संपादक महोदय,
हिन्दोस्तान और दुनिया का पूंजीपति वर्ग निजीकरण के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की दिशा में देश की आम जनता में अनेकों हथकंडों का इस्तेमाल करके मज़दूरों और किसानों की एकता को तोड़ने का काम हमेशा करता रहता है। वह धार्मिक भेदभाव, साम्प्रदायिक दंगे, जैसे कि इस्लामिक और सिख आतंकवाद का हौवा खड़े करके हिंसा फैलाना, क़त्लेआम करवाना और लोगों में फूट डालने की नीति का इस्तेमाल समय-समय पर करता रहता है; 1984 के क़त्लेआम में सिखों का क़त्लेआम करवाने में राज्य का वहशी चरित्र साफ दिखाई देता है। इसके बाद में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा आयोजित करके फूट डालने का काम आज तक जारी है। हाल ही में चलाया गया अयोध्या विवाद ऐसी श्रृंखला की एक कड़ी है, जिसमें बाबरी मस्जिद के स्थान पर ही राम मंदिर बनाने का अभियान चलाया जा रहा है। ऐसे हथकंडों का इस्तेमाल करके बांटो और राज करो की नीति को अंजाम दिया जा रहा है; हुक्मरान वर्ग के हितों की हिफ़ाज़त करने वाली सरकार की यह नीति है।
हुक्मरान वर्ग के उदारीकरण और निजीकरण के कार्यक्रम को हर सरकार, चाहे वह कांग्रेस पार्टी की हो या भाजपा की, अपने-अपने कार्यकाल में सभी इस कार्य को बढ़ावा देती रही हैं और इसी कारण इन दंगों और क़त्लेआम के मुख्य दोषियों को आज तक सज़ा नहीं दी गई है।
1984 के सिख हत्याकांड के कई सच उजागर हुए, जिसमें राज्य के शामिल होने के कई पहलू सामने आये, जैसे कि सिखों का क़त्लेआम करने के लिए राज्य द्वारा खुद वोटर लिस्ट दिए गए थे, इसी तरह जब बाबरी मस्जिद के हत्याकांड के पहलुओं की जांच की गयी तो यह साफ हो गया कि वहां रातों-रात रामलला की मूर्ति स्थापित करवाकर अयोध्या मंदिर के निर्माण और इस बड़े हत्याकांड की साजिश रची गयी थी।
देश में होने वाली सभी बड़ी घटनायें, जो आम लोगों के हित में नहीं हैं, जो हुक्मरान वर्गों के हितों की रक्षा करती हैं ऐसी तमाम घटनाओं, दुर्घटनाओं और षड्यंत्रों में राज्य का तंत्र पूरी तरह शामिल है। यह कहना कि आम लोग सांप्रदायिक हैं बिलकुल ग़लत होगा, हक़ीक़त तो यह है कि राज्य का चरित्र ही सांप्रदायिक है। इस साम्प्रदायिकता रूपी हथियार का इस्तेमाल करके वह वर्ग संघर्ष को तोड़ने की कोशिश करता है। यही हमें बाबरी मस्जिद के सन्दर्भ में भी साफ़ समझ आता है। लेख बहुत ही सटीक और स्पष्ट है।
प्रियंवदा, मुंबई