उपभोक्ता वस्तुओं के वितरण पर व्यापारिक इजारेदारियों का बढ़ता वर्चस्व

हाल के वर्षों में जिओमार्ट, वॉलमार्ट, मेट्रो कैश एंड कैरी, बुकर, इलास्टिक्रुं, उड़ान, आदि जैसी व्यापार से व्यापार (बी2बी) वितरण कंपनियों का खुदरा व्यापार पर वर्चस्व बढ़ा है।

बी2बी वितरण कंपनियां अपने उत्पादों को फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स कंपनियों (एफ.एम.सी.जी.) से खरीदती हैं और उन्हें किराना की दुकानों तक पहुंचाती हैं – स्थानीय खुदरा दुकानें जहां से लोग इन सामानों को खरीदते हैं। किराना दुकानों को अपने उत्पादों का स्रोत बनाने के लिए, रिलायंस का जियोमार्ट देशभर में किराना दुकानों के मालिकों को भारी छूट देकर उन्हें रिलायंस के जियोमार्ट पार्टनर ऐप से अपना सामान ऑर्डर करने के लिए आक्रामक रूप से आकर्षित करता है। इसी पद्धति का उपयोग अन्य बी2बी वितरण कंपनियों द्वारा भी किया जा रहा है।

बी2बी वितरण कम्पनियों ने उपभोक्ता उत्पादों के कई पारंपरिक वितरकों को बर्बाद कर दिया है। इसकी वजह से विभिन्न वितरकों के लिए काम करने वाले लाखों सेल्समैनों की रोज़ी-रोटी पर ख़तरा मंडरा रहा है। कई वितरण कंपनियों ने बताया है कि उन्हें वाहनों और कर्मचारियों पर हाने वाले अपने खर्च में कटौती करने को मजबूर होना पड़ रहा है, क्योंकि उनका व्यापार नीचे गिर रहा है, क्योंकि वे जियोमार्ट या ऐसी ही किसी अन्य इजारेदार कंपनी द्वारा दी जा रही क़ीमतों का सामना नहीं कर पा रहे हैं।

हिन्दोस्तान में लगभग 68 लाख करोड़ रुपये के खुदरे बाज़ार का 80 प्रतिशत हिस्सा किराना की दुकानों के पास है। ख़बर है कि इस समय देशभर के 150 शहरों में करीब 3 लाख ऐसी किराना दुकानें रिलायंस से अपना माल मंगवाती हैं। रिलायंस ने 2024 तक एक करोड़ पार्टनर स्टोर बनाने का लक्ष्य रखा है।

इतने बड़े और बढ़ते खुदरा बाज़ार पर नियंत्रण स्थापित करके, रिलायंस जियो मार्ट और ऐसी ही अन्य कंपनियां एफ.एम.सी.जी. कंपनियों को अपने उत्पादों पर भारी छूट देने के लिए मजबूर करने में सक्षम हैं। जो कंपनियां उनकी शर्तों पर अपना माल देने को तैयार नहीं होती तो उनके माल की सप्लाई रोक देने की धमकी दी जाती है।

ऐसे में ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (ए.आई.सी.पी.डी.एफ.) ने विरोध की आवाज़ उठाने का फ़ैसला किया है। ए.आई.सी.पी.डी.एफ. एक ऐसी संस्था है जो एफ.एम.सी.जी. के लगभग 4 लाख डीलरों और वितरकों का प्रतिनिधित्व करती है।

ए.आई.सी.पी.डी.एफ. ने एफ.एम.सी.जी. कंपनियों को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि रिलायंस के जियोमार्ट और ऐसी ही अन्य कंपनियों द्वारा दी जाने वाली भारी छूट उपभोक्ता उत्पादों के मौजूदा वितरकों को बर्बाद कर रही है। हिन्दोस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, मैरिको, डाबर इंडिया, आई.टी.सी. लिमिटेड, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज, गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड, नेस्ले इंडिया आदि जैसी बड़ी कंपनियों को पत्र भेजा गया है।

फेडरेशन ने मांग की है कि एफ.एम.सी.जी. कंपनियां अपने उत्पादों को उन्हें भी समान क़ीमतों और शर्तों पर अपन माल बेचें, जिस क़ीमत पर वे रिलायंस जियोमार्ट और ऐसी ही अन्य कंपनियों को देती हैं। इन कंपनियों को लिखे पत्र में फेडरेशन ने कहा है कि, ‘हम अपने निर्धारित क्षेत्र में आपकी कंपनी के अधिकृत चैनल पार्टनर हैं। हमने अपने खुदरा विक्रेताओं को कई वर्षों तक अच्छी सेवा देकर प्रतिष्ठा और सद्भावना अर्जित की है। हम समझते हैं कि जिओमार्ट और अन्य बी2बी कंपनियां उन्हें आपकी कंपनी के उत्पादों को कम क़ीमत पर बेच रही हैं और इससे हमारी प्रतिष्ठा और सद्भावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए, हमारी मांग है कि यह सुनिश्चत किया जाये के आपके उत्पादों को जिन क़ीमतों पर जियोमार्ट और बी2बी कंपनियां बेचती हैं हम भी उसी क़ीमत पर आपके उत्पादों को बेच पायें।

ए.आई.सी.पी.डी.एफ. ने एफ.एम.सी.जी. कंपनियों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया है कि जियोमार्ट और अन्य बी2बी कंपनियों को कोई तरजीह न दी जाए। फेडरेशन ने 1 जनवरी, 2022 से देशव्यापी कार्रवाई करने की धमकी दी है, जिसमें वह उन एफ.एम.सी.जी. कंपनियों के उपभोक्ता उत्पादों के वितरण का बहिष्कार करेगी जो उनकी मांगों से सहमत नहीं हैं।

वितरण कंपनियों और उनके प्रभावित सेल्समैनों की मांग से पता चलता है कि कैसे इजारेदार पूंजीवादी कंपनियां छोटे वितरकों और मज़दूरों को बर्बाद कर रही हैं। ये इजारेदार पूंजीवादी व्यापारिक कंपनियां थोक और खुदरा व्यापार पर अपना नियंत्रण और प्रभुत्व स्थापित करने के लिए क़दम दर क़दम काम कर रही हैं। वे तय करते हैं कि किस एफ.एम.सी.जी. कंपनी से और किस क़ीमत पर उत्पादों को प्राप्त करेंगे, इस तरह इन उत्पादों के थोक व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित करते हैं। साथ ही, वे किराना स्टोरों के समझौता करके खुदरा व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं।

संक्षेप में, जो हो रहा है वह इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों द्वारा व्यापार के सभी पहलुओं पर बढ़ता नियंत्रण और वर्चस्व है।

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