में इजारेदार पूंजीपति खाद्य वस्तुओं और बाज़ार में हर आवश्यक वस्तुओं की क़ीमतों को नियंत्रित करते हैं। उन्होंने कहा कि देश में पर्याप्त मात्रा में खाद्य वस्तुओं का उत्पादन होता है, जो सभी लोगों की भोजन की आवश्यकता से अधिक है, फिर भी लाखों लोग भूखे रह जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बहुत से लोग भुखमरी या कुपोषण से मर जाते हैं।
बिरजू नायक ने ज़ोर देकर कहा कि यह सिर्फ वर्तमान की भाजपा सरकार ही नहीं है जो बड़े पूंजीवादी घरानों के हित में काम करती है। सरकार बनाने वाली हर पार्टी इनके हितों की रक्षा करती है। हमें एक ऐसी व्यवस्था की ज़रूरत है जो आबादी के विशाल बहुमत को लाभ पहुंचाने के लिए काम करे। इसके लिए, उन्होंने प्रस्ताव दिया कि किसानों को राज्य द्वारा रियायती दरों पर कृषि के लिये आवश्यक लागत सामग्रियां प्रदान करनी चाहिए, सभी कृषि उत्पादों की लाभकारी क़ीमतों पर ख़रीद सुनिश्चित करनी चाहिए और एक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए जो सभी खाद्यान्नों और आवश्यक सामान सस्ती क़ीमतों पर उपलब्ध कराए।
श्री अभिमन्यु धनखड़ ने इस बात को विस्तार से बताया कि कृषि संकट के समाधान के साथ ही साथ आज समाज में ग़रीबी, बेरोज़गारी और अन्य सभी समस्याओं का समाधान भी होगा। उद्योग और कृषि को एक साथ आगे बढ़ना है। उन्होंने कहा कि हमारी 70 प्रतिशत आबादी कृषि में कार्यरत है और जब तक कृषि, इस विशाल वर्ग को सुनिश्चित आजीविका प्रदान नहीं कर सकती, तब तक संकट बना रहेगा। उन्होंने कृषि के साथ-साथ उद्योग पर बड़े इजारेदार कॉर्पोरेट के वर्चस्व की वर्तमान प्रवृत्ति की निंदा की। श्री धनखड़ ने कृषि के लिए राजकीय सहायता की पुरजोर वकालत की, पर्याप्त सिंचाई का पानी, बिजली आपूर्ति और अन्य लागत वस्तुएं प्रदान करने के लिए, लाभकारी क़ीमतों पर सभी फ़सलों की सुनिश्चित सार्वजनिक ख़रीद के साथ-साथ लोगों की भोजन और सभी आवश्यक वस्तुओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये सब्सिडी दी जाये। उन्होंने बिजली संशोधन विधेयक के खि़लाफ़ बिजली क्षेत्र के मज़दूरों द्वारा किये जा रहे संघर्ष पर प्रकाश डाला और कहा कि बिजली संशोधन विधेयक किसानों को बर्बाद कर देगा। उन्होंने कॉर्पोरेट लूट के खि़लाफ़ मज़दूरों और किसानों को एकजुट संघर्ष करने के लिये एक ज़ोरदार आह्वान किया।
श्री थॉमस फ्रेंको, जो निजीकरण के खि़लाफ़ बैंक कर्मचारियों के संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं, उन्होंने बताया कि कैसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अतीत में कृषि और किसानों की सहायता करने में भूमिका निभाई है। इस भूमिका को अब बहुत अधिक विकृत किया जा रहा है, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर छोटे और सीमांत किसानों को दिये जाने वाले ऋण को कम करने का दबाव बढ़ रहा है, जबकि इन किसानों को ऋणों की सबसे अधिक आवश्यकता है। अडानी जैसे इजारेदार पूंजीपति भारतीय स्टेट बैंक के साथ मिलकर गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान बना रहे हैं जो किसानों को बहुत अधिक ब्याज दर पर क़र्ज़ प्रदान करेंगे। छोटे और सीमांत किसानों के सभी मौजूदा क़र्ज़ाें को तत्काल माफ़ किये जाने की मांग करते हुए, फ्रैंको ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा विभिन्न बैंकों का क़र्ज़ा न चुकाने वाले पूंजीपतियों के लाखों करोड़ रुपये के क़र्ज़ को न चुकाये गये क़र्ज़ (एन.पी.ए.) के रूप में माफ़ किया जा रहा है।
फ्रेंको ने कहा कि कृषि संकट का समाधान, किसानों के लिए एक सार्वजनिक क़र्ज़ गारंटी योजना, कृषि के सभी पहलुओं पर निजी कंपनियों के वर्चस्व को समाप्त करने और राज्य द्वारा शुरू किए जाने वाले एक एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम में निहित है, जिसमें पशुपालन और मछली पकड़ने सहित कृषि से जुड़े सभी लोगों की भलाई सुनिश्चित की जा सके।
