रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ 24 दिसम्बर, 2012 को एक शिखर सभा की। इन दोनों देशों के नेताओं के बीच यह 13वां वार्षिक शिखर सम्मेलन था। शीत युद्ध के दौर में, हिन्दोस्तान व सोवियत संघ के एक दूसरे के साथ रणनैतिक संबंध थे। परन्तु सोवियत संघ के पतन के बाद, करीब-करीब एक दशक के लिये रूस व हिन्दोस्तान के नेता अपनी-अपनी वैश्विक रणनीतियों को पुनः निर्धारित कर रहे थे। 19
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ 24 दिसम्बर, 2012 को एक शिखर सभा की। इन दोनों देशों के नेताओं के बीच यह 13वां वार्षिक शिखर सम्मेलन था। शीत युद्ध के दौर में, हिन्दोस्तान व सोवियत संघ के एक दूसरे के साथ रणनैतिक संबंध थे। परन्तु सोवियत संघ के पतन के बाद, करीब-करीब एक दशक के लिये रूस व हिन्दोस्तान के नेता अपनी-अपनी वैश्विक रणनीतियों को पुनः निर्धारित कर रहे थे। 1999 के अंत में पुतिन के सत्ता में आने के बाद रूस व हिन्दोस्तान ने अपनी रणनैतिक मैत्री का शीत युद्ध के बाद की नयी परिस्थिति में, फिर से बनाना शुरू किया। रूस के राष्ट्रपति का स्वागत करते हुये, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने पुतिन की “हिन्द-रूस रणनैतिक भागीदारी का प्रारंभिक निर्माता” बतौर विशेष रूप से प्रशंसा की।
शिखर सम्मेलन के दौरान, अनेक रणनैतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये, जिससे रणनैतिक संबंधों की बढ़ती मजबूती नज़र आती है। सबसे बड़ा सौदा परमाणु ऊर्जा संबंधित था। दिसम्बर 2011 को मॉस्को में हुये 12वें शिखर सम्मेलन में, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने रूसी राष्ट्रपति को कुडनकुलम परमाणु बिजलीघर को चालू करने का वचन दिया था। स्थानीय लोगों द्वारा भीषण विरोध के बावजूद, राज्य ने सर्वाधिक बल इस्तेमाल करके पहले परमाणु संयंत्र को चालू करवाना सुनिश्चित किया, जिससे जल्द ही बिजली पैदा होने की आशा है। 13वें शिखर सम्मेलन में रूस ने अगले 18 वर्ष में प्रत्येक वर्ष 1000 मेगावॉट बिजली पैदा करने वाला एक नया परमाणु बिजलीघर बनाने का वायदा किया है। प्रत्येक बिजलीघर पर ढाई अरब डॉलर की लागत लगेगी, यानि कि अगले 18 वर्षों में 45 अरब डॉलर के खर्चे से हिन्दोस्तान की परमाणु ऊर्जा क्षमता 20,000 मेगावॉट बढ़ जायेगी।
रूस की सैन्य टेक्नोलॉजी के लिये हिन्दोस्तान एक पसंदीदा बाजार रहा है। रूस व हिन्दोस्तान ने पांचवीं पीढ़ी के रेडार से बच निकलने वाले (स्टैल्थ) विमानों के अनुसंधान व विकास के लिये दोनों देशों ने 5.5 अरब डॉलर का निवेश करने का एक सौदा किया है। संयुक्त विकास के बाद लड़ाकू विमानों की पहली खेप 2022 में तैयार करने की योजना है। इन विमानों के लिये हिन्दोस्तान अनुमानित 35 अरब डॉलर का खर्चा करेगा। 71 एम.आई.-17वीं5 हेलिकॉप्टरों की खरीद के लिये 1.3 अरब डॉलर तथा 42 एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों के निर्माण के पुर्जे उपकरण समूह के लिये 1.6 अरब डॉलर के नये सौदे किये गये हैं।
