ऑपरेशन ब्लूस्टार की 38वीं बरसी पर:
स्वर्ण मंदिर पर सैनिक हमले से सबक

6 जून, 2022 को हिन्दोस्तानी सेना द्वारा अमृतसर में स्वर्ण मंदिर पर किये गये हमले की 38वीं बरसी है। ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के नाम से किये गए उस हमले में सैकड़ों बेकसूर पुरुष, स्त्री और बच्चे मारे गए थे।

ऑपरेशन ब्लूस्टार का आरंभ 1 जून, 1984 को हुआ था। उसके अगले दिन पंजाब में सैनिक शासन लागू कर दिया गया था। पंजाब की सरहदों को बंद कर दिया गया था। पंजाब में सेना की कम से कम 7 डिवीजनें तैनात की गई थीं। स्वर्ण मंदिर पर घेराबंदी कर दी गयी थी। सेना छः दिनों तक स्वर्ण मंदिर परिसर पर गोलियां चलाती रही। अंत में, 6 जून को सेना ने स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त कराने के बहाने के साथ, स्वर्ण मंदिर के परिसर में प्रवेश किया।

स्वर्ण मंदिर पर हमला करने का आदेश क्यों दिया गया था? उसका असली मक़सद क्या था? उसे किस के हित के लिए किया गया था? यह ज़रूरी है कि लोग इन बातों को समझें, ताकि हम इस प्रकार की त्रासदियों को बारबार होने से रोक सकें।

हमें याद रखना होगा कि धर्म स्थल पर सैनिक हमले का आदेश देने के उस कभी न माफ़ किये जाने लायक अपराध को जायज़ ठहराने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐलान किया था कि उनकी सरकार के सामने “कोई और चारा नहीं था”। सरकार ने दावा किया था कि उसे यह सूचना मिली थी कि स्वर्ण मंदिर में इकट्ठे हुए “सिख आतंकवादियों” ने आधुनिकतम हथियार इकट्ठे कर लिए थे और वे धर्म के आधार पर देशभर में बड़े पैमाने पर लोगों का क़त्लेआम करने की साज़िश रच रहे थे। अब यह साबित हो चुका है कि सरकार का वह बहाना सरासर झूठा था। बीते 38 वर्षों में उसका कोई सबूत नहीं दिया गया है।

यह सच नहीं है कि कुछ हथियारबंद गिरोह देशभर में सांप्रदायिक क़त्लेआम आयोजित करने की साज़िश रच रहे थे। वह हुक्मरान वर्ग और उसका राज्य ही थे, जो लोगों की एकता को तोड़ने के लिए ख़ास संप्रदायों को निशाना बनाकर उन पर हिंसा फैलाने की साज़िश रच रहे थे। उस घिनावनी साज़िश को अंजाम देने के लिए हुक्मरानों ने बरतानवीअमरीकी साम्राज्यवाद के साथ नज़दीकी से सांठगांठ बनाकर काम किया था। आगे की गतिविधियों से यही साबित हुआ है।

1980 का दशक एक ऐसा समय था जब देशभर में लोगों का असंतोष उभर कर आगे आ रहा था। देशभर में मज़दूर पूंजीवादी अतिशोषण के खि़लाफ़ संघर्ष कर रहे थे। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और अन्य राज्यों के किसान अपनी फ़सल के लिए लाभकारी दामों की मांग कर रहे थे। पंजाब, असम, कश्मीर और अन्य राज्यों के लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों को पूरा करने की मांग उठाई जा रही थी। नदियों के पानी और दूसरे प्राकृतिक संसाधनों के वितरण के मुद्दों पर भी संघर्ष चल रहे थे।

बीते सालों में सरमायदारों ने “समाजवादी नमूने का समाज” बनाने तथा “ग़रीबी हटाओ”, जैसे नारों के साथ मज़दूरों और किसानों को बेवकूफ़ बनाया था। सरमायदारों के ये पुराने नारे लोगों के गुस्से को ठंडा करने में अब क़ामयाब नहीं हो रहे थे। इजारेदार पूंजीवादी घराने इस प्रकार के नारे देकर, आज़ादी के समय से अपनी अमीरी को बढ़ा रहे थे, परंतु अब उन्हें न सिर्फ मज़दूरों और किसानों के विरोध, बल्कि कई अन्य संपत्तिवान तबकों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा था।