डॉ. बी. सेठ ने बताया कि हमारे देश में खाद्यान्न का कुल वार्षिक उत्पादन लगभग 27.5 करोड़ टन है। प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन 500 ग्राम से अधिक है – जो औसत पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है; लेकिन लाखों लोग अभी भी कुपोषण और भूख से मरते हैं। उन्होंने कहा कि संकट का स्रोत इस तथ्य में निहित है कि मौजूदा व्यवस्था समाज के सबसे धनी वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए ही काम करती है। सबसे धनी 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है; हिन्दोस्तान के 100 शीर्ष अरबपतियों ने अकेले एक वर्ष में, जबसे कोविड-19 महामारी शुरू हुई, अपनी संपत्ति में 12,97,822 करोड़ रुपये की वृद्धि की है।
समाज की दौलत बनाने वाली 90 प्रतिशत आबादी अपने श्रम के फल से वंचित रह जाती है। उन्होंने कहा कि उच्चतम स्तर की प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, लेकिन इसमें से किसी को भी कृषि को आगे बढ़ाने या लोगों के रहने और काम करने की स्थिति में सुधार करने के लिए नहीं लगाया जाता है। डा. सेठ ने किसानों के लिए लाभकारी मूल्य और कृषि की लागत वस्तुओं का रियायती मूल्य सुनिश्चित करने के लिए थोक व्यापार पर राज्य के नियंत्रण के साथ-साथ, एक सर्वव्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली स्थापित करने का आह्वान किया ताकि सस्ती क़ीमतों पर उपभोग की सभी वस्तुओं की उपलब्धता बड़े पैमाने पर सुनिश्चित हो सके।
श्री कांता राजू ने भारतीय रेल की पटरियों की देखभाल करने वालों के काम की अत्यंत कठिन और ख़तरनाक परिस्थितियों के खि़लाफ़ चलाये जा रहे अपने संघर्ष के बारे में बताया। उच्च स्तर की तकनीक उपलब्ध होने के बावजूद, अधिकारियों और सरकार की घोर लापरवाही के कारण हर साल सैकड़ों ट्रैकमैन मारे जाते हैं।
कांता राजू ने कहा कि मज़दूर और किसान आज संघर्ष के एक सांझे मंच पर हैं जो बड़े इजारेदार कॉरपोरेट्स के खि़लाफ़ है, जो मेहनतकश लोगों को लूटने और उनके मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए कृषि के साथ-साथ विनिर्माण और औद्योगिक उत्पादन के अन्य क्षेत्रों पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने किसानों और मज़दूरों को एक साथ लाने की इस पहल के लिए मज़दूर एकता कमेटी की सराहना की। उन्होंने अपने संगठन, ऑल इंडिया रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन की हमारे समाज के सामने मौजूद संकट को समाप्त करने के संघर्ष में पूर्ण भागीदारी का वादा किया।
आमंत्रित वक्ताओं द्वारा की गई प्रस्तुतियों के बाद, कई अन्य सहभागियों ने अपने विचारों को पेश किया।
“एक किसान परिवार 5,000 रुपये प्रति माह से कम की आय पर कैसे जीवित रह सकता है?” एक युवा कार्यकर्ता ने पूछा। आज हिन्दोस्तान दुनिया के सबसे उन्नत देशों में से एक है और हम बहुत अधिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करते हैं और हमारे पास आधुनिक तकनीक है। लेकिन सबसे बड़े इजारेदार पूंजीवादी घरानों के नेतृत्व में शासक पूंजीपति वर्ग पूरी उत्पादन प्रक्रिया पर हावी है। नतीजतन, उनकी संपत्ति बढ़ती रहती है जबकि मज़दूरों और किसानों की स्थिति ख़राब होती जाती है, उन्होंने कहा।
सहभागियों ने डेयरी किसानों की चिंताओं को उठाया। कई सहभागियों ने किसान आंदोलन के सामने आने वाली चुनौतियों और कृषि के सामने आने वाले संकट को हल करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इस पर अपने विचार रखे। कई लोगों ने यह विचार व्यक्त किया कि मज़दूरों और किसानों को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेने के लिए संगठित होना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कृषि का संकट विशाल आबादी के हितों में हल हो।
बैठक का समापन करते हुए, श्री संतोष कुमार ने किसान आंदोलन द्वारा, हमें सिखाए गए महत्वपूर्ण सबकों को याद किया। एक सबक यह है कि हम अपनी एकता को बनाए रखें और मजबूत करें तथा पूंजीवादी शोषण की इस व्यवस्था को समाप्त करने के अपने संकल्प पर डटे रहें, पूंजीवादी शोषण की यह व्यवस्था ही मज़दूरों और किसानों की समस्याओं का स्रोत है। हम मज़दूरों और किसानों को राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेने के लिए एकजुट होना चाहिए और एक नए समाज की स्थापना करनी चाहिए। जिसमें हम शासक होंगे और निर्णय लेने वाले होंगे तथा हम सभी मेहनतकशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था को फिर से तैयार करेंगे।