उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में 16 अप्रैल को लोगों के ख़िलाफ़ जो हिंसा फैलाई गई थी और इसके साथ-साथ, हाल के हफ्तों में मध्य प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, झारखंड और कर्नाटक में भी जो सांप्रदायिक हिंसा फैलाई गई है, उसे अलग-अलग धार्मिक समुदायों के आपसी झगड़ों के रूप में दर्शाया गया है। यह सोच-समझकर फैलाया गया, बहुत बड़ा झूठ है। इन सभी जगहों पर, लोगों ने साफ़-साफ़ बताया है कि हिंसा को फैलाने वाले हथियारबंद गुंडे अपने इलाके से नहीं थे। वे कहीं बाहर से लाए गए थे।
इनमें से किसी भी जगह पर, अलग-अलग धर्म के लोगों ने एक दूसरे पर हमला नहीं किया, एक दूसरे का क़त्ल नहीं किया। इसके विपरीत, लोग भड़काऊ गुंडों का विरोध करने के लिए और एक दूसरे को बचाने के लिए सड़कों पर निकल आए। इन सभी जगहों पर लोग बीते कई दशकों से, शांति और अमन-चैन के साथ मिलकर रहते आये हैं और आपस में सुख-दुख बांटते रहे हैं।
राज्य तंत्र तथा समाचार माध्यम और सोशल मीडिया पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल करके, हुक्मरान सरमायदार वर्ग बहुत बड़ा झूठ फैला रहा है। यह झूठी ख़बर फैलाई जा रही है कि अलग-अलग धर्मों के लोगों ने एक दूसरे पर हमला किया है।
दिल्ली और कई अन्य जगहों पर अधिकारियों ने पहले तो मेहनतकश लोगों को इस हिंसा के लिए दोषी ठहराया और उसके बाद उनकी दुकानों और घरों को तोड़ने के लिए बुलडोज़र भेज दिए। हुक्मरान वर्ग यह प्रचार कर रहा है कि वह “अवैध” झुग्गियों को इसलिए तोड़ रहा है क्योंकि ये झुग्गी-बस्तियां तरह-तरह के अपराधों के तथाकथित स्रोत हैं। हक़ीक़त तो यह है कि हुक्मरान पूंजीपति वर्ग और उनके राजनीतिक प्रतिनिधि ही इन झुग्गी- झोपड़ी कालोनियों को बसाते हैं, जहां मज़दूरों को अमानवीय हालातों में जीने को मजबूर किया जाता है। हुक्मरान सरमायदार वर्ग और उसके राजनीतिक नेता झुग्गी-झोपड़ियों की स्थापना इसलिए करते हैं ताकि पूंजीपतियों को सस्ते श्रम का अनवरत स्रोत उपलब्ध हो तथा राजनीतिक पार्टियों को बाहुबल का स्रोत उपलब्ध हो। इन बस्तियों के निवासी हुक्मरान वर्ग व उसकी राज्य की मशीनरी और उसकी राजनीतिक पार्टियों के दबाव के तले जीने को मजबूर होते हैं। दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों में ऐसी झुग्गी-झोपड़ी कालोनियों और पुनर्वास कालोनियों में रहने वाले अधिकतम मज़दूर सत्ता पर बैठी हुई ताक़तों के निरंतर दमन का शिकार बनकर जीते हैं। जब-जब पूंजीपति वर्ग चाहता है, तब- तब राज्य की मशीनरी इन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के घरों और संपत्तियों को उजाड़ देती है और उनकी ज़मीन को बड़े-बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स के हाथों सौंप देती है। फिर यह झूठा प्रचार फैलाया जाता है कि किसी खास समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, ताकि सभी मज़दूर एकजुट होकर उन मेहनतकशों की हिफ़ाज़त में आगे न आयें, जिनके घर तोड़े जा रहे हैं।
हिन्दोस्तान में जो संघर्ष चल रहा है, यह अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच में संघर्ष नहीं है। यह शोषकों और शोषितों के बीच में संघर्ष है। जनसमुदाय को शोषण और दमन के ख़िलाफ़ संघर्ष के रास्ते से भटकाने के लिए, हुक्मरान सरमायदार धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाने और लोगों को भड़काने की पूरी कोशिश करते रहते हैं।
बीते 75 वर्षों में इजारेदार पूंजीवादी घरानों की अगुवाई में सरमायदारों ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष हिन्दोस्तानी राज्य का इस्तेमाल करके, बड़े सुनियोजित तरीके से समाज के सभी तबकों के बीच में सांप्रदायिक ज़हर को फैलाया है। संविधान और देश के क़ानून मानवीय पहचान के बजाय, सांप्रदायिक पहचान को अहमियत देते हैं और जारी रखते हैं। सभी लोगों के साथ हिन्दोस्तानी नागरिक बतौर, समान बर्ताव नहीं किया जाता है। बल्कि “बहुसंख्यक समुदाय” या “अल्पसंख्यक समुदाय” के सदस्य होने के आधार पर, उनके धर्म के आधार पर, अलग-अलग लोगों के साथ अलग-अलग प्रकार का बर्ताव किया जाता है। देश के क़ानून और नीतियां दबे-कुचले लोगों को कुछ-थोड़ी राहत दिलाने के नाम पर, जातिवादी पहचान को भी बरकरार रखती हैं।
