एयर इंडिया का निजीकरण :
इजारेदार पूंजीपतियों के अधिकतम मुनाफे़ कमाने की लालच को पूरा करने के लिए मज़दूर-विरोधी और जन-विरोधी क़दम

एयर इंडिया और इसकी सहायक इकाई ए.आई. एक्सप्रेस, जिसके पास 94 विमान हैं और जो 100 से अधिक घरेलू उड़ानों और 60 अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को संचालन करती है, इन्हें टाटा समूह को बेच दिया गया है।

टाटा ने केवल 18,000 करोड़ रुपये (लगभग 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की बोली लगाकर यह सफलता पाई है। उन्हें इस राशि का 15 प्रतिशत यानी मात्र 2,700 करोड़ रुपये ही सरकार को नगद देने होंगे। शेष 15,300 करोड़ रुपये से एयर इंडिया के बकाया क़र्जों को चुकाना होगा हालांकि एयर इंडिया का कुल क़र्जा, लगभग 60,000 करोड़ रुपये का है। एयर इंडिया की शेष क़र्ज राशि का वहन सरकार करेगी।

कॉरपोरेट मीडिया इस सौदे को ऐसे पेश कर रहा है जैसे कि टाटा समूह एयर इंडिया को अपने कब्ज़े में लेकर, देश पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा है। यह विचार सरासर ग़लत है जिसे सच्चाई को छिपाने के लिए फैलाया जा रहा है।

सच तो यह है कि टाटा को लाभ पहुंचाने के लिए अत्यंत मूल्यवान सार्वजनिक संपत्ति को सस्ते में बेचा गया है। एयर इंडिया के 31 मार्च, 2020 तक के खातों के अनुसार उसकी शुद्ध संपत्ति 46,000 करोड़ रुपए है। देश और विदेश में ज़मीन पर उतरने और पार्किंग के सभी मूल्यवान अधिकारों के साथ-साथ उसकी भौतिक संपत्ति का वास्तविक मूल्य कई गुना अधिक है।

एयर इंडिया के पास घरेलू हवाई अड्डों पर, 4,400 घरेलू और 1,800 अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिये ज़मीन पर उतरने और पार्किंग के लिये स्थान हैं, साथ ही विदेशों में हवाई अड्डों पर 900 स्थान हैं। दुनियाभर के बहुत व्यस्त अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर ज़मीन पर उतरने और पार्किंग के लिये अब कोई नया स्थान उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण नई एयरलाइन ऐसे हवाई अड्डों के लिए उड़ान नहीं भर सकती। इन स्थानों पर कब्ज़ा प्राप्त करने से हिन्दोस्तान और वैश्विक स्तर पर हवाई उड़ानों के बाज़ार में टाटा की हिस्सेदारी तुरंत बढ़ जाती है।

टाटा समूह, इस समय देश में दो एयरलाइनों का संचालन करता है। एक है विस्तारा जो सिंगापुर एयरलाइंस के साथ संयुक्त उद्यम है। दूसरा है एयर एशिया, जो मलेशिया की एयरलाइन, एयर एशिया के साथ एक संयुक्त उद्यम है। इन दोनों कंपनियों का अधिकतम शेयरधारक टाटा है। एयर इंडिया की तुलना में इन दोनों एयरलाइनों के संचालन का पैमाना काफी छोटा है। घरेलू बाज़ार में इनकी हिस्सेदारी 15 फीसदी से भी कम है और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इनका हिस्सा न के बराबर है। एयर इंडिया और ए.आई. एक्सप्रेस का अधिग्रहण करके टाटा समूह हिन्दोस्तानी की सभी एयरलाइनों में शीर्ष स्थान पर पहुंच जायेगा।

हिन्दोस्तानी लोगों की सार्वजानिक सम्पत्ति एयर इंडिया को टाटा ग्रुप को सौंपने के इस क़दम को भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार इस तरह से पेश कर रही है जैसे कि उसने कुछ बहुत बड़ा काम कर लिया है, जिसे करने की कोशिश पिछली सरकारों ने की लेकिन असफल रहीं। एअर इंडिया की बिक्री के पिछले सभी प्रयासों को इजारेदार पूंजीपतियों द्वारा विफल किया गया था, ताकि केंद्र सरकार उनके द्वारा निर्धारित शर्तों पर इसे बेचने के लिए सहमत हो। इस बिक्री पैकेज के द्वारा एयर इंडिया और ए.आई. एक्सप्रेस में हिन्दोस्तान की सरकार के स्वामित्व वाले 100 प्रतिषत शेयरों पर अब टाटा समूह का कब्ज़ा हो गया। पैकेज में एयर इंडिया-एस.ए.टी.एस. एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में सरकार के आधे शेयरों की बिक्री भी शामिल है, जो सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज लिमिटेड के साथ 50-50 प्रतिशत का संयुक्त उद्यम है।

