खाद्य की सुरक्षा को लेकर जन सुनवाई

दिल्ली के अनेक महिला संगठनों ने मिलकर खाद्य सुरक्षा के विषय पर 18 दिसंबर को संसद मार्ग पर जन सुनवाई आयोजित की। इसमें सैकड़ों की संख्या में महिलाओं ने भाग लिया।

दिल्ली के अनेक महिला संगठनों ने मिलकर खाद्य सुरक्षा के विषय पर 18 दिसंबर को संसद मार्ग पर जन सुनवाई आयोजित की। इसमें सैकड़ों की संख्या में महिलाओं ने भाग लिया।

विदित रहे कि सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की मांग, जो देश के कोने-कोने से उठी है पर जिसे सरकार मानने को तैयार नहीं है, उसको लेकर देश के महिला संगठन संघर्ष में आगे रहे हैं। ये सभी संगठन सरकार की ‘फूड फॉर कैश’ की योजना से बहुत गुस्से में हैं। वे मांग कर रहे हैं कि सर्वव्यापी और बिना शर्त सार्वजनिक खाद्य वितरण व्यवस्था देश में लागू हो। प्रत्येक बच्चे, स्त्री और पुरुष को पर्याप्त मात्रा में व उचित दाम पर खाद्य मिलना चाहिये। खाद्य सिर्फ गेहूं, चावल और मोटे अनाज तक सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि इसमें अन्य पौष्टिकता के लिये आवश्यक चीजें भी शामिल होनी चाहिये।

जन सुनवाई में भाग लेने वाली महिलायें अपने हाथों में प्लाकार्ड पकड़ी हुयी थीं। उन पर लिखा था – ‘एपीएल, बीपीएल बंद करो, सभी को राशन की गारंटी दो!’, ‘विदेशी व्यापार और थोक व्यापार में निजी खिलाड़ी नहीं!’, ‘खाद्य व्यापार में बिचैलियों को हटाओ!’, किसानों से कृषि उत्पादों की खरीदी लाभदायक दाम पर सुनिश्चित हो!’, ‘खाद्य का वितरण जन समितियों के हाथ में हो!’, ‘शासन सत्ता अपने हाथ, जुल्म अन्याय करें समाप्त!’ इत्यादि।

जन सुनवाई के आयोजक महिला संगठन थे – पुरोगामी महिला संगठन, ए.आई.डब्ल्यू.ए., जे.पी.एम., एन.एफ.आई.डब्ल्यू. एस.एम.एस. और वाई.डब्ल्यू.सी.ए. आदि।

जन सुनवाई को संबोधित करते हुए, पुरोगामी महिला संगठन की प्रतिनिधि ने कहा कि सच तो यह है कि खाद्य के सर्वव्यापी अधिकार का असूल पूंजीवादी मुनाफाखोरों के हितों के खिलाफ़ है। खाद्य को एक सर्वव्यापी अधिकार की मान्यता देना तो दूर, पूंजीपतियों की सरकारें खाद्य के व्यापार से पूंजीवादी कंपनियों को प्राप्त होने वाले मुनाफों को बढ़ाने के तौर-तरीकों को और विस्तृत करने में व्यस्त रही हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार आबादी को ‘ए.पी.एल.’ और ‘बी.पी.एल.’ में बांटकर न सिर्फ खाद्य के अधिकार को सर्वव्यापी बनाने से इंकार कर रही है, बल्कि वह लोगों को बांट रही है।

उन्होंने कहा कि राज्य और शासक वर्ग की पार्टियां इस बंटवारे का फायदा उठाकर, वोट हासिल करने की राजनीति के आधार पर, किसी को अनुदान देती हैं तो किसी और को इससे वंचित करती हैं।

खाद्य की सुरक्षा मेहनतकश जनता के लिये तब हकीकत बनेगी जब खाद्य के व्यापार पर जनता व जन संगठनों का नियंत्रण होगा और जनता की खुशहाली, न कि मुनाफाखोरी, समाज की प्रेरक शक्ति होगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये हमें सघर्ष को तेज़ करना होगा, उन्होंने स्पष्ट किया।

सभी महिला संगठनों के वक्ताओं ने ‘फूड फॉर कैश’ योजना के लिए संप्रग सरकार की निंदा की।

महिला संगठनों ने मिलकर सर्वव्यापी और सार्वजनिक खाद्य वितरण के असूल को एक अधिकार बतौर मान्यता दिलाने के लिये संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *