बलात्कार के खिलाफ़ सड़कों पर उतरे लोग

16 दिसम्बर की रात को दिल्ली में तेईस वर्षीय पैरा मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना को लेकर आक्रोशित लोग दिल्ली की सड़कों पर उतर आये।

दिल्ली ही नहीं, देश के कई शहरों और कस्बों में, महिलाओं के प्रति हिंसा को खत्म करने व इस पर रोक लगाने की मांग को लेकर, बड़े-बड़े प्रदर्शन और जुलूस आयोजित किये गये।

16 दिसम्बर की रात को दिल्ली में तेईस वर्षीय पैरा मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना को लेकर आक्रोशित लोग दिल्ली की सड़कों पर उतर आये।

दिल्ली ही नहीं, देश के कई शहरों और कस्बों में, महिलाओं के प्रति हिंसा को खत्म करने व इस पर रोक लगाने की मांग को लेकर, बड़े-बड़े प्रदर्शन और जुलूस आयोजित किये गये।

दिल्ली की गलियों और मुहल्लों में, रात्रि के समय, लोगों ने हाथों में मोमबत्तियां लेकर रैली निकाली और गुनहगारों को सज़ा देने की मांग की। इस दौरान जगह-जगह विरोध सभाएं आयोजित हुईं। महिलाओं की सुरक्षा में नाकाम रही सरकार के खिलाफ़ नारे लगाये गये और प्रदर्शन हुए।

महिलाओं के प्रति हर प्रकार की हिंसा के खिलाफ़ इस आंदोलन में लाखों नौजवान लड़के-लड़कियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

अलग-अलग पेशों से जुड़ी, पेशेवर महिलाओं ने अपने साथ होने वाली हिंसा को रोकने की मांग की। उनकी इस न्यायोचित मांग के समर्थन में पेशेवर पुरुष भी बहुसंख्या में आगे आये। वे महिलाओं के साथ हर प्रकार की हिंसा करने वाले अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिये जाने की मांग कर रहे थे।

सामूहिक बलात्कार के मामले की तेज़ सुनवाई कराने और आरोपियों को अधिक से अधिक सज़ा दिलाने के गृहमंत्री शिंदे के आश्वासन के बावजूद, प्रदर्शनकारियों का सरकार पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। वे जानते थे कि सत्ता पर जो बैठे हैं, वे इस परिस्थिति के लिये जिम्मेदार हैं। सबसे बड़ी दो राजनीतिक पार्टियां, कांग्रेस पार्टी और भाजपा, खुद ही महिलाओं के खिलाफ़ सबसे जघन्य अपराधों की दोषी हैं। इन पार्टियों के बहुत से नेता खुद महिलाओं के बलात्कार व अपहरण के दोषी हैं। इन्हीं पार्टियों के नेताओं ने 1984 में सिख नरसंहार तथा 2002 में मुस्लिम नरसंहार में महिलाओं का बलात्कार और उन पर अत्याचार करने के लिए गुंडों का नेतृत्व किया था।

लोग जानते हैं कि सत्ता में बैठे यही अपराधी हैं जो कश्मीर, पूर्वोत्तर, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा व अन्य प्रांतों में, सैनिकों को महिलाओं पर बलात्कार और ज्यादतियां करने की छूट देते हैं। मंत्री, अफसर, न्यायालय, सुरक्षा बल की मिलीभगत व समर्थन के बिना ऐसा संभव नहीं है।

सरकार के आश्वासनों के प्रति लोगों में अविश्वास और बढ़ते जन-विरोध को दबाने के लिए, हुक्मरान पार्टी ने परंपरागत तरीका अपनाया। इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में गड़बड़ी पैदा करने के लिए असामाजिक तत्वों का इस्तेमाल किया, ताकि ‘शांति और सुरक्षा’ के नाम पर, हमला किया जा सके। हुआ भी ठीक यही कि पुलिस ने पानी की बौछारों तथा आंसू गैस के गोले छोड़ने के साथ-साथ लाठी चार्ज भी किया। बड़ी संख्या में महिलाएं, लड़कियां और नौजवान घायल हुए हैं।

पूरी दिल्ली में धारा 144 को लागू कर दिया गया। यातायात के मुख्य साधन मेट्रो रेल के नौ स्टेशनों को बंद कर दिया गया। इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन के आस-पास कई किलोमीटर की परिधि तक सुरक्षा बल और पुलिस तैनात कर दिये गये। आपात्काल जैसी स्थिति पैदा करने के बावजूद, इंसाफ पाने के लिये लोगों के ज़जबात को सरकार कम न कर सकी।

