निम्नलिखित रिपोर्ट मज़दूर एकता कमेटी के एक संवाददाता से प्राप्त हुई।
उत्तरी दिल्ली के बाड़ा हिंदू राव अस्पताल (एच.आर.एच.) के 300 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टर 22 नवंबर से अपने वेतन और भत्तों के भुगतान की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं।
ओपीडी सेवाएं निलंबित हैं, लेकिन डॉक्टरों ने गंभीर रोगियों के लिए आपातकालीन सेवाओं को चालू रखा है और उसके लिए बारी-बारी से पारियों में काम कर रहे हैं।
अस्पताल के मुख्य द्वार के बाहर आयोजित धरने पर डॉक्टरों की मांगों के बारे में बड़े-बड़े बैनर लगे हुए हैं। धरना-प्रदर्शन का नारा था – ‘वेतन नहीं तो काम नहीं! – इस नारे से हड़ताल कर रहे डॉक्टरों के हालातों का पता चलता है, जिन्हंे पिछले दो महीने से वेतन व पिछले पांच माह से महंगाई भत्ते का भुगतान नहीं किया गया है।
एच.आर.एच. के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आर.डी.ए.) के अध्यक्ष ने बताया कि पिछले दो वर्षों से रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सों और अन्य कर्मचारियों को वेतन मिलने में कई महीनों की देरी का सामना करना पड़ा है। आर.डी.ए. को हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर किया गया है और उन्होंने अदालतों का दरवाज़ा भी खटखटाया है, यह मांग करते हुए कि उनके वेतन का भुगतान समय पर किया जाए। लेकिन इसके बावजूद इस साल एक बार फिर उन्हें उसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
डॉक्टरों को कोई लिखित आश्वासन भी नहीं दिया गया है कि उनका वेतन कब दिया जाएगा। उनमें से कई को अपने मकान मालिकों से समय पर किराए का भुगतान नहीं करने के लिए धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। कई तो ई.एम.आई. या अपने स्कूल जाने वाले बच्चों की फीस का भुगतान भी नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें भारी आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते वे हड़ताल पर जाने को मजबूर हैं। कई हड़ताली डॉक्टरों ने बताया कि 2020 में कोविड-19 संकट की अवधि के दौरान भी, जब उन्होंने ओवरटाइम काम किया और रोगियों की देखभाल करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी, ज्यादातार समय पर्याप्त सुरक्षात्मक गियर के बिना, तब भी उन्हें अपना वेतन प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ा था।
एच.आर.एच. उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित सबसे बड़ा अस्पताल है और उत्तरी दिल्ली में प्रमुख स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने वाला एक अस्पताल है। अनुमान है कि उसकी ओ.पी.डी. में रोजाना करीब दो हज़ार मरीज आते हैं। इसके बावजूद, डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को अपने वेतन के लिए नियमित रूप से संघर्ष करना पड़ता है।
उत्तरी दिल्ली के कस्तूरबा अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर भी पिछले दो महीने से वेतन भुगतान की मांग को लेकर 23 नवंबर को हड़ताल पर चले गए थे। मार्च 2021 में महामारी की दूसरी लहर के दौरान खोले गए 500-बेड वाले कोविड-19 सुविधा वाले पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर (जी.टी.बी.) अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी अधिकारियों से शिकायत की है कि उन्हें उनके वेतन का भुगतान पिछले चार महीनों से नहीं किया गया है।
एक तरफ, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का तेजी से निजीकरण किया जा रहा है, चिकित्सा क्षेत्र में कुछ सबसे बड़े राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निजी इजारेदार कॉरपोरेट घरानों ने देश भर के सभी प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर अस्पताल खोल दिए हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की सख़्त जरूरत वाले मरीजों को लूट रहे हैं। दूसरी ओर, केंद्र और राज्यों में एक के बाद एक सरकारों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को लगातार खराब करने और बर्बाद करने का काम किया है। जो डॉक्टर हर दिन हज़ारों रोगियों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए अथक परिश्रम करते हैं, अक्सर अत्यंत कठिन परिस्थितियों में, उन्हें नगर निगम और सरकारी अस्पतालों में बार-बार वेतन और बकाया का भुगतान नहीं करना, शासक वर्ग की व्यवस्थित रूप से रणनीति का हिस्सा है। वो रणनीति जिसके चलते वे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को नष्ट करना, वहां काम करने वाले डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों का मनोबल तोड़ना और स्वास्थ्य देखभाल के निजीकरण को सही ठहराना चाहते हैं।