एयर इंडिया के निजीकरण के प्रयास 2000 में शुरू हुए थे। मज़दूर यूनियनों के कड़े विरोध के कारण कुछ समय के लिए इसके निजीकरण को रोक दिया गया था। एयर इंडिया के निजीकरण की योजना को मई 2017 में फिर से सक्रिय किया गया, जब नीति-आयोग ने एयर इंडिया की रणनीतिक बिक्री की सिफारिश करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। मार्च 2018 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की गठबंधन सरकार ने एयरलाइन में सरकार के 76 प्रतिशत शेयरों को खरीदने के लिए बोलियां आमंत्रित कीं। निजी-खरीदार को 49,000 करोड़ के बकाया कर्ज़ का वहन करने की ज़िम्मेदारी थी। इन शर्तों के तहत पूंजीपतियों कि किसी भी समूह ने एयर इंडिया को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे नहीं चाहते थे कि सरकार अपने स्वामित्व का कोई भी हिस्सा अपने पास रखे। वे चाहते थे कि बकाया कर्ज़ का एक बड़े हिस्से का वहन सरकार करे।

केंद्र सरकार ने इजारेदार पूंजीपतियों की मांगों को मान लिया और जनवरी 2020 में राज्य के स्वामित्व वाली एयरलाइन की 100 प्रतिशत बिक्री के लिए बोलियां आमंत्रित कीं, जिसमें ए.आई. एक्सप्रेस लिमिटेड में एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और एयर इंडिया एस.ए.टी.एस. एयरपोर्ट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी भी शामिल है। खरीदार द्वारा वहन किये जाने वाले कर्ज़ की राशि को घटाकर 23,286 करोड़ रुपए कर दिया गया। नए विमानों की खरीद के लिए ऋण की यह राशि ली गई थी। यह भी ऐलान किया गया कि बाकी सारा कर्ज़ सरकार वहन करेगी ।

हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों ने इन शर्तों पर भी एयर इंडिया को खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे और रियायतें चाहते थे। अक्तूबर 2020 में सरकार ने ऋण की पूर्व-निर्धारित राशि को खरीदार द्वारा वहन करने की आवश्यकता को हटाकर बोली की शर्तों में फिर बदलाव किया। बोली लगाने वालों को एयर इंडिया के ऋण की बकाया राशि पर विचार करने के बाद, उसके उद्यम-मूल्य (एंटरप्राइज वैल्यू) की बोली लगाने के लिए कहा गया था।

सरकार ने एयर इंडिया को बेचने के लिए, इस समय को इसलिए चुना क्योंकि यह इजारेदार पूंजीपतियों के लिए बहुत अनुकूल समय है। जनवरी 2020 से कोरोना वायरस की महामारी के कारण लगाए गए यात्रा-प्रतिबंधों की वजह से पूरी दुनिया में एयरलाइन व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अधिकांश हवाई अड्डों और एयरलाइनों को अपने परिचालन स्थगित करने पड़े और बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ा। एयर इंडिया के घाटे में भी भारी उछाल आया है। नतीजतन यह एक ऐसा समय है जब निजी खरीदार, सामान्य समय की तुलना में अपनी बोली की राशि के स्तर को काफी नीचे कर सकते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस बार एयर इंडिया बिक जाए, हिन्दोस्तान की सरकार ने बोलियां आमंत्रित करने से पहले एक निश्चित न्यूनतम आरक्षित मूल्य भी निर्धारित नहीं किया। सरकार ने बोलियां प्राप्त करने के बाद आरक्षित मूल्य तय किया। ऐसा बताया जा रहा है कि आरक्षित मूल्य मात्र 12,900 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था।

पिछले सालों में एयर इंडिया का हुये घाटे और बकाया कर्ज़ाें की ओर इशारा करके, इतने कम आरक्षित मूल्य पर एयर इंडिया को बेचने के सरकार के फ़ैसले को उचित ठहराया जा रहा है। हालांकि, सब यह भी जानते हंै कि इस सार्वजनिक उद्यम को बर्बाद करने के उद्देश्य से सरकार के फ़ैसलों के कारण ही संचित नुक़सान हुआ है।

