29 मई, 2022 को कामगार एकता कमेटी (के.ई.सी.) ने भारतीय रेल के स्टेशन मास्टरों के संघर्ष के समर्थन में एक जनसभा का आयोजन किया। रेल मज़दूरों की यूनियनों, फेडरेशनों तथा रेलवे में विभागों के अनुसार बने संगठनों को बड़ी संख्या में मीटिंग में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। के.ई.सी. के महासचिव कामरेड मैथ्यू ने वहां उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया और के.ई.सी. के संयुक्त सचिव, कामरेड अशोक कुमार से इस जनसभा का संचालन करने के लिए अनुरोध किया।
ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (ए.आई.एस.एम.ए.) के नेताओं के अलावा, इस बैठक को ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.), ऑल इंडिया गार्ड्स काउंसिल (ए.आई.जी.सी.), ऑल इंडिया ट्रेन कंट्रोलर्स एसोसिएशन (ए.आई.टी.सी.ए.), ऑल इंडिया रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स यूनियन (ए.आई.आर.टी.यू.), ऑल इंडिया पॉइंट्समैन एसोसिएशन (ए.आई.पी.एम.ए.), इंडियन रेलवे टिकट चेकिंग स्टाफ ऑर्गनाइजेशन (ए.आई.टी.सी.एस.ओ.), इंडियन रेलवे लोको रनिंगमेन्स ऑर्गनाइजेशन (आई.आर.एल.आर.ओ.), लोक राज संगठन और पुरोगामी महिला संगठन के नेताओं ने भी सभा को संबोधित किया।
अधिकांश स्टेशन मास्टर ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (ए.आई.एस.एम.ए.) के बैनर तले संगठित है। ए.आई.एस.एम.ए., स्टेशन मास्टरों की सेवा शर्तों से संबंधित तथा लंबे समय से चली आ रही उनकी मांगों (बॉक्स देखें) के समाधान के लिए संघर्ष करती आ रही हैं। स्टेशन मास्टरों ने अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिये अधिकारियों को पत्र लिखे, ज्ञापन दिये, कई स्थानों पर धरना प्रदर्शन आयोजित किये, काले बैज लगाकर काम किया और रात की पाली में काम करते समय मोमबत्तियां जलाईं। रेल सेवाएं प्रभावित न हों, यह सुनिश्चित करते हुए उन्होंने अपना आंदोलन जारी रखा है। हालांकि, अधिकारियों ने उनकी मांगों को अनदेखा तथा अनसुना किया है और उन्होंने स्टेशन मास्टर्स की शिकायतों को दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया है। इन परिस्थितियों में, ए.आई.एस.एम.ए. ने 31 मई, 2022 को एक दिन की हड़ताल का नोटिस दिया था। उन्होंने यात्रियों को इस बात की चेतावनी देने का ध्यान भी रखा था ताकि उनकी हड़ताल से लोगों को कम से कम असुविधा हो।
कामरेड धर्मवीर सिंह अरोड़ा (ए.आई.एस.एम.ए. के मध्य रेलवे के जोनल अध्यक्ष) ने स्टेशन मास्टरों की हड़ताल की आह्वान के समर्थन में के.ई.सी. द्वारा आयोजित इस जनसभा के लिए धन्यवाद दिया और उन्होंने सभी यूनियनों और फेडरेशनों को धन्यवाद दिया। स्टेशन मास्टर हड़ताल के अपने आह्वान को लागू ज़रूर करेंगे, इस डर के कारण रेलवे प्रबंधन को ए.आई.एस.एम.ए. के साथ, उनकी मांगों पर बातचीत करने के लिए सहमत होना पड़ा। बातचीत का पहला दौर 23 मई को आयोजित किया गया था और अगले दौर की बातचीत के लिये 30 मई का दिन निर्धारित किया गया था। इन घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए, ए.आई.एस.एम.ए. ने 31 मई की हड़ताल को स्थगित करने का निर्णय लिया।
