संपादक महोदय,
मज़दूर एकता लहर में प्रकाशित लेख – हिन्दोस्तानी राज्य पूरी तरह से सांप्रदायिक है, आइए हम सब मिलकर इंसाफ करने के अपने संघर्ष को आगे बढ़ाएं – को पढ़कर मैं इस पर अपने विचार रखना चाहती हूं।
हिन्दोस्तान में और दुनिया में महिलाओं पर हिंसा, अपराध व शोषण खूब तेजी़ से बढ़ रहा है। बिलकीस बानो आज का जीता-जागता उदाहरण है। जो उसके साथ हुआ वह बहुत ही शर्मनाक बात है। परन्तु यह कोई इकलौती घटना नहीं है। अपने देश में बहुत वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है। आज भी महिलायें पितृसत्ता, घेरलू हिंसा, यौन हमलों, रीति-रिवाजों और जाति-प्रथा, आदि की शिकार बनती रहती हैं, जबकि हमारे देश में सत्ताधारी लोग, महिला सशक्तिकरण की बहुत बात करते हैं?
हिन्दोस्तान में पिछले साल बलात्कार के 31,677 मामले रिकार्ड किये गये हैं, यानी औसतन 86 प्रतिदिन या हर घंटे में 49 महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध होते हैं। यह जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) से मिली है। अपने देश में ऐसे ही बहुत से मामलों को कहीं दर्ज ही नहीं किया जाता।
हमारी महिलाओं को सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आंतकवाद का बेहद नृशंस तरीके़ से शिकार बनाया जाता है जैसा कि 2002 में गुजरात में हुये जनसंहार में या 1984 में हुये जनसंहार में तथा मणिपुर व कश्मीर में फ़ौजी शासन में तमाम अत्याचार होते आ रहे हैं।
महिलाओं की हालतें इतनी र्ददनाक क्यों हैं? जैसा कि लेख में बताया गया है, हम महिलाओं को समाज में हो रही हर प्रकार की नाइंसाफी के ख़िलाफ़ सघर्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी। महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एकजुट होकर सघर्ष करना होगा और पुरानी राज्य व्यवस्था को उखाड़कर फैंकना होगा तथा एक नये समाज की रचना करनी होगी। यही महिला मुक्ति का सही रास्ता है।
आपकी पाठक
सना