2005 में इंडियन एयरलाइंस को 43 नए विमानों को खरीदने के निर्देश दिए गए, जबकि यह उनकी ज़रूरतों से बहुत अधिक था। अगले वर्ष, एयर इंडिया द्वारा 68 विमानों की खरीद के लिए 50,000 करोड़ रुपये के एक बडे ऋण की व्यवस्था की गई थी, जबकि असली ज़रूरत केवल 28 विमानों की थी। इन ऋणों के वार्षिक ब्याज और मूलधन की अदायगी ने मुनाफ़ा कमाने वाली दोनों एयरलाइनों को घाटे में चलने वाली कंपनियों में बदल दिया।

लगभग उसी समय (2004-2005) में एयर इंडिया के सबसे आकर्षक और मुनाफे कमाने वाले अंतर्राष्ट्रीय मार्गाें और स्थानों विशेष रूप से खाड़ी देशों के मार्ग – निजी और विदेशी एयरलाइनों को देने के लिए सरकार तैयार थी।

एयरलाइन के, वित्तीय हालात तब और भी ख़राब हो गये, जब सरकार ने सभी नियोजित-कर्मचारियों के एकजुट विरोध के बावजूद, 2006 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस को विलय करने के लिए मजबूर किया। उस समय इंडियन एयरलाइंस विमानन के क्षेत्र में एक अगुवा की भूमिका में थी, जिसके पास हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों के घरेलू बाज़ार का 42 प्रतिशत हिस्सा था। विलय का उद्देश्य था सार्वजनिक कंपनी को कमजोर करके निजी एयरलाइन कंपनियों के मुनाफ़ों को बढ़ावा देन। इंडियन एयरलाइंस को अपने राजस्व का 40 प्रतिशत खाड़ी मार्गों से प्राप्त होता था। सरकार के फै़सलों ने इसे घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया।

एयर कॉर्पोरेशन कर्मचारी संघ के महासचिव बी. कादियान ने एयर इंडिया के कर्मचारियों से विचार व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा, “इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलय ताबूत में आखिरी कील की तरह  था” और उन्होंने यह भी बताया कि “निजी खिलाड़ियों को बढ़ावा देने का एकमात्र तरीका यह सुनिश्चित करना था कि इंडियन एयरलाइंस का नाम भारतीय आसमान के नक्शे से ग़ायब हो जाए।”

एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय ने दोनों एयरलाइंस को बर्बाद कर दिया। 2007 में विलय के बाद पहले ही वर्ष में कंपनी को 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक तरफ निजी एयरलाइंस को एयर इंडिया के बर्बाद होने से बहुत फ़ायदा हुआ और उनकी बाज़ार- हिस्सेदारी में वृद्धि हुई, दूसरी तरफ एयर इंडिया की बिगड़ती आर्थिक स्थिति का इस्तेमाल, किसी भी क़ीमत पर एयर इंडिया के निजीकरण करने के फ़ैसले को सही ठहराने के लिए किया गया।

एयर इंडिया के निजीकरण और नागरिक उड्डयन से हिन्दोस्तानी राज्य के पूर्ण रूप से हटने के साथ, अब हवाई-किराए पूरी तरह से ज्यादा से ज्यादा निजी मुनाफे बनाने के उद्देश्य से, निर्धारित किए जाएंगे। दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सुविधाएं सुनिश्चित करने जैसे सामाजिक उद्देश्यों पर विचार तक नहीं किया जाएगा। जिन स्थानों पर उड़ानें आमतौर पर भरी नहीं होती हैं, वहां हवाई टिकट की क़ीमतों में भारी वृद्धि होगी। निजी एयरलाइनों पर पहले से ही, कार्टेल बनाने और एकाधिकार मूल्य निर्धारण की साजिश करने का आरोप लगाया गया है। 2018 में, इंडिगो, जेट एयरवेज और स्पाइसजेट-सभी पर हिन्दोस्तानी प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा, ईंधन-अधिभार दर बढ़ाने के लिए कार्टेल बनाने के लिए, जुर्माना लगाया गया था।

एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विनाश और निजीकरण सबसे बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के इशारे पर किया गया है, ताकि उनकी अधिकतम मुनाफे की लालच को पूरा किया जा सके। मज़दूरों को नौकरी की और भी अधिक असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा। हवाई यात्रियों को अधिक क़ीमतों का सामना करना पड़ेगा। जनता को बहुत भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि जनता के पैसे से ही, इस भारी बकाया कर्ज को चुकाया जाएगा।

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