मई के अंत में क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा संवाद) के रूप में पहचाने जाने वाले देशों के समूह ने जापान के टोक्यो में अपना चौथा शिखर सम्मेलन आयोजित किया। क्वाड के चार सदस्य देश हैं – अमरीका, हिन्दोस्तान, जापान और ऑस्ट्रेलिया।
2007 में क्वाड की स्थापना होने के बाद से ही यह बिलकुल स्पष्ट है कि अमरीकी नेतृत्व में बनाया गया क्वाड, चीन के ख़िलाफ़ एक गठबंधन बनाने की पहल है। अमरीकी साम्राज्यवादी एशिया और पूरी दुनिया पर हावी होने के लिये चलाये जा रहे अपने अभियान में चीन को सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखते हैं। कई टिप्पणीकारों ने क्वाड को “एशियाई नाटो” बताया है। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा द्वारा 2011 में घोषित की गई “एशिया धुरी नीति”, प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर क्षेत्र के एशियाई देशों में, चीन का मुक़ाबला करने के लिए और अधिक आक्रामक भूमिका निभाने की दिशा में एक क़दम थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद की अवधि में, अमरीकी साम्राज्यवाद अपने वैश्विक प्रभुत्व को क़ायम रखने के रास्ते में जिसे भी रोड़ा मानता है, उसे एक मुख्य ख़तरे की तरह देखता है और उस पर दबाव बनाने तथा उसका मुक़ाबला करने के लिए एक सैन्य-समूह बनाने की नीति का पालन करता आया है। 1950 और 1960 के दशक में अमरीका ने कई सैन्य गठबंधनों को बनाने में नेतृत्व दिया था जैसे कि उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), दक्षिण-पूर्व एशिया संधि संगठन (सीटो) और केंद्रीय संधि संगठन (सेंटो)। ये सभी गठबंधन योजनाबद्ध तरीके़ से सोवियत संघ और समाजवादी खेमे के ख़िलाफ़ बनाये गए थे।
1991 में सोवियत संघ के पतन और समाजवादी खेमे के विघटन के बाद से अमरीका ने यूरोप पर अपने प्रभुत्व का विस्तार करने के लिए नाटो को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना जारी रखा। अमरीकी कमान में नाटो के सुरक्षा बलों ने बहुराष्ट्रीय राज्य यूगोस्लाविया के टुकड़े कर दिये। नाटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार करने का उद्देश्य है रूस और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों को योजनाबद्ध तरीक़े से अपने अधीन करना। एशिया और पूरी दुनिया पर अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के मंसूबे से, पहले क़दम बतौर अमरीका यूरोप पर अपना संपूर्ण प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। “इस्लामी आतंकवाद” से लड़ने की आड़ में अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, इराक और सीरिया सहित, कई एशियाई देशों के ख़िलाफ़ युद्ध और आक्रामकता को बढ़ावा देने के लिए “स्वेच्छिक गठबंधन” जैसे गठबंधन बनाए हैं।
अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा एक ध्रुवीय दुनिया स्थापित करने के मंसूबे से चलाये जा रहे उसके विभिन्न अभियानों के शिकार राष्ट्रों और लोगों से अमरीका की साम्राज्यवादी कोशिशों को बढ़ते प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है। दुनिया के कई राष्ट्रों के द्वारा अमरीकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ किया जाने वाला प्रतिरोध स्पष्ट रूप से बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। इनमें चीन और रूस के साथ-साथ, यूरोपीय संघ के कई साम्राज्यवादी सदस्य राज्य भी हैं जो एक बहु-धु्रवीय साम्राज्यवादी दुनिया के निर्माण का प्रयास कर रहे हैं।
चीन की बढ़ती आर्थिक, तकनीकी और सैन्य शक्ति ने अमरीका को चीन के पड़ोस पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया है। अमरीका “इंडो-पैसिफिक” क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को मजबूत करने के लिए काफी इच्छुक है। क्वाड अमरीका के इसी साम्राज्यवादी एजेंडे का नतीजा है।
एक-ध्रुवीय दुनिया के निर्माण की दिशा में चलाये जा रहे अपने अभियान में अमरीकी साम्राज्यवाद ने पिछले कुछ दशकों के दौरान, हिन्दोस्तानी शासक वर्ग को एक रणनीतिक भागीदार के रूप में शामिल करने की कोशिश की है। चीन पर अपना नियंत्रण हासिल करने के अपने अभियान में अमरीका, हिन्दोस्तान को एक उपयोगी सहयोगी के रूप में देखता है।
ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ.) जैसे अन्य गठबंधनों के साथ (जिनमें चीन एक सदस्य के रूप में शामिल है), अपने संबंधों को बनाए रखते हुए, हिन्दोस्तानी शासक वर्ग क्वाड जैसे गठबंधन में भी हिस्सा ले रहा है। जबकि इस तरह से दोनों गुटों के साथ चलने का हिन्दोस्तान का यह रवैया, अनेक ख़तरों से भरा हुआ है। यह भी दिख रहा है कि वह धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से अमरीकी साम्राज्यवाद के खेमे में खींचा जा रहा है।
घटनाक्रम जो टोक्यो क्वाड सम्मेलन के दौरान हुये