वह ऐसा समय था जब राष्ट्रपति रोनल्ड रेगन के शासन में अमरीका तथा प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के शासन में ब्रिटेन खुलेआम दबाव डाल रहे थे कि पूंजी और सामग्रियों के निर्यात के मुक्त प्रवाह के लिए, सभी राष्ट्रों द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों को घटा दिया जाये और सभी देशों में सार्वजनिक सेवाओं को ख़त्म करके उनका निजीकरण किया जाए। सोवियत संघ घोर संकट में फंसा हुआ था। अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने से उसका यह संकट और भी बढ़ गया था। हिन्दोस्तान पर नियंत्रण करने और अपना वर्चस्व जमाने के लिए, दोनों महाशक्तियों के बीच की स्पर्धा तीखी हो रही थी।

देश के इजारेदार पूंजीवादी घरानों के सामने, हिन्दोस्तानी संघ पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने तथा साथ ही साथ, इन बदलते हालातों में एक नया रास्ता अपनाने की चुनौती थी। उन्हें अपनी हुकूमत के खि़लाफ़, न सिर्फ मज़दूरों और किसानों के, बल्कि कुछ सम्पत्तिवान तबकों के, प्रतिरोध को भी कमज़ोर करने और कुचलने की ज़रूरत थी।

अपने इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए हिन्दोस्तान के हुक्मरान वर्ग ने एक पैशाचिक योजना को लागू किया। उन्होंने बड़े सुनियोजित तरीक़े से अपने एजेंटों के ज़रिए जन आंदोलन के अंदर आतंकवाद फैला दिया। राज्य की खुफ़िया एजेंसियों ने अलगअलग राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं के क़त्लेआम तथा बसों और बाज़ारों में प्रवासी मज़दूरों के क़त्लेआम को अंजाम दिया, और फिर उनके लिए सिखों को दोषी ठहराया। जिस समुदाय के लोगों को हिन्दोस्तान का रक्षक बताकर सराहा जाता था, अब उन्हें देश का दुश्मन बताया जाने लगा। उन्हें आतंकवादी, रूढ़ीवादी, अलगाववादी, इत्यादि करार दिया गया। बरतानवीअमरीकी साम्राज्यवाद और हिन्दोस्तान के हुक्मरान वर्ग ने मिलजुल कर इस अभियान को अंजाम दिया। मार्गरेट थैचर की ब्रिटिश सरकार की खुफ़िया एजेंसियों ने हिन्दोस्तानी खुफ़िया एजेंसियों के साथ मिलकर, गुप्त रूप से काम करके, स्वर्ण मंदिर पर हमले की योजना बनाई थी।

हुक्मरान वर्ग ने स्वर्ण मंदिर पर हमले की निंदा करने वाले सभी लोगों पर यह झूठा इल्जाम लगाया कि वे आतंकवाद के समर्थक हैं और राष्ट्रीय एकता के दुश्मन हैं। इसके साथ ही साथ, हुक्मरानों ने नवंबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को बहाना बनाकर, सिखों के जनसंहार को आयोजित किया था तथा अंजाम दिया था।

सभी धर्मों के लोग राज्य द्वारा आयोजित इस जनसंहार के पीड़ितों की हिफ़ाज़त करने के लिए आगे आये। राजकीय आतंकवाद और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा के खि़लाफ़ जनविरोध को कुचलने के लिए, राज्य ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां अधिनियम (टाडा) को पास किया। उस क़ानून के अनुसार, तथाकथित संदिग्ध आतंकवादियों को मनमानी से गिरफ़्तार करना और अनिश्चित काल तक उन्हें बंद रखना, इसे वैध घोषित कर दिया गया।

हुक्मरान वर्ग को बहुत डर है कि हिन्दोस्तान के लोग अपने धार्मिक और अन्य भेदभावों को एक तरफ करके, अपने सांझे दुश्मन के खि़लाफ़, अपने सांझे लक्ष्य के लिए, एकजुट हो जाएंगे। इसे रोकने के लिए हुक्मरान वर्ग ने राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा और राजकीय आतंकवाद को फैलाने के तौरतरीक़ों में कुशलता हासिल कर ली है। अलगअलग समय पर राज्य अलगअलग समुदायों को निशाना बनाता है। पहले तो निशाना बनाए गए समुदाय के खि़लाफ़ राज्य बहुत ही जहरीला प्रचार फैलाता है और उसके बाद, बड़े सुनियोजित तरीक़े से उस समुदाय पर हमले करवाता है। उसके बाद राज्य यह झूठा प्रचार फैलाता है कि अलगअलग धर्मों के लोग एक दूसरे का क़त्ल कर रहे हैं।

आज हिन्दोस्तान में जो संघर्ष चल रहा है, उसमें एक तरफ इजारेदार पूंजीपतियों की अगुवाई में मुट्ठीभर शोषक हैं, और दूसरी तरफ, मज़दूर वर्ग की अगुवाई में शोषित जनसमुदाय है। ऑपरेशन ब्लूस्टार का मक़सद था हमारे लोगों की एकता को ख़त्म कर देना और शोषणदमन के खि़लाफ़ हमारे संघर्ष को चकनाचूर कर देना।

हुक्मरान वर्ग की राजनीतिक पार्टियां यह ग़लत सोच फैलाती हैं कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए इजारेदार पूंजीपति और उनका राज्य नहीं, बल्कि कोई ख़ास राजनीतिक पार्टी ज़िम्मेदार है। यह सोचना ग़लत होगा कि सिर्फ कांग्रेस पार्टी ने ही ऑपरेशन ब्लूस्टार और 1984 में सिखों के जनसंहार को आयोजित किया था। इसी तरह, यह सोचना भी ग़लत है कि सिर्फ़ भाजपा और आर.एस.एस. ही इस समय सांप्रदायिक हिंसा और सभी प्रकार के राजकीय आतंकवाद के लिए ज़िम्मेदार हैं। यह हुक्मरान वर्ग का एजेंडा है कि लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटा जाए, इस या उस धर्म का हव्वा खड़ा किया जाए, ताकि राजकीय आतंकवाद को जायज़ ठहराया जा सके। हुक्मरान वर्ग जिस पार्टी को सरकार चलाने का काम सौंपता है, उस पार्टी को यह एजेंडा लागू करना पड़ता है।

हिन्दोस्तानी लोगों की एकता के लिए ख़तरा इस या उस धर्म के लोगों के रूढ़ीवादी विचारों से नहीं है। हमारे लोगों की एकता को ख़तरा पंजाब, असम, कश्मीर, मणिपुर, तमिलनाडु या किसी और जगह के लोगों के अपने राष्ट्रीय अधिकारों के लिए किये जा रहे संघर्ष से नहीं है। हमारे लोगों की एकता को ख़तरा शोषण और दमन के खि़लाफ़ लड़ने वाले मज़दूरों और किसानों से नहीं है। हमारी एकता को ख़तरा है हुक्मरान वर्ग और उसके राज्य से और साम्राज्यवाद से। हमारी एकता को ख़तरा इस बात से है कि हिन्दोस्तानी राज्य सामंतवाद और उपनिवेशवाद के अवशेषों तथा पूंजीवाद और साम्राज्यवाद की हिफ़ाज़त करता है। हमारी एकता को ख़तरा इस बात से है कि हिन्दोस्तानी राज्य की बुनियादें ही सांप्रदायिक हैं।

जब तक यह राज्य मौजूद रहेगा, तब तक यह हमारे लोगों की एकता और शोषणदमन व अन्याय के खि़लाफ़ हमारे एकजुट संघर्ष के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बना रहेगा। ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद के 38 वर्षों का अनुभव बारबार यही साबित करता है। सरमायदारों की हुक्मशाही का वर्तमान राज्य ‘बांटो और राज करो’ के असूल पर आधारित है। इसलिए, हमारे संघर्ष का लक्ष्य सरमायदारों के राज्य की जगह पर एक नया राज्य स्थापित करना है, जो सबको सुखसुरक्षा की गारंटी देगा और जिसमें सभी लोगों के मानव अधिकारों तथा लोकतांत्रिक अधिकारों की हिफ़ाज़त की जाएगी।

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