कामरेड अरोड़ा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्टेशन मास्टरों का संघर्ष सभी श्रेणिायों के कर्मचारियों का संघर्ष है क्योंकि रेलवे के सभी कर्मचारी अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। स्टेशन मास्टरों ने रिक्तियों के मुद्दे को उठाने का फ़ैसला किया क्योंकि यह मुद्दा सभी कर्मचारियों को प्रभावित करता है। हालांकि बेरोज़गारी बढ़ रही है, लेकिन रिक्त पदों को भरने के लिए कोई क़दम नहीं उठाए जा रहे हैं। स्टेशन मास्टरों के लगभग 20 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं; लगभग 6,800 पदों पर भर्तिया किये जाने की ज़रूरत है।
पदों के खाली रहने के कारण, मौजूदा स्टेशन मास्टरों पर काम का बोझ काफी बढ़ गया है। इसके परिणामस्वरूप उनके ऊपर मानसिक तनाव बढ़ रहा है, आराम की कमी है, कोई छुट्टी नहीं है, एक शिफ्ट में 12 घंटे काम करना पड़ता है, सभी को बढ़ती निराशा का सामना करना पड़ रहा है। इसका प्रभाव उनके निजी और पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है। कार्यभार बढ़ने के अलावा, रेलवे बोर्ड ने 43,600 रुपये से अधिक मूल-वेतन वाले कर्मचारियों के लिए रात्रि ड्यूटी भत्ता (एन.डी.ए.) देने पर भी रोक लगा दी। यहां तक कि रेलवे बोर्ड ने 2017 से दिए जा रहे भत्ते की वापस वसूली की भी कोशिश की। मज़दूरों के विरोध के चलते यह वसूली रोकनी पड़ी। एन.डी.ए. के बंद होने से सभी रेल कर्मचारियों पर इसका बुरा असर पड़ा है. 1969 के ट्रिब्यूनल के निर्णय के अनुसार ही, रेल कर्मचारियों को एन.डी.ए. का भुगतान किया गया था। एन.डी.ए. की सुविधा सभी कर्मचारियों को मिलनी चाहिए लेकिन जब इस मुद्दे के बारे में रेलवे बोर्ड से पूछा जाता है, तो बोर्ड का कहना है कि यह मामला कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डी.ओ.पी.टी.), वित्त मंत्रालय, व्यय विभाग आदि के पास गया है।
यद्यपि स्टेशन मास्टर 01 जनवरी, 2016 से 4200 पे-ग्रेड की संशोधित सुनिश्चित कैरियर प्रगति (एम.ए.सी.पी.) योजना के हक़दार हैं, बिना किसी संतोषजनक स्पष्टीकरण के यह सुविधा उनको केवल 16 फरवरी, 2018 से ही दी गयी है।
स्टेशन मास्टर सुरक्षा तथा मानसिक तनाव भत्ते की मांग भी कर रहे हैं। वे 160-170 प्रतिशत की अतिरिक्त क्षमता पर ट्रेनें चलाते हैं। बंबई डिवीजन में अब चार के बजाय छह लाइनें हैं। इन लाइनों पर 1,000 की जगह 1,400 ट्रेनें चल रही हैं। इस बढ़ते कार्यभार को देखते हुए स्टेशन मास्टर, सुरक्षा और मानसिक तनाव भत्ते की मांग कर रहे हैं।
के.ई.सी. के महासचिव कामरेड मैथ्यू ने अपने संबोधन में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि स्टेशन मास्टरों की मांगें सभी रेलवे कर्मचारियों की मांगों को दर्शाती हैं। रिक्त पदों को तुरंत भरने का मुद्दा, पूरे सार्वजनिक क्षेत्र के लिये और सरकारी क्षेत्र के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। रेलवे में 3.3 लाख पद खाली पड़े है, जिन पर वर्षों से भर्ती नहीं की गई है। सत्ता में कोई भी पार्टी या गठबंधन हो, खाली पदों को भरने का