10 अगस्त, 2022 को तीन लाख से भी अधिक डाक मज़दूरों ने एक दिन की हड़ताल की। डाक मज़दूरों के साथ-साथ, हड़ताल में रेलवे मेल सर्विस (आर.एम.एस.), मेल मोटर सर्विस (एम.एम.एस.) व पोस्ट ऑफिस बैंक सर्विस (पी.ओ.बी.एस.) के मज़दूर, तथा ग्रामीण डाक सेवक भी शामिल थे। हड़ताल पोस्टल ज्वाइंट कौंसिल ऑफ एक्शन (पी.जे.सी.ए.) के झंडे तले आयोजित की गयी थी जो डाक मज़दूरों की अनेक फेडरेशनों का एक संयुक्त मंच है। सभी केन्द्रीय टेªड यूनियनों ने हड़ताल का समर्थन किया।
मार्च 2017 के आंकड़ों के अनुसार इंडिया पोस्ट के 1,54,965 पोस्ट ऑफिस हैं और यह दुनिया की सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है। इंडिया पोस्ट द्वारा दी जाने वाली सेवाओं में शामिल हैं, डाक से पत्र व पार्सलों को पहुंचाना, मनीआर्डर के ज़रिये पैसे भेजना, छोटी बचत योजना के तहत पैसे जमा करना, पोस्टल लाइफ इन्श्योरेंस (पी.एल.आई.) के तहत जीवन बीमा प्रदान करना और बिल भुगतान, आवेदन पत्रों की बिक्री, इत्यादि जैसी सेवाएं प्रदान करना। इंडिया पोस्ट हजारों गांवों से आंकड़े जुटाकर कर स्टेटिस्टिक्स एण्ड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन मंत्रालय (एम.ओ.एस.पी.आई.) को देता है जिससे उपभोक्ता क़ीमत सूचकांक (सी.पी.आई) की गणना होती है।
अपनी मांगों के लिये डाक मज़दूर नियमित तौर पर आंदोलन करते आये हैं। वर्तमान हड़ताल के कारणों में कम से कम निम्नलिखित दो कारण खास हैं।
एक है कि सरकार ने इंडिया पोस्ट द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सेवाओं का विलय इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (आई.पी.पी.बी.) से करने की योजना बनाई है। आई.पी.पी.बी. के गठन का प्रस्ताव और उसके साथ पोस्ट ऑफिस के बचत खातों का विलय की योजना 2012-13 में, कांग्रेस के नेतृत्व की संप्रग सरकार के कार्यकाल में ही बना ली गयी थी।
आई.पी.पी.बी. का गठन एक निगम बतौर सितम्बर 2018 में किया गया था। इसकी 650 शाखाएं हैं और 3,250 संपर्क केंद्र हैं। इंडिया पोस्ट का आधे से ज्यादा वित्त, बैंकिंग और बीमा सेवाओं से आता है। 30 करोड़ से भी अधिक खाता धारकों ने करीब 10 लाख करोड़ का निवेश इन खातों में किया है। डाक मज़दूरों ने चिंता जताई है कि आई.पी.पी.बी. के साथ विलय से डाक विभाग के वित्तीय स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पडेंगा। इस विलय का उद्देश्य इंडिया पोस्ट को घाटे वाला विभाग घोषित करना है ताकि इसके बाद उसको तोड़ा जा सके और उसके निजीकरण का धरातल तैयार किया जा सके।
हड़ताल का दूसरा प्रमुख कारण है कि सरकार डाक मित्र और कॉमन सर्विसेज सेंटर (सी.एस.सी.) जैसी योजनाओं के ज़रिये विशेष विक्रय अधिकार (फ्रेंचाइज़) देकर डाक संचालन के मूल काम को निजी कंपनियों से करवा रही है। कोविड महामारी के चलते डाक मित्र को बहुत बढ़ावा दिया गया था। इसके अलावा, डाक विभाग ने सी.एस.सी. के साथ सांझेदारी की है। अनुमान है कि देशभर में सी.एस.सी. के 4.5 लाख ग्रामीण स्तर के उद्यमी हैं और सरकार की योजना है कि उनके केन्द्रीकृत पोर्टल के ज़रिये उन्हें पार्सल और स्पीडपोस्ट की रजिस्टरी करने की अनुमति दी जायेगी। इससे करीब 30 प्रतिशत डाक मज़दूरों की नौकरी प्रभावित होगी।
डाक विभाग के अधिकारियों ने 5 अगस्त को डाक मज़दूरों की मांगों पर चर्चा करने के लिये एक मीटिंग की और उन्होंने घोषणा की कि डाक विभाग के निगमीकरण और निजीकरण का कोई प्रस्ताव नहीं है। परन्तु डाक मज़दूरों को सरकार के आश्वासनों पर विश्वास नहीं है। सरकार को स्पष्ट रूप से चेतावनी देने के लिये कि उन्हें मात्र आश्वासनों पर भरोसा नहीं है, इसीलिये उन्होंने फैसला लिया कि वे अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे, और अपनी हड़ताल के नोटिस के अनुसार हड़ताल पर रहेंगे।
डाक मज़दूरों ने अनेक बार ध्यान दिलाया है कि डाक सेवाओं के निजीकरण से अवश्य ही इन सेवाओं की क़ीमतें बढ़ेंगी और सेवाएं बिगड़ेंगी, खास तौर पर देश के दूर-दराज़ स्थानों पर। यह समाज के हित के विपरीत है। निजीकरण के खि़लाफ़ लड़ने वाले सभी लोगों को इंडिया पोस्ट के मज़दूरों के संघर्ष का समर्थन करना चाहिये।
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