29 अप्रैल, 2022 को मंत्रीमंडल के आर्थिक मामलों की समिति ने पवन हंस लिमिटेड (पी.एच.एल.) में सरकार की 51 प्रतिषत हिस्सेदारी को खरीदने के लिए स्टार-9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा लगाई गई 211 करोड़ रुपये की बोली को मंजूरी दी। पी.एच.एल. राज्य की मालिकी वाली हेलीकॉप्टर सेवा है। स्टार-9 मोबिलिटी तीन कंपनियों – महाराजा एविएशन, बिग चार्टर और अल्मास ग्लोबल अपॉर्चुनिटी फंड का एक संघ है।
दो हफ्ते बाद, 16 मई को केंद्र सरकार ने पवन हंस में अपने हिस्से की बिक्री पर रोक लगाने के फ़ैसले की घोषणा की। इसका कारण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एन.सी.एल.टी.) की कोलकाता बेंच द्वारा अल्मास ग्लोबल नाम की केमैन आइलैंड स्थित कंपनी के बारे में उठाई गई आपत्तियां हैं। एन.सी.एल.टी. के अनुसार, अल्मास ग्लोबल जो कोलकाता स्थित दिवालिया हो गई कंपनी ई.एम.सी. लिमिटेड का अधिग्रहण कर रही थी, एक स्वीकृत समाधान योजना के तहत ई.एम.सी. लिमिटेड के लेनदारों के 568 करोड़ रुपये का भुगतान करने में विफल रही थी।
सरकार ने अब घोषणा की है कि वह पवन हंस की बिक्री में आगे बढ़ने से पहले “एन.सी.एल.टी. के आदेश की क़ानूनी जांच करेगी”।
पवन हंस एक राष्ट्रीय संपत्ति है। इसकी स्थापना 1985 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय और तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओ.एन.जी.सी.) के संयुक्त उद्यम के रूप में हुई थी। यह देश का सबसे बड़ा हेलीकॉप्टर सेवा प्रदाता है।
पवन हंस के पास 43 हेलीकॉप्टरों का बेड़ा है (जिनमें से 37 के चालू अवस्था में होने की सूचना है) जो कई महत्वपूर्ण सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करता है। इसका उपयोग तेल और गैस कंपनियों के अपतटीय संचालन में किया जाता है। यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप के बीच लोगों के परिवहन के लिये एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करता है। यह अरुणाचल प्रदेश के कई दूरस्थ और दुर्गम हिस्सों को और हिन्दोस्तान के उत्तर-पूर्व में अन्य राज्यों, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को जोड़ता है। यह पर्यटकों के साथ-साथ सरकारी कर्मियों की भी सेवा करता है।
पवन हंस प्राकृतिक आपदाओं के दौरान खोज और बचाव कार्यों के लिए अपने हेलीकॉप्टर भी प्रदान करता है, सीमा सुरक्षा बल और सीमा सड़क संगठन के लिए कर्मियों और सामग्री का परिवहन करता है, यह पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन को अपनी सेवाएं प्रदान करता है तथा और यह न केवल ओ.एन.जी.सी., बल्कि गेल और ऑयल इंडिया लिमिटेड की भी पाइपलाइनों की निगरानी करने में मदद करता है। पवन हंस हेलीकॉप्टरों को सुरक्षा बलों द्वारा नियमित रूप से तैनात किया जाता है और सरकारी एजेंसियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है।
इससे पहले, 14 मई को अखिल भारतीय नागरिक उड्डयन कर्मचारी संघ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका देकर अपील की थी कि पी.एच.एल. में सरकार की 51 प्रतिशत की संपूर्ण हिस्सेदारी की प्रस्तावित रणनीतिक बिक्री को रोका जाये।
उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुये, कर्मचारी संघ ने ज़ोर देकर कहा कि पी.एच.एल. लगातार एक आवश्यक सेवा की भूमिका निभा रहा है, इसलिए इसका निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और कुछ अन्य क्षेत्रों में लोगों के लिए राज्य के स्वामित्व वाले पवन हंस द्वारा वर्तमान में प्रदान की जाने वाली हेलीकॉप्टर सेवाओं की लागत पर भारी सब्सिडी दी जाती है। पवन हंस का निजीकरण, इन सेवाओं को एक ही झटके में अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर कर देगा।
पवन हंस लिमिटेड 2017-18 तक नियमित रूप से मुनाफ़ा कमा रहा था। पी.एच.एल. ने लगातार राज्य के लिए राजस्व अर्जित किया है और देश को महत्वपूर्ण सेवा प्रदान की है। पी.एच.एल. ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय, हिन्दोस्तान की सरकार और ओ.एन.जी.सी. को अब तक 245.51 करोड़ रुपये के लाभांश का भुगतान किया है, इसके अलावा इसकी कुल संपत्ति 984 करोड़ रुपये है।
जनवरी 2017 में सरकार ने पवन हंस लिमिटेड के निजीकरण की अपनी योजना की घोषणा की थी। तब से नागरिक उड्डयन मंत्रालय और पी.एच.एल. प्रबंधन इसे बर्बाद करने का रास्ता अपना रहे हैं, इसे घाटे में चल वाले उद्यम में बदल रहे हैं, ताकि इसे किसी निजी कंपनी को संभावित न्यूनतम क़ीमत पर बेचने का औचित्य सिद्ध किया जा सके।
कर्मचारियों ने घोषणा की है कि पी.एच.एल. की बिक्री का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की इस महत्वपूर्ण सेवा को एक ऐसी कंपनी को बेचने का विरोध किया है जिसके पास पी.एच.एल. द्वारा दी जाने वाली सेवाएं प्रदान करने की वाली कोई संपत्ति या क्षमता नहीं है।
शासक वर्ग के निजीकरण कार्यक्रम का उद्देश्य सामाजिक उत्पादन के सभी क्षेत्रों को इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने के अभियान के अधीन करना है। पी.एच.एल. के निजीकरण का उद्देश्य भारतीय रेल, कोल इंडिया, राज्य बिजली बोर्डों, पेट्रोलियम और अन्य भारी उद्योगों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों, आयुध कारखानों और अन्य सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण के समान ही है। इसका उद्देश्य है सामाजिक आवश्यकता की क़ीमत पर पूंजीवादी लालच को पूरा करना है। यह पूरी तरह से मज़दूरों के हितों के साथ-साथ राष्ट्रीय और सामाजिक हितों के ख़िलाफ़ है।
शासक वर्ग के निजीकरण के कार्यक्रम को हराने के संघर्ष के हिस्से के रूप में, सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को पवन हंस लिमिटेड के निजीकरण का विरोध करना चाहिए।