हाल ही में क्वाड समूह की जल्दी-जल्दी आयोजित कई बैठकें, इस गठबंधन से जुड़े देशों के बीच बढ़ते सामंजस्य को दर्शाती हैं। मार्च 2021 में जब पहला क्वाड शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था, उसके बाद से अब तक चार शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।
इस शिखर सम्मेलन का अयोजन, यूक्रेन में तीन महीने से अधिक समय से चल रहे युद्ध की पृष्ठभूमि में किया गया था। रूस की कड़े शब्दों में निंदा करने के लिए, अमरीकी राष्ट्रपति ने इस शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल किया। अमरीकी राष्ट्रपति ने अमरीका को एक “नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था” के समर्थक के रूप में पेश करने की कोशिश की। साथ ही, उन्होंने चीन के ख़िलाफ़ भी खुलकर ऐलान किया कि अगर चीन ताईवान में जाता है तो अमरीका वहां पर सैनिक हस्तक्षेप करेगा। जब यह शिखर सम्मेलन हो रहा था तभी अमरीका द्वारा समर्थित ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत द्वीपों में चीन तथा और राज्यों के बीच के घनिष्ठ संबंधों के लिए हो रही बातचीत को विफल करने के लिए सक्रिय क़दम उठा रहा था।
भू-राजनीतिक विवाद की कठिन परिस्थितियों में क्वाड को मजबूत किया जा रहा है। चीन को अलग-थलग करने और एशिया में उसके प्रभाव को कमज़ोर करने के अमरीका के साम्राज्यवादी मंसूबों को आगे बढ़ाने में क्वाड मदद कर रहा है।
इस शिखर सम्मेलन का एक प्रमुख एजेंडा था इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आई.पी.ई.एफ.) का गठन करना। यह एक आर्थिक गठबंधन होगा जिसमें क्वाड सदस्यों के साथ-साथ, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कई अन्य राज्य भी शामिल हैं। इनमें से कई राज्य बहुत पहले से ही चीन द्वारा बनाये गये गठबंधन – क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आर.सी.ई.पी.) का हिस्सा हैं। आई.पी.ई.एफ. का गठन करना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि अमरीका द्वारा खुद को एक प्रतिद्वंद्वी क्षेत्रीय आर्थिक गठबंधन (जिसमें चीन शामिल नहीं है) के प्रमुख के रूप में स्थापित करने का प्रयास है।
टोक्यो शिखर सम्मेलन में एक नई इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (आई.पी.एम.डी.ए.) पहल की घोषणा भी की गयी। इन क्षेत्रों के पानी की निगरानी की अनुमति देने के लिए, नवीनतम तकनीक का उपयोग करना भी इस घोषणा में शामिल है। ऐसा दावा किया गया है कि नयी तकनीक के ज़रिये उन जहाजों पर नज़र रखी जायेगी जो अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली को बंद करके अपनी पहचान को छुपाते हैं। इस योजना का मक़सद है कि दक्षिण चीन सागर में चीन के पानी के जहाजों और उसके अन्य व्यापारिक जहाजों की आवाजाही पर नज़र रखी जा सके। यह सर्वविदित है कि अमरीका और उसके सहयोगियों के युद्धपोत जब भी अपनी उपस्थिति छुपाना चाहते हैं तो अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली को स्वयं ही बंद करने की रणनीति अपनाते हैं।
निष्कर्ष
हाल में क्वाड से संबंधित हुए घटनाक्रम से निम्नलिखित बातें स्पष्ट हैं।
- राज्यों के समूहों को बनाने और उन्हें मजबूत करने तथा चीन के ख़िलाफ़ उन्हें उकसाने के लिए अमरीका के नए साम्राज्यवादी अभियान का क्वाड एक हिस्सा है। एशिया पर हावी होने के अपने मंसूबों को हासिल करने के रास्ते में अमरीका, चीन को एक मुख्य चुनौती के रूप में देखता है।
- बाइडन की अध्यक्षता में पिछले एक या दो वर्षों के दौरान क्वाड को और मजबूत करने की कोशिशों की गति काफ़ी तेज़ हो गई है।
- हिन्दोस्तानी राज्य अपने कुछ विकल्पों को खुला रखने की कोशिश जारी रखते हुए, क्वाड और अन्य तंत्रों के ज़रिये अमरीका के बढ़ते दबाव में आ रहा है। हिन्दोस्तानी राज्य के ऊपर अपनी भू-राजनीतिक रणनीति को पूरी तरह से अमरीका के मंसूबों के अनुरूप बनाने का दबाब बढ़ता जा रहा है।
- क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को मजबूत करना तो दूर, क्वाड केवल अंतर साम्राज्यवादी टकराव और युद्ध के ख़तरों को और भी बढ़ाएगा।
यह सब शोर-शराबा और प्रचार कि हिन्दोस्तान और अमरीका एक “नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था” को बनाए रखने के प्रयास में भागीदार हैं। यह पूरी तरह से एक दिखावा है। क्वाड एक ख़तरनाक उपक्रम है जो हिन्दोस्तानी लोगों के हितों के ख़िलाफ़ है। हमारे लोगों का हित, सभी साम्राज्यवादी गुटों से दूर रहने में निहित है। हमारा हित, हमारे अपने पड़ोसी देशों के साथ-साथ, एशिया और दुनिया के अन्य देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाने के लिए लगातार काम करने में ही निहित है। हमारा हित, साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ एक सैद्धांतिक विरोध और सभी राष्ट्रों और लोगों को अपने भाग्य का निर्धारण करने के उनके अपने अधिकार की रक्षा करने में निहित है।