25 जून, 2022 को गुजरात पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते (ए.टी.एस.) ने तीस्ता सीतलवाड़ को मुंबई में उनके घर से गिरफ़्तार किया और उन्हें अहमदाबाद ले गया। उन्हें मेजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और 2 जुलाई तक पुलिस की हिरासत में भेज दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के मंत्रियों व अधिकारियों के नाम पर कीचड़ उछालने के तथाकथित आरोप के लिये तीस्ता सीतलवाड़ व अन्य लोगों को, सज़ा देने का बुलावा दिया है। अदालत के अनुसार इन मंत्रियों व अधिकारियों ने 2002 में जनसंहार को रोकने के कठिन परिश्रम किया था। सर्वोच्च अदालत के आदेश का सार है कि जो भी लोग राजकीय आतंकवाद का विरोध करने और उसका पर्दाफाश करने की जुर्रत करेंगे उन्हीं को राजकीय आतंकवाद का निशाना बनाया जायेगा।
गुजरात जनसंहार बीस साल पहले फरवरी 2002 के अंत में हुआ था। अहमदाबाद और गुजरात के अन्य शहरों तथा ग्रामीण जिलों में हज़ारों बेकसूर लोगों को ज़िन्दा जला दिया गया था। महिलाओं का बलात्कार किया गया था और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था।
जनसंहार के बाद, विख्यात न्यायविद, वी. आर. कृष्ण अय्यर के तहत चिंतित नागरिकों के न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने अहमदाबाद और अन्य स्थानों पर व्यापक सुनवाइयां आयोजित कीं। इस न्यायाधिकरण के काम में बहुत सी जानी–मानी हस्तियों ने हिस्सा लिया जिनमें न्यायमूर्ति हाॅस्बेट सुरेश, न्यायमूर्ति पी.बी.सावंत और के.जी. कण्णाबीरन शामिल थे। उन्होंने जनसंहार के पीड़ितों की गवाहियां रिकार्ड कीं और साथ–साथ कार्यकर्ताओं, पुलिस अफ़सरों और राजनेताओं के बयान भी रिकार्ड किये। जो सबूत व जानकारी जमा की गयी वह दिखाती है कि जनसंहार की तैयारी 6 से 8 महीने पहले से शुरू हो गयी थी। वह दिखाती है कि यह स्वतः स्फूर्त ”दंगे“ नहीं थे जैसा कि सरकार दिखाने की कोशिश कर रही थी। ये पहले से बनाई गई योजना के अनुसार आयोजित महा अपराध था जिसे गुजरात की शासकीय और पुलिस मशीनरी का पूरा समर्थन प्राप्त था।
ज़मीर वाले स्त्री व पुरुषों ने जनसंहार के पीड़ित परिवारों के लिये राहत शिविर स्थापित किये। उन्होंने जनसंहार को आयोजित करने वालों को सज़ा दिलाने का संघर्ष भी उठाया। तीस्ता सीतलवाड़ न्याय के लिये लड़ने वाली एक ऐसी ही कार्यकत्र्ता हैं। गुनहगारों को सज़ा सुनिश्चित करने के लिये, चाहे गुनहगार कितने भी ऊंचे सरकारी पद पर क्यों न हों, उसने बीस साल बिताये हैं।
1984 के जनसंहार और पंजाब में ”मुठभेड़ में हुई हत्याओं“ के गुनहगारों को सज़ा देने के संघर्ष स्पष्ट तौर पर दिखाते हैं कि पीड़ित, राज्य से न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते हैं जब स्वयं राज्य ही जनहत्याओं और आतंक का आयोजक हो। राज्य के सभी संस्थान – सरकार, पुलिस व अन्य तहक़ीक़ात एजेंसियां, न्यायपालिका तथा शासक वर्ग की पार्टियां – मिलकर सच्चाई पर पर्दा डालती हैं। वे सुनिश्चित करती हैं कि जनसंहार आयोजित करने वाले दोषियों को कभी सज़ा न मिले। न्याय देने की जगह पीड़ितों का ही और अधिक उत्पीड़न किया जाता है। साथ ही जो पीड़ितों का बचाव करने और दोषियों को पहचानने और सज़ा देने की मांग करने की हिम्मत करते हैं उन्हें भी प्रताड़ित किया जाता है।
तीस्ता सीतलवाड़ व अन्य लोगों के साथ भी यही हो रहा है। सर्वोच्च अदालत के फै़सले के 24 घंटे के अंदर ही गुजरात पुलिस के ए.टी.एस. ने तीस्ता व अन्य कई लोगों के खि़लाफ़ न केवल एक विस्तृत प्राथमिकी तैयार कर ली थी, बल्कि उनकी गिरफ़्तारी भी कर ली। केन्द्र सरकार इसे एक उदाहरण के जैसे इस्तेमाल करना चाहती है ताकि राजकीय आतंक के पीड़ितों के बचाव में कोई कभी आवाज़ उठाने की हिम्मत न करे।
प्राथमिकी तीस्ता सीतलवाड़ व अन्य लोगों की भूमिका की तहक़ीक़ात 1 जनवरी, 2002 से करने वाली है – यानी कि जनसंहार के दो महीने पहले से। लगता है कि राज्य तीस्ता व अन्य लोगों को गुजरात सरकार को बदनाम करने के एक षड्यंत्र के लिये दोष देने की कोशिश करने वाला है। सी.ए.ए. के खि़लाफ़ प्रदर्शनों में शामिल कार्यकर्ताओं पर लगाये गये मामलों का अनुभव इसी दिशा का संकेत देता है। वे कार्यकर्ता दो वर्षों से जेलों में पीड़ित हो रहे हैं। उन पर यू.ए.पी.ए. के तहत आरोप लगाया गया है कि उन्होंने केन्द्र सरकार को बदनाम करने के लिये फरवरी 2020 में उत्तर पश्चिमी दिल्ली में दंगे आयोजित करने के षड्यंत्र में हिस्सा लिया था।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, तीस्ता सीतलवाड़ की अन्यायपूर्ण गिरफ़्तारी की निंदा करने में, देश के सभी न्यायपसंद लोगों के साथ खड़ी है।