2002 में बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों को 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया और तभी से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए, देश के सभी क्षेत्रों से महिलाएं और पुरुष विभिन्न प्रकार के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं।
27 अगस्त को महिला संगठनों, मानवाधिकार संगठनों और लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कई अन्य संगठनों ने देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर संयुक्त विरोध प्रदर्शन किये।
नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर, महिला संगठनों, मानवाधिकार संगठनों, छात्रों और युवाओं के संगठनों, कलाकारों, लेखकों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ समाज के प्रति चिंतित नागरिक, सैकड़ों कार्यकर्ता बड़ी संख्या में इकट्ठे हुये और सरकार की निंदा की, उन्होंने दोषियों को रिहा करने के निर्णय को वापस लेने की मांग की। मंच पर एक बड़े बैनर में लिखा था: “बिलकीस बानो के न्याय के संघर्ष के समर्थन और एकजुटता के साथ खड़े हों”।
प्रदर्शनकारियों ने तख्तियों और बैनरों के साथ नारे लगाए: “राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और जनसंहार के ख़िलाफ़ एकजुट हों!”, “लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले जेल में बंद रहते हैं, जबकि बलात्कारी और हत्यारे मुक्त होते हैं – क़ानून के राज का असली चेहरा!”, “बलात्कारियों की रिहाई महिलाओं के ख़िलाफ़ आतंक के शासन का अग्रदूत है!”, “बलात्कार एक गंभीर अपराध है, बलात्कारियों को छूट एक जघन्य अपराध है!”, “अपराधियों की रिहाई को रद्द करो!”, “हमें न्याय चाहिए!”, “एक पर हमला सब पर हमला!”। उन्होंने दोषियों को रिहा करने के फ़ैसले की निंदा करते हुए नारे लगाए और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा के साथ-साथ बलात्कार और महिलाओं के ख़िलाफ़ सभी अपराधों को ख़त्म करने की मांग की।
रैली में भाग लेने वाले संगठनों के वक्ताओं ने लोगों को संबोधित किया। उन्होंने दोषियों की रिहाई की निंदा की। उन्होंने इस फ़ैसले के लिए अदालतों और न्यायपालिका पर सवाल उठाए। उन्होंने केंद्र और गुजरात राज्य सरकारों की निंदा की। वक्ताओं ने कहा कि यह इस देश की महिलाओं और लोगों को संदेश देता है कि वे कभी न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते। उन्होंने मांग की कि दोषियों की सज़ा में छूट को वापस लिया जाए।
नई दिल्ली में विरोध कार्रवाई में भाग लेने वाले संगठनों में अनहद, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसियेशन (ए.आई.डी.डब्ल्यू.ए.), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन (एन.एफ.आई.डब्ल्यू.), पुरोगामी महिला संगठन (पी.एम.एस.), आल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमन एसोसियेशन (ए.आई.पी.डब्ल्यू.ए.), आल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (ए.आई.एम.एस.एस.), आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसियेशन (ए.आई.एस.ए.), यंग वुमन क्रिश्चन एसोसियेशन (वाई.डब्ल्यू.सी.ए.), नेशनल अलाईंस ऑफ पीपल्स मुवमेंट (एन.ए.पी.एम.), न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (एन.टी.यू.आई.), आल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन (ए.आई.डी.एस.ओ.), बी.ए.एस.ओ. और कई अन्य संगठन शामिल थे।
कई राज्यों – तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, आदि में विरोध प्रदर्शन हुए। अन्यायपूर्ण फ़ैसले के ख़िलाफ़ हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया और मांग की कि इस फै़सले को तुरंत वापस लिया जाए।
भले ही विरोध अलग-अलग भाषाओं में थे, लेकिन उनके उद्देष्य की गूंज एक ही थी – बिलकीस बानो के लिए न्याय, राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक जनसंहार का अंत, बलात्कार और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के लिए सज़ा।
15 अगस्त को गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को रिहा किये जाने को वापस लेने की मांग को लेकर सैकड़ों लोग बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में इकट्ठा हुए।
बेंगलुरु के अलावा, कर्नाटक के 15 जिलों जैसे गुलबर्गा, यादगिरि हसन, चामराजनगर, चिकमगलूर, बेल्लारी, बीदर, बीजापुर और कई अन्य जगहों में विरोध प्रदर्शन देखा गया।
हैदराबाद, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। मुंबई, ठाणे, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद और महाराष्ट्र के कई अन्य हिस्सों में, स्कूलों और कॉलेजों की कामकाजी महिलाएं और युवतियां बड़ी संख्या में सरकार की निंदा करने और बिलकीस बानो के लिए न्याय की मांग करने के लिए सामने आईं। इन विरोध प्रदर्शनों में रंगमंच कार्यकर्ताओं और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
चंडीगढ़ और पंजाब के कई शहरों में लोग विरोध करने के लिए निकल पड़े। वाराणसी और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी बड़े विरोध प्रदर्शन हुए। बिलकीस बानो के दोषियों को सज़ा दिलाने और न्याय की मांग को लेकर केरल और तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं, पुरुषों और युवाओं ने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किये।