हिन्दोस्तान व रूस ने, रूस तथा दूसरे देशों में तेल व गैस की खोज में सहयोग करने का फैसला किया है। हिन्दोस्तानी ओ.एन.जी.सी. विदेश लिमिटेड (ओ.वी.एल.) रूस में तेल व गैस की खोज का काम करती आयी है, और उसने रूस की इंपीरियल एनर्जी नामक कंपनी को खरीद लिया है। परन्तु रूस ने ओ.एन.जी.सी. द्वारा खोज के लिये दी टैक्स छूट को सिस्टेमा के लाइसेंस (सिस्टेमा हिन्दोस्तान में एम.टी.एस. के ब्रांड के नाम से टेलीकॉम सेवायें चलाती है) वापस मिलने से जोड़ दिया है। यह याद किया जा सकता है कि सिस्टेमा उन कंपनियों में से एक है जिनका लाइसेंस, 2जी घोटाले के बाद सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर, फरवरी 2012 में रद्द किया गया था। रूस मांग कर रहा है कि सिस्टेमा को लाइसेंस वापस मिलना चाहिये। एक और सौदे में, हिन्दोस्तान के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक ने रूसी प्रत्यक्ष निवेश निधि (आर.डी.आई.एफ.), जो अंग्रेजी मुद्रा में एक रूसी धन सम्पत्ति की निधि है, इसके साथ, दोनों देशों ने संयुक्त रूप से 2 अरब डॉलर के निवेश का समझौता किया है। इसके अतिरिक्त रूस ने हिन्दोस्तान को अंतरिक्ष संचार में मदद करने का समझौता किया है। जे.एस.सी. नेवीगेशन इंफार्मेशन सिस्टम्स (एन.आई.एस. ग्लोनास) ने भारत संचार निगम और महानगर टेलीफोन निगम के साथ, उपग्रहों के ज़रिये भूस्थापन दूरमापी (जियो पोजिशनिंग टेलीमेटिक्स) समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
पुतिन का दौरा, दोनों देशों द्वारा एशिया में अपनी भू-राजनीतिक रणनीतियों में और तालमेल लाने का मौका था। दोनों देशों के शासक वर्गों के अफग़ानिस्तान में एक समान रणनैतिक हित हैं। दोनों तालीबान के खिलाफ़ हैं और 2014 तक अमरीकी-नाटो सैनिकों की वापसी के बाद, अफग़ानिस्तान को रूस व हिन्दोस्तान के प्रभाव क्षेत्र में रख कर, पाकिस्तानी प्रभाव को सीमित रखना चाहते हैं। दोनों देशों ने ईरान व सीरिया में अमरीका द्वारा हुकूमत बदलाव के अजेंडे का विरोध किया है। पुतिन ने हिन्दोस्तान को शांघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ.) का पूर्ण सदस्य बनाने में रूस का सहयोग दोहराया है। हिन्दोस्तान एस.सी.ओ. का पूर्ण सदस्य बन कर सोवियत संघ के 4 पूर्व एशियाई गणतंत्रों, जो एस.सी.ओ. के सदस्य हैं, उनके साथ रणनैतिक भागीदारी बनाना चाहता है। रूस चाहता है कि हिन्दोस्तान एस.सी.ओ. का सदस्य बने ताकि सोवियत संघ के एशियाई पूर्व गणतंत्रों पर से चीनी साम्राज्यवाद के दबदबे का मुकाबला किया जा सके।
हिन्दोस्तान व रूस के बीच रणनैतिक संबंधों से दिखता है कि इन दोनों देशों के पूंजीपतियों के साम्राज्यवादी हितों के बीच समन्वय किया जा रहा है। इससे दिखता है कि दोनों देशों के पूंजीपति दुनिया को बहु-धु्रवीय बनाना चाहते हैं, जिसमें दूसरी साम्राज्यवादी शक्तियों से होड़ में और सहयोग में, हिन्दोस्तान व रूस अपने प्रभावी इलाकों को मजबूत कर सकें और उनका विस्तार कर सकें।