किसी भी सरकार का कोई इरादा नहीं है। बड़ी संख्या में खाली पड़े पद सेवाओं के स्तर में गिरावट का कारण बनते हैं। इस गिरावट का इस्तेमाल करके सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े मज़दूरों को बदनाम करने और निजीकरण को बढ़ावा देने का मौका मिलता है। यह रणनीति न सिर्फ हिन्दोस्तान में बल्कि दुनियाभर में लागू की गई है। स्टेशन मास्टरों की यह लड़ाई, देश के सभी मज़दूरों और आम लोगों की लड़ाई भी है।
उन्होंने बताया कि के.ई.सी. ने कई वर्षों से रेल मज़दूरों को एकजुट करने और पूरे मज़दूर वर्ग की एकता के लिए लगातार काम किया है।
विभिन्न विभागों के संगठनों के नेताओं ने, ए.आई.एस.एम.ए. को बधाई दी, अपना समर्थन देने का वादा किया तथा उन्होंने के.ई.सी. को उसके अथक परिश्रम और समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।
ए.आई.एल.आर.एस.ए. के कामरेड के.सी. जेम्स ने लोको रनिंग स्टाफ और स्टेशन मास्टरों सहित प्रत्येक श्रेणी में 25 से 30 प्रतिशत रिक्त पदों को न भरने से होने वाले दुष्परिणामों से लोगों को अवगत कराया। कई स्टेशनों पर चार की जगह दो ही स्टेशन मास्टर तैनात हैं। केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों के लिए, दिए जाने वाले रात्रि ड्यूटी भत्ता (एन.डी.ए.) पर भी एक सीमा है। हालांकि, 1969 के ट्रिब्यूनल ने रेलवे कर्मचारियों को बिना किसी सीमा के एन.डी.ए. देने के फ़ैसले का अनुमोदन किया। अब रेल प्रशासन ने पहले के इन नियमों का उल्लंघन कर सीलिंग-लिमिट लागू करने का फ़ैसला लिया है। कामरेड जेम्स ने बताया कि रेलवे में काम का बोझ दिन के मुक़ाबले रात में ज्यादा होता है, क्योंकि रात में ज्यादा ट्रेनें चलती हैं।
श्री चंदन चतुर्वेदी (ए.आई.टी.सी.ए. के महासचिव) ने बताया कि ट्रेन नियंत्रकों के रिक्त पदों की संख्या इतनी ज्यादा है कि प्रशासन के पास इसे भरने का कोई उपाय नहीं है। स्टेशन मास्टर और गार्ड्स को नियंत्रकों का काम भी करने के लिए मजबूर किया जा रहा हैं। हालात ये हैं कि हर कैटेगरी के कर्मचारियों के बीच, खाली पद पड़े हैं। हालत इतनी संगीन है कि प्रशासन एक वैकेंसी-बैंक बनाता है और फिर रिक्त पदों को भरने के बजाये उन्हें रद्द कर देता है। हाल ही में 91,000 पदों को समाप्त कर दिया गया है। इसके अलावा, 50 प्रतिशत गैर-सुरक्षा पदों को, जिनको समाप्त किया जायेगा, इन पदों की पहचान की गई है।
श्री चतुर्वेदी ने सुझाव दिया कि सभी श्रेणी के फेडरेशनों की एक संयुक्त समिति का गठन किया जाना चाहिए जो एक सांझा एजेंडा तैयार करें और भारतीय रेल की सभी श्रेणियों को इस आम एजेंडा पर सहमती बनानी चाहिए ताकि किसी भी श्रेणी के कर्मचारियों की मांग किसी दूसरी श्रेणी के कर्मचारियों के खि़लाफ़ न हो।
श्री कांता राजू (ए.आई.आर.टी.यू. के महासचिव) ने अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद, इस बैठक में हिस्सा लिया और उन्होंने बताया कि विभिन्न डिविजनों के ए.आई.आर.टी.यू. सदस्यों ने स्टेशन मास्टरों की हड़ताल के समर्थन में पत्र लिखे हैं। उन्होंने इस हक़ीक़त की भी सराहना की कि सभी श्रेणीवार फेडरेशन स्टेशन मास्टरों के संघर्ष का समर्थन कर रहे हैं और ट्रैक-मेन्टेनर्स के लिये समर्थन का अनुरोध किया। ट्रैक मेंटेनर बहुत ही असुरक्षित परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, जिसके कारण हर दिन एक या दो ट्रैक मेंटेनर मौत का शिकार हो रहे हैं। ए.आई.आर.टी.यू. ने रेलवे बोर्ड को पत्र लिखे हैं, सोशल मीडिया पर अभियान चलाए हैं और अपनी मांगों को प्रधानमंत्री और रेलमंत्री को भी भेजा है, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है। उन्होंने सभी श्रेणी की फेडरेशनों और के.ई.सी. से एक ऐसी बैठक आयोजित करने का अनुरोध किया जहां पर लोग एक दूसरे से इन-परसन फिजिकल मीटिंग में मिल सकें और जहां रिक्त पदों और उन पदों को समाप्त करना, निजीकरण और श्रम कानूनों में बदलाव जैसी सामान्य मांगों पर चर्चा की जा सके।
डॉ. हेमंत सोनी (आई.आर.टी.सी.एस.ओ. के महासचिव) ने बताया कि आई.आर.टी.सी.एस.ओ. के एक प्रतिनिधि ने एन.डी.ए. के संबंध में डी.ओ.पी.टी. के अधिकारियों से भी मुलाक़ात की। डी.ओ.पी.टी. के अधिकारियों ने बताया कि उनका आदेश, रेलवे पर लागू नहीं होता है। जब आई.आर.टी.सी.एस.ओ. के प्रतिनिधियों ने रेल प्रशासन से मुलाक़ात की तो उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। ए.आई.टी.सी.एस.ओ. ने तब एक क़ानूनी नोटिस जारी किया और इसके जवाब में उन्हें बताया गया कि रेलवे बोर्ड, एन.डी.ए. का भुगतान जारी रखना चाहता है लेकिन आदेश वित्त मंत्रालय को भेज दिया गया है। हालांकि, सवाल यह उठता है कि अगर वित्त मंत्रालय ने एन.डी.ए. को रोकने का आदेश नहीं दिया है तो रेलवे बोर्ड को एन.डी.ए. को फिर से शुरू करने के लिए उनकी अनुमति की आवश्यकता क्यों है?
डॉ. सोनी ने सभी से अनुरोध किया कि अपनी मांगों का एक संयुक्त चार्टर तैयार करके रेल मंत्रालय को देने के लिए सभी श्रेणीवार फेडरेशनों की एक संयुक्त बैठक आयोजित की जानी चाहिए। अगली बार, सभी श्रेणी के संगठनों को आकस्मिक सामूहिक अवकाश की सूचना देनी चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम अपनी ताक़त को दिखा सकेंगे और अपनी मांगों को हासिल करने में सक्षम होंगे। उन्होंने घोषणा की कि आई.आर.टी.सी.एस.ओ. पहली मीटिंग की मेजबानी करने के लिए तैयार है।
श्री अमजद बेग (ए.आई.पी.एम.ए. के केंद्रीय अध्यक्ष) ने बताया कि ए.आई.पी.एम.ए. का गठन चार मुख्य मांगों को लेकर किया गया था – नई पेंशन योजना को हटाना, पॉइंटमैन के लिए चार ग्रेड वेतन संरचना की शुरुआत, जोखिम और सुरक्षा भत्ता की बहाली और 48 घंटे की ड्यूटी का रोस्टर।
श्री नवीन कुमार (भारतीय रेलवे एस. एंड टी. मेंटेनर्स यूनियन) ने बताया कि वे अन्य नेताओं के सुझावों से सहमत हैं और सभी श्रेणी की फेडरेशनों को एकजुट होना चाहिए।
आई.आर.एल.आर.ओ. के कार्यकारी अध्यक्ष श्री संजय पांधी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें अपनी एकता को मजबूत करना होगा और एक दूसरे का समर्थन करना होगा।