हिन्दोस्तानी राज्य, जिसमें संसदीय राजनीतिक पार्टियां, प्रशासन तंत्र और सुरक्षा बल, सभी शामिल हैं, वह नियमित तौर पर अलग-अलग लोगों के ख़िलाफ़ हिंसा का प्रयोग करता रहा है। हर ऐसे हिंसा-प्रयोग के दौर के बाद, हुक्मरान वर्ग का प्रचार-तंत्र लोगों को हिंसा के लिए दोषी बताता है। इस तरह हुक्मरान वर्ग ने हमेशा यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि हमारे देश के मज़दूर और किसान एकजुट होकर अपने सांझे दुश्मन के ख़िलाफ़ संघर्ष न कर पाएं।
राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा का शिकार न सिर्फ वे लोग होते हैं जिन्हें निशाना बनाया जाता है। बल्कि इस हिंसा का शिकार संपूर्ण मज़दूर वर्ग और सभी मेहनतकश लोग हैं, शोषकों और दमनकारियों के ख़िलाफ़ संघर्ष में लोगों की एकता है।
हिन्दोस्तान के हुक्मरान वर्ग ने अपनी भरोसेमंद पार्टियों के ज़रिए, अपने खुफिया एजेंसियों के ज़रिए और राज्य के सुरक्षा बलों के ज़रिए, सांप्रदायिक हिंसा को आयोजित करने के तरीकों में बहुत कुशलता हासिल कर ली है। बहुत सोचे-समझे तरीके से भड़काऊ नारे दिए जाते हैं, भड़काऊ हरक़तें की जाती हैं – जैसे कि मस्जिद के अंदर सूअर का मांस फेंक दिया जाता है, मंदिरों के अंदर गाय का मांस फेंक दिया जाता है या धार्मिक ग्रंथों को नष्ट किया जाता है। राज्य के एजेंट लोगों को भड़काने के लिए तरह-तरह की झूठी अफवाहें फैलाते हैं, जैसे कि 1984 में उन्होंने इस प्रकार की अफवाह फैलाई थी कि लोगों के पीने के पानी के कुंओं में ज़हर मिला दिया गया है।
हिंसक हमलों को अंजाम देने वाले गुंडों को राज्य की पूरी सुरक्षा मिलती है। ये गुंडे धार्मिक वेश धारण कर लेते हैं ताकि ऐसा लगे कि एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों पर हमला कर रहे हैं।
जब से हिन्दोस्तान आज़ाद हुआ है, उस समय से आज तक, हमने बार-बार राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक क़त्लेआम के अनेक कांड देखे हैं, जिनमें 1984 और 2002 के जनसंहार भी शामिल हैं। इस दौरान, कई अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को संभाला है, परंतु जनसंहार को आयोजित करने वालों को आज तक कोई सज़ा नहीं दी गई है। इससे साबित होता है कि ये जनसंहार हुक्मरान वर्ग के आदेश के अनुसार किये गए थे। ये जनसंहार “दंगे-फ़साद” नहीं थे, बल्कि लोगों के ख़िलाफ़ राज्य द्वारा आयोजित अपराध थे। सांप्रदायिक हिंसा आयोजित करना हुक्मरान सरमायदार वर्ग का एक पसंदीदा तरीका है, जिसके ज़रिए वह मज़दूरों, किसानों और सभी दबे-कुचले लोगों की एकता को चकनाचूर करता है।
हुक्मरान वर्ग को इस समय, उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिए भूमंडलीकरण के अपने कार्यक्रम के ख़िलाफ़ मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों के बढ़ते विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश मेहनतकश लोग अपने बढ़ते शोषण, बढ़ती बेरोज़गारी और बढ़ती महंगाई के कारण बहुत गुस्से में हैं। जन-विरोधों की ताक़त और इनमें जुड़ने वाले लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। अपने अजेंडे के ख़िलाफ़, मज़दूरों, किसानों और सभी दबे-कुचले लोगों के एकजुट विरोध को चकनाचूर करने के लिए, हुक्मरान वर्ग सांप्रदायिक हिंसा फैला रहा है।
साम्प्रदियाकता और सांप्रदायिक हिंसा को ख़त्म करने का संघर्ष सरमायदारों की हुकूमत और पूंजीवादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग और लोगों के संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है। इस संघर्ष को सरमायदारों की हुकूमत की जगह पर मज़दूरों और किसानों की हकूमत को स्थापित करने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ाना होगा। ऐसा करके ही हम उस नए समाज का निर्माण कर पाएंगे, जो हर प्रकार के शोषण और दमन से मुक्त होगा। ऐसा करके ही हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि सभी के ज़मीर के अधिकार की गारंटी दी जाएगी और अपने विचारों के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा या किसी पर हमला नहीं किया जाएगा।