अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा सीरिया की संप्रभुता के जारी उल्लंघन की कड़ी निंदा करो
देशों व लोगों की स्वतंत्रता व संप्रभुता के सिद्धांत की पूरी तरह अवहेलना करते हुये, 12 दिसम्बर, 2012 को अमरीका ने “सीरियन क्रांतिकारी ताकतों के राष्ट्रीय गठबंधन” (विपक्ष) को सीरियाई लोगों के न्यायोचित प्रतिनिधि बतौर मान्यता दी। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि हाल में बनाई गयी “स
अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा सीरिया की संप्रभुता के जारी उल्लंघन की कड़ी निंदा करो
देशों व लोगों की स्वतंत्रता व संप्रभुता के सिद्धांत की पूरी तरह अवहेलना करते हुये, 12 दिसम्बर, 2012 को अमरीका ने “सीरियन क्रांतिकारी ताकतों के राष्ट्रीय गठबंधन” (विपक्ष) को सीरियाई लोगों के न्यायोचित प्रतिनिधि बतौर मान्यता दी। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि हाल में बनाई गयी “सीरियाई विपक्ष परिषद” अब “काफी सम्मिलित, प्रतिबिंबित तथा काफी प्रतिनिधित्वता” वाली हो गयी है जिसे अमरीकी समर्थन दिया जा सकता है। सीरियाई सरकार का तख्ता पलटने वाले बलों को काफी अरसे से चोरी-छुपे और खुल्लम-खुल्ला मदद देने के बाद ऐसा किया गया है।
इसके पहले नवम्बर 2012 में, बर्तानवी विदेश सचिव हेग ने साफ कर दिया था कि बर्तानवी की सरकार, अमरीका और नाटो देशों का उद्देश्य सीरिया में सत्ता परिवर्तन करना है। वे सीरियाई सरकार का विरोध करने वाले विभिन्न गुटों को एक साथ लाने का काम खुल्लम-खुल्ला कर रहे हैं ताकि उनके उद्देश्य की पूर्ती का साधन ज्यादा प्रभावशाली बने। अगस्त 2012 में यह सामने आया कि अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने अमरीकी खुफिया एजेंसियों को खुद एक आदेश दिया था कि सीरिया की सरकार की विरोधी ताकतों को चोरी छुपे मदद दी जाये। अतः आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादियों ने “सीरियाई विपक्ष परिषद” को प्रस्थापित करने में एक अहम भूमिका निभाई थी जिसे अमरीकी राष्ट्रपति अब मान्यता दे रहा है।
रूस व चीन जैसे बहुत से देशों ने ध्यान दिलाया है कि “सीरियाई विपक्ष परिषद” को सीरियाई लोगों का एकमात्र प्रतिनिधि बतौर मान्यता देना, जून 2012 के जिनीवा घोषणापत्र का भी उल्लंघन है, जिसमें सीरियाई राष्ट्रव्यापी चर्चा के बाद एक परिवर्तनकालीन सरकार बनाने का बुलावा दिया जाना था। उस वक्त संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थ श्री कोफी अन्नान ने कहा था कि सीरियाई सरकार में “मौजूदा सरकार के, विपक्ष के तथा दूसरे गुटों के सदस्य शामिल हो सकते हैं और इसे आपसी मंजूरी के आधार पर बनाना होगा।” उस वक्त विभिन्न देशों ने इस बात पर जोर दिया था कि सीरिया का प्रतिनिधित्व कौन कर सकता है यह बिना बाहरी हस्तक्षेप के सिर्फ सीरियाई लोगों को स्वयं करना चाहिये।
सीरिया की अस्साद सरकार की ईरान के साथ घनिष्ट मित्रता है और यह अमरीकी साम्राज्यवादियों व उनके मित्रों द्वारा पश्चिम एशिया के रणनैतिक व तेल-सम्पन्न इलाके में आधिपत्य जमाने की योजना में बाधा डालती है। आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादियों व उनके मित्र ईरान व सीरिया की सरकारों पर निशाना साधे हैं क्योंकि इन दोनों देशों की सरकारों ने पश्चिम एशिया में उनके साम्राज्यवादी मंसूबों का कड़ा विरोध किया है। आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी भरसक प्रयास कर रहे हैं कि इन देशों में सत्ता परिवर्तन करके ऐसी सरकारें आयें जो उनके प्रति ज्यादा अनुकूल रुख रखती हों।
आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी व उनके मित्र यह खोखला दावा करते हैं कि एक “तानाशाही” हुकूमत के खिलाफ़ “लोकतांत्रिक” हुकूमत के लिये सीरिया में दखलंदाजी आवश्यक है। परन्तु सिद्धांत का मुद्दा यह है कि किसी भी देश में कैसी राजनीतिक व्यवस्था होनी चाहिये, या एक देश में किस तरह की सरकार व नीतियां होनी चाहिये, इसका फैसला सिर्फ उस देश के लोगों को, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, हाथों में होता है। इस सिद्धांत का उल्लंघन साम्राज्यवादी बार-बार कर रहे हैं। इसके अलावा, साम्राज्यवादी अतीत में ईरान में शाह और चिली में पिनोशे जैसी बहुत सी तानाशाही हुकूमतों को खुले तौर पर समर्थन दे चुके हैं। पश्चिमी मीडिया ने खुलासे किये हैं जिससे यह दिखता है कि सीरियाई विपक्ष परिषद जिसे अब अमरीका मान्यता दे रहा है, उसके बहुत से घटकों ने राजनीतिक विरोधियों के कत्लेआम किये हैं, सीरिया की जनता पर हमलों में हिस्सा लिया है और उनमें से कुछ को तो अमरीका व उसके मित्रों ने पहले “आतंकवादी“ होने की घोषणा भी की है। यह साफ दिखाता है कि आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी पूरी तरह से सिद्धांतहीन हैं और सीरिया में जबरदस्ती हुकूमत बदलने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादियों को, किसी भी बहाने दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं है। सीरिया में हाल की उनकी कार्यवाइयों का सुस्पष्ट कड़ा विरोध होना चाहिये।