सभी नेताओं के भाषण के बाद कामरेड अशोक कुमार ने कुछ वीडियो दिखाए। इन विडियो में आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (ए.आई.पी.ई.एफ.) और नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज एंड इंजीनियर्स (एन.सी.सी.ओ.ई.ई.ई.) के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे और बैंक एम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष कामरेड सी.जे. नंदकुमार ने 22 मई, 2022 को ऑल इंडिया फोरम अगेंस्ट प्राइवेटाइजेशन (ए.आई.एफ.ए.पी.) की होने वाली बैठक में, आल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (ए.आई.एस.एम.ए.) के संघर्ष को अपना समर्थन दिया। इसके बाद और सहभागियों को अपने विचार रखने के लिए बुलाया गया।
श्री कामेश्वर राव (जोनल-अध्यक्ष, ए.आई.आर.ई.सी./दक्षिण मध्य क्षेत्र और संपादक, रेल-शक्ति), श्री बैद्यनाथ साहा (मंडल सचिव, ए.आई.एस.एम.ए., विजयवाड़ा, दक्षिण मध्य रेलवे), श्री शरदचंद्र पुरोहित, (महासचिव, ए.आई.एस.एम.ए., उत्तर पश्चिम रेलवे), श्री के.सी. मीणा (मीडिया प्रमुख, उत्तर रेलवेमेंस यूनियन), श्री अशोक कुमार पांडे (वरिष्ठ यातायात प्रशिक्षक, जेड.आर.टी.आई., पूर्वी तट रेलवे, मुजफ्फरपुर), श्री महेंद्र गुप्ता (ट्रैक मेंटेनर), श्री ए.एन. तिवारी (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आइस्मा), डॉ. संजीवनी जैन (उपाध्यक्ष, लोक राज संगठन) और सुश्री रिया (पुरोगामी महिला संगठन की कार्यकर्ता) ने अपने विचार व्यक्त किए।
बड़ी संख्या में नेताओं और कार्यकर्ताओं ने स्टेशन मास्टरों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने ”एक पर हमला सब पर हमला है!“ की भावना से परिवारों और लोगों को बड़े पैमाने पर शामिल करने की आवश्यकता के बारे में बात की।
एक वक्ता ने बताया कि अधिक काम और अत्यधिक तनाव के कारण रेल कर्मचारियों पर और उनके परिवारों पर तो इसका बुरा असर पड़ता ही है पर इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि रेल कर्मचारियों पर इस बोझ और तनाव के कारण, ट्रेन से यात्रा करने वाले सभी लोगों की सुरक्षा ख़तरे में पड़ती है। इसलिए रेल मज़दूरों के सघर्ष में करोड़ों लोगों का समर्थन जुटाना ज़रूरी है। इससे उनकी ताक़त कई गुना बढ़ जाएगी। बड़ी संख्या में खाल पदों पर नियुक्ति का होना और ठेकराकरण, हमारी भावी पीढ़ियों सहित पूरे मज़दूर वर्ग पर एक ख़तरनाक हमला है।
एक महत्वपूर्ण बिंदु पर भी प्रकाश डाला गया – जब हम अपने तीत्कालिक अधिकारों के लिए लड़ते हैं, तो हमें इस व्यवस्था और चुनाव प्रणाली पर भी गंभीरता से सवाल उठाना चाहिए, जिसके द्वारा चुने गए लोग, केवल नाम के लिए हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हक़ीक़त में इसके विपरीत वे कॉर्पोरेट इजारेदारों के लिए काम करते हैं और लोगों के खि़लाफ़ काम करते हैं। इस व्यवस्था में हमारे पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जिसके द्वारा हम उन प्रतिनिधियों को लोगों के प्रति जबाबदेही बना सकते हैं।
बैठक एक बहुत ही सकारात्मक नोट पर समाप्त हुई, जिसमें सभी ने अपनी एकता और अधिकारों के लिए संघर्ष को मजबूत करने का एक दृढ़ संकल्प किया।
स्टेशन मास्टरों की मांगें
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