18 जून को हजारों मज़दूरों ने रोजमर्रा की ज़रूरतों के खर्च में भारी वृद्धि के ख़िलाफ़ विरोध करने के लिए मध्य लंदन की सड़कों पर जुलूस निकाला। यह विशाल जुलूस संसद चैक पर एक रैली के रूप में समाप्त हुआ।
रैली में मांग की गई कि ब्रिटिश सरकार मज़दूरों और उनके परिवारों को गंभीर स्थिति से निपटने में मदद करने के लिए तत्काल उपाय करे। कामकाजी लोगों ने रहने की बेहतर स्थिति, वास्तविक वेतन में वृद्धि और सभी के लिए उचित मज़दूरी, मनमानेे तरीके़ से नौकरी से निकालने और नौकरी पर रखने की योजनाओं पर प्रतिबंध लगाना, बीमार होने पर मिलने वाले लाभ दिये जायें और काम के स्थान पर नस्लवाद को ख़त्म करने की मांग की। उन्होंने मांग की कि ऊर्जा आपूर्ति कंपनियों पर टैक्स लगाया जाए और लोगों द्वारा ऊर्जा के लिए भुगतान किए जा रहे शुल्कों में कटौती की जाए। ट्रेड यूनियनों में संगठित होने के मज़दूरों के अधिकार पर हमला करने के लिए, ट्रेड यूनियन विरोधी क़ानूनों को पारित करने के सरकार के प्रयासों की उन्होंने निंदा की।
विरोध प्रदर्शन का आयोजन ट्रेड यूनियन कांग्रेस द्वारा किया गया था। इसमें कई क्षेत्रों के मज़दूरों ने हिस्सा लिया था। इसमें में छात्र-छात्राओं ने भारी संख्या भाग लिया। विभिन्न तबकों की मांगों को मज़दूरों द्वारा उठाये गए सैकड़ों बैनरों और तख्तियों पर लिखा गया था। उन्होंने दिखाया कि मज़दूर सभी के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। फायर ब्रिगेड यूनियन (एफ.बी.यू.) और रेल वर्कर्स यूनियन-आर.एम.टी., जो पूरे मज़दूर वर्ग की मांगों के लिए लड़ने में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। संसद स्क्वायर में प्रवेश करते ही सभी ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया।
जुलूस और रैली से पता चलता है कि मज़दूर वर्ग और ब्रिटेन के लोग अपने अधिकारों पर हमलों के खि़लाफ़ अपने संघर्षों को तेज़ कर रहे हैं। नौकरी पेशा लोग कह रहे हैं कि – बस करो, अब बहुत हो गया।