25 दिसम्बर को मजदूर एकता लहर के संवाददाता जब जंतर-मंतर पर पहुंचे तो वहां पर कई दिनों से डटे हुए छात्र-छात्राएं पूरे उत्साह में थे। ‘महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा मुर्दाबाद!’, ‘एक पर हमला, सब पर हमला!’, ‘राजनीतिक अपराधीकरण पर रोक लगाओ’! आदि नारे गूंज रहे थे। प्रदर्शन में भाग ले रहे लोग महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान को लेकर सरकार से सवाल कर रहे थे। मंत्रियों की सुरक्षा हटाने और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग कर रहे थे।

प्रदर्शन कर रही पुरोगामी महिला संगठन की सदस्या ने मजदूर एकता लहर को बताया कि देश की राजनीति का अपराधीकरण ही महिलाओं के प्रति हिंसा का मुख्य कारण है।

उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू की बलात्कार के बाद हत्या किए जाने के 14 साल बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, उसमें भी अपराधी संतोष कुमार सिंह को मात्र उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई, क्योंकि वह एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का बेटा था। जेसिका लाल हत्या के मामले में 11 साल के बाद, कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा के पुत्र मनु शर्मा को मात्र उम्र कैद की सज़ा मिली। जुलाई 1995 में युवा कांग्रेस नेता सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी का कत्ल कर उसकी लाश को तंदूर में जला दिया। उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी का मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में; राजस्थान में भंवरी देवी हत्याकांड; हरियाणा के पूर्व उपमुख्‍यमंत्री चंद्रमोहन का प्रेम, शादी, तलाक और उसके बाद फिज़ा की मौत; दिल्ली की गीतिका शर्मा आत्महत्या मामले में हरियाणा के पूर्व गृहराज्य मंत्री गोपाल गोयल कांडा का शामिल होना – ये ऐसे उदाहरण हैं, जिसमें ‘सत्ता’ से संबंध रखने वाली हस्तियां जुड़ी रही हैं।

उन्होंने बताया कि मणिपुर में मनोरमा देवी के साथ असम राईफल्स के जवानों ने बलात्कार किया और बाद में हत्या कर दी। इसी तरह के कई उदाहरण कश्मीर में भी हैं, जहां पीडि़ता और उसके परिवार को इंसाफ नहीं मिला है।

उन्होंने बताया कि हमारी हुक्मरान पार्टियां, महिलाओं के सशक्तिकरण की बात बेशक करती हैं, लेकिन महिलाओं के आत्म-सम्मान और उनकी सुरक्षा पाने के अधिकार के प्रति उनका रवैया दोयम दर्जे का है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें राजनीतिक रसूख और धन के चलते महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा के अपराधी बच जाते हैं। हमारे देश की न्याय व्यवस्था और उसकी लंबी न्यायिक प्रक्रिया, वर्षों-वर्षों तक पीडि़ता को और पीड़ा पहुंचाती है।

प्रदर्शन में शामिल एक छात्रा ने बताया कि पुराने बर्बर संबंधों और रीति-रिवाजों के जारी रहने से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का ही भला होता है। यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो कि मुट्ठीभर अति अमीर लोगों के अधिकतम निजी मुनाफों को सुनिश्चित करने हेतु बनायी गई है। इस व्यवस्था में महिलाओं को शोषण का साधन माना गया है।

हिन्द नौजवान एकता सभा की सदस्या ने बताया कि महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा या लिंग, धर्म, जाति या लैंगिक रूझान के आधार पर शोषण-दमन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ़ मुकदमा चलाना और कठोर से कठोर सज़ा देना बहुत जरूरी है, चाहे उसका पद कितना ही ऊंचा क्यों न हो।

27 दिसम्बर को निजामुद्दीन गुंबद से लेकर गोल्फ क्लब के चैराहे तक, महिला, छात्र और जन संगठनों ने एकजुट होकर सरकार के दमनकारी रवैये की निन्दा करते हुये रैली निकाली।

29 दिसम्बर को पीडि़ता की मौत पर, लोग भारी संख्या में जंतर-मंतर पर पहुंचे और श्रद्धांजलि दी।

मजदूर एकता लहर, महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ़, सड़कों पर उतरे लोगों के संघर्ष को सलाम करती है।

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