करीब एक दर्जन संगठनों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस करने की बीसवीं बरसी के अवसर पर 6 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। मंडी हाऊस चैक से एक जुलूस निकाला गया जो जंतर-मंतर में पहुंच कर एक जनसभा में परिवर्तित हो गया। जनसभा में नौजवनों ने एक नुक्कड़ नाटक पेश किया जिसमें अपने देश में राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक हिंसा का पर्दाफाश किया गया। इसके बाद अलग-अलग पार्टियों व संगठनों न
करीब एक दर्जन संगठनों ने बाबरी मस्जिद विध्वंस करने की बीसवीं बरसी के अवसर पर 6 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। मंडी हाऊस चैक से एक जुलूस निकाला गया जो जंतर-मंतर में पहुंच कर एक जनसभा में परिवर्तित हो गया। जनसभा में नौजवनों ने एक नुक्कड़ नाटक पेश किया जिसमें अपने देश में राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक हिंसा का पर्दाफाश किया गया। इसके बाद अलग-अलग पार्टियों व संगठनों ने अपने विचार रखे। आयोजकों में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के साथ, वेल्फेयर पार्टी, लोक राज संगठन, सिख फोरम, सिख्खी सिदक, बेटर सिख स्कूल्स, सोशलिस्ट युवजन सभा, पुरोगामी महिला संगठन, हिन्द नौजवान एकता सभा, असोसियेशन फॉर प्रोटेक्षन ऑफ सिविल राईट्स, मणीपुर स्टूडेन्ट्स असोसियेशन दिल्ली, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ असोसियेशन, मज़दूर एकता कमेटी शामिल थे।
जुलूस के पूरे रास्ते में प्रदर्शनकारियों ने जोशीले नारे लगाये और झंडे व तख्तियां उठायीं जिनमें निम्नलिखित मांगें शामिल थीं – "एकजुट होकर मांग करो, सजा मिले गुनहगारों को!", "लोगों के सबलीकरण और हिन्दोस्तान के नवीकरण के लिये मूलभूत सुधारों के लिये संघर्ष करें!", "साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता, दोनों ही, शासकों की नीति के पहलू हैं!", "ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद के विनाश के अपराध के लिये भाजपा व कांग्रेस दोनों पार्टियां जिम्मेदार हैं!", "एक पर हमला, सब पर हमला!", "हिन्दोस्तानी राज्य सांप्रदायिक है, न कि हिन्दोस्तानी लोग!", "1984, 1992-93, 2002, ओडिशा व असम की साम्प्रदायिक हिंसा के लिये जिम्मेदार अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिये!", "राजकीय आतंकवाद मुर्दाबाद!", "राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ़ एकजुट हों!", "सांप्रदायिक हिंसा – लोगों को बांटने के लिये राज्य का पसंदीदा हथियार!", इत्यादि।
सभा को संबोधित करते हुये हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के वक्ता ने बताया कि बर्तानवी उपनिवेशवादी काल से शासक वर्ग ने बाबरी मस्जिद के मुद्दे को सुलगा के रखा है और इसके विध्वंस का माहौल बनाने की शुरुआत राजीव गांधी सरकार द्वारा 40 वर्ष से बंद बाबरी मस्जिद के दरवाजे 1986 को खुलवाने से हुयी। इस हादसे के राजनीतिक संदर्भ को समझाते हुये उन्होंने बताया कि हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने 80 के दशक में ही हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था को विदेशी पूंजी के लिये खोलने का फैसला ले लिया था। 1984, 1993 व 2002 में राज्य द्वारा बार-बार साम्प्रदायिक हिंसा आयोजित करने का मकसद इन आर्थिक नीतियों के विरोध में लोगों की बढ़ती एकता को तोड़ना था। उन्होंने ध्यान दिलाया कि जो इंसाफ के लिये और साम्प्रदायिकता व साम्प्रदायिक हिंसा को खत्म करने के लिये लड़ रहे हैं, उन्हें इस तथ्य का सामना करना जरूरी है, कि असल में इस समस्या की जड़ें मौजूदा राज्य व उसके संविधान में हैं। उन्होंने बुलावा दिया कि एक नये राज्य व राजनीतिक प्रक्रिया, जिससे लोग सत्ता में आयेंगे, इसकी नींव रख कर, उपनिवेशवादी विरासत से सदा के लिये नाता तोड़ें। उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक हिंसा को हमेशा के लिये खत्म करने के लिये एक आधुनिक संविधान को स्थापित करने की आवश्यकता है, जो मानव व राष्ट्रीय अधिकारों के साथ-साथ, जमीर के अधिकार को सुनिश्चित करे।
सभा को संबोधित करने वाले अन्य वक्ता वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया, लोक राज संगठन, सिख फोरम, मुस्लिम पोलिटिकल कौंसिल ऑफ इंडिया, पुरोगामी महिला संगठन, हिन्द नौजवान एकता सभा, असोसियेशन फॉर प्रोटेक्षन ऑफ सिविल राईट्स, नेशनल कन्फैडरेशन ऑफ ह्यूमन राईट्स ऑर्गनाईजेशन्स, मणीपुर स्टूडेन्ट्स असोसियेशन दिल्ली से थे। अंत में, गुनहगारों को सजा दिलाने के आंदोलन में बढ़ती एकता दर्शाते हुये, जंतर-मंतर में हो रहे विभिन्न विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों ने मिल कर जुलूस निकाला और नारे लगाये।