कोरोना वायरस महामारी के दौरान मज़दूरों का बढ़ता शोषण

कोरोना वायरस महामारी का फ़ायदा उठाते हुए टाटा, अंबानी, बिरला, अदानी और अन्य इजारेदार घरानों के नेतृत्व में, सत्ता में बैठे पूंजीपति वर्ग ने, 2020 और 2021 के दौरान, मज़दूर वर्ग के खि़लाफ़, एक अभूतपूर्व हमले की शुरुवात की है।

बार-बार किए गए लॉकडाउन, सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण और पूंजीवादी श्रम कानून सुधारों का कुल मिलाकर नतीजा हमारे सामने है कि बड़े पैमाने पर नौकरियों ख़त्म हुई हैं और जिनके पास नौकरी बची भी हैं, उन मज़दूरों का शोषण और भी तेज किया गया है। उसी वेतन पर या पहले से भी कम वेतन पर, काम के लंबे घंटे और यहां तक कि मज़दूरों को उनके सबसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित किया जाना, अब एक आम बात हो गयी है। एक के बाद एक, हर कंपनी में काम करने की इस तरह की पद्धति को, अब एक जरूरी शर्त बतौर अपनाया जा रहा है।

2019-20 में, लॉकडाउन शुरू होने से एक साल पहले, लगभग 41 करोड़ व्यक्ति थे, जिनके पास रोजगार के साधन उपलब्ध थे, जिनमें से 22 करोड़ मज़दूर थे और 19 करोड़ स्व-नियोजित व्यक्ति, जो स्वयं अपना धंधा चला रहे थे, जैसे कि, किसान, कारीगर, व्यक्तिगत पेशेवर और दुकानदार। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) के अनुसार, काम पर रखे गए मज़दूरों में केवल 9 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारी थे और बाकी 13 करोड़ अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी थे।

दिसंबर 2021 तक, सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों वाले वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या घटकर 8 करोड़ से कम हो गई थी। दूसरे शब्दों में, पिछले दो वर्षों के दौरान, लगभग एक करोड़ वेतनभोगी नौकरियां ख़त्म हो गई हैं। विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) उद्योग में लगभग 98 लाख नौकरियां ख़त्म हो गई हैं, होटल और पर्यटन क्षेत्र में 50 लाख नौकरियां और शिक्षा क्षेत्र में 40 लाख नौकरियां ख़त्म हो गई हैं। खुदरा व्यापार और होम डिलीवरी से जुड़े क्षेत्रों में रोजगार, 78 लाख नौकरियों के साथ बढ़ा है। ये आंकड़े बताते हैं कि देश में रोजगार की हालातों में भारी बदलाव आया है – नियमित स्थायी नौकरियों की जगह अब लोग, अनियमित अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट नौकरी करने के लिए मजबूर है।

मज़दूर वर्ग की असुरक्षा बहुत बढ़ गई है। पूंजीपति इस स्थिति का फ़ायदा उठाकर अपने मज़दूरों से और अधिक अदत्त मज़दूरी के रूप में वसूली करके अपने मुनाफ़े और भी बढ़ा रहे हैं।

कोरोना वायरस फैलने के पहले से ही, अधिकांश अन्य देशों की तुलना में, हिन्दोस्तानी मज़दूर, हर हफ़्ते ज्यादा घंटे काम करते थे। 2018 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एन.एस.एस.ओ.) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, हिन्दोस्तानी शहरों में, मज़दूरों ने प्रति सप्ताह 54 घंटे काम किया, जो 43 घंटे के वैश्विक-औसत से कहीं अधिक है। हिन्दोस्तान में, लगभग 55 प्रतिशत ग्रामीण मज़दूर और 70 प्रतिशत शहरी मज़दूर, सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करते हैं, जो कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) द्वारा निर्धारित काम करने के समय की उच्चतम सीमा है।

पिछले दो वर्षों के दौरान, अधिकांश मज़दूरों के लिए हालातें और भी बदतर हो गई है। पहले से ही अधिक काम के घंटे, अब घर से काम करने के कारण और भी बढ़ गए हैं।

जबकि काम के घंटे बढ़ गए हैं, मज़दूरों के वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसके विपरीत, न केवल हिन्दोस्तान में बल्कि विश्व स्तर पर, श्रम से मिलने वाली आय को और भी नीचे धकेल दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार, कोरोना वायरस संकट के परिणामस्वरूप वैश्विक श्रम-आय में 10.7 प्रतिशत की गिरावट आई है।

सरकार ने 44 श्रम कानूनों के स्थान पर अब चार श्रम संहिताएं पारित की हैं। ये श्रम संहिताएं, मज़दूरों के शोषण को और भी तेज करने में पूंजीपति वर्ग को सक्षम बनाती हैं।

कुल मिलाकर, पूंजीपति वर्ग, जिसके हितों की रक्षा, हिन्दोस्तानी राज्य करता है और जिसका एजेंडा देश की सरकार लागू करती है, इस पूंजीपति वर्ग ने, कोरोना वायरस संकट का इस्तेमाल, मज़दूर वर्ग पर चौतरफा हमला करने के लिए किया है।

इन बढ़ते हमलों और अत्यधिक शोषण के खि़लाफ़, मज़दूरों में गुस्सा दिन पर दिन, बढ़ता जा रहा है। निजीकरण कार्यक्रम और मज़दूर विरोधी श्रम संहिता के खि़लाफ़ मज़दूरों के बीच एकता बढ़ रही है। बड़े उद्योगों और सेवाओं में, संघर्ष के दौरान मज़दूर यूनियनों के बीच, बड़े पैमाने पर, एकता और भी मजबूत हो रही है। मज़दूर यूनियनें, प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक पार्टियों और फेडरेशनों से जुड़े होने के बावजूद मिलकर संघर्ष कर रही हैं।

पूंजीवादी मीडिया यह सच मानने के लिए मजबूर है कि 2000 और 2021 के दौरान, हमारे देश के सबसे अमीर पूंजीपतियों के मुनाफ़ों में कई गुना वृद्धि हुई है। हालांकि, इन आंकड़े में जो हकीकत छिपी है वह यह है कि पूंजीवादी मुनाफ़ों में इतनी बड़ी वृद्धि का प्रमुख स्रोत मज़दूर वर्ग का तेज हो रहा